तलाक लिए बिना अन्य स्त्री को जीवनसंगिनी बना लेने पर क्या होगा?
|मेरी उम्र 55 वर्ष है। हमारे विवाह को 30 वर्ष हो गये हैं और चार बच्चे भी हैं। हिन्दू रीति रिवाज से हमारा विवाह मेरी इच्छा के विरुद्ध दोनों के परिवारों की साजिश का नतीजा था। जिसके चलते हम पहले दिन से ही एक-दूसरे के प्रेमी या दोस्त बनने के बजाय एक-दूसरे के दुश्मन बनकर जीवन जीने को विवश हैं। मैं और मेरी पत्नी दोनों एक-दूसरे से अत्यन्त परेशान हैं। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि अब मेरे लिये साथ रहना तो दूर जीवन जीना भी मुश्किल होता जा रहा है। इसके उपरान्त भी मेरी पत्नी न तो मुझसे आपसी सहमति से तलाक लेना चाहती है और न ही मेरे घर को छोड़कर अपने पीहर जाना चाहती है। वह मेरे घर में रहकर ही मुझे तनाव, क्लेश और पीड़ा पहुँचाने में खुशी का अनुभव करती है। उसने मुझे कभी भी प्रेम या सहवास सुख प्रदान नहीं किया। हमारे शारीरिक सम्बन्धों को वह बलात्कार का नाम देती है। सम्बन्ध बनाने से कभी मना नहीं करती, लेकिन पहले दिन से ही अन्तरंग क्षणों में गुस्सा करती है, अपशब्द बोलती है और किसी प्रकार का सहयोग नहीं करती। अधिकतर वह मृत शरीर की भॉंति पड़ी रहती है। वह कहती है कि उसे मेरी शक्ल से ही नफरत है। जबकि देखने में मैं उससे सुन्दर, स्वस्थ और सक्षम हूँ। वह कहती है कि वह हस्तमैथुन करके अपनी कामवासना को शान्त कर लेती है, इसलिये उसे किसी की जरूरत नहीं है। मुझे उससे चरित्र पर तनिक भी सन्देह नहीं है। वह मुझे प्रताड़ित करने के लिये हर क्षण मुझे अपमानित करती रहती है।
वह दसवीं कक्षा तक पढी है और एक बहुत कम शिक्षित परिवार से ताल्लुक रखती है, जबकि मैं उच्च शिक्षा प्राप्त संवेदनशील और लेखन से जुड़ा व्यक्ति हूँ। मैंने मेरी पत्नी को हजारों बार अनेक तरीकों समझाया, उससे अत्यन्त नम्रता से निवेदन किया और कई बार मारपीट भी की लेकिन उस पर कोई असर नहीं होता है। इस बारे में उसके परिवार के लोगों और मेरे परिवार के लोगों ने भी उसके अनेक बार खूब समझाया है। लेकिन कोई असर नहीं। जब मैं घर में होता हूँ तो हमेशा मुँह फुलाकर रहती है। इन हालातों में मुझे इस बात का हर पल पछतावा होता रहता है कि मुझे एक भी दिन पत्नी का प्यार और वास्तव में जो स्त्री सुख होता है, वह कभी नहीं मिला। जबकि मैं ऐसा मानता हूँ कि यह सब मेरा प्राकृतिक हक था। इस कारण जीवन निरर्थक लगता है। घर में जरूरत का सभी प्रकार का सामान और सभी साधन हैं। जिनका या मेरे रुपये का अपने हित में या अपनी सुविधा के लिये उपयोग करना भी वह दु:खद और अपमानकारी समझती है। मेरे तथा मेरे माता-पिता के अलावा उसका सभी के प्रति व्यवहार नम्र और सामान्य रहता है। हम शुरू से अलग रहते हैं। सम्पूर्ण वैवाहिक जीवन में कुल मिलकर मेरे माता-पिता टुकड़ों टुकड़ों में अधिक से अधिक दो वर्ष साथ रहे हैं।
विवाह के बाद तीन-चार बार मेरी तबियत खराब हो गयी तो उसने कभी भी दिखावे तक के लिये मुझसे मेरे हाल नहीं पूछे। वह भी अनेक बार बीमार हुई है। मैंने हर बार उसकी सेवा करने या देखभाल करने का भरसक प्रयास किया, हालांकि ऐसा करना मेरी पत्नी को कभी अच्छा नहीं लगा। मैं पहले एक-दो दिन के लिये यदाकदा बीमार होता था तो जैसे-तैसे बच्चों के सहयोग से काम चल जाता था। लेकिन पिछले दिनों एक दुर्घटना में, मैं घायल हो गया जिस से मुझे करीब दो महिने तक चलने फिरने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा। अभी भी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो पाया हूँ, लेकिन बच्चों के साथ नहीं होने और पत्नी के निष्ठुर व्यवहार ने मुझे कई बार आत्महत्या करने तक पर सोचने का विवश किया, लेकिन मैं अभी भी जिन्दा हूँ। शुरू में बच्चे जल्दी पैदा हो गये और बच्चों के प्रति मेरी पत्नी का व्यवहार अत्यन्त नम्र है। मुझे दिल से अपना पति स्वीकार करने के अलावा, वह बच्चों के लिये कुछ भी कर सकती है। यह कह सकता हूँ कि मेरी पत्नी एक बहुत ही अच्छी मॉं है। हालाँकि उसने इसी गुण या कला के कारण बच्चों को भी धीरे-धीरे मेरे विरुद्ध भड़काना शुरू कर दिया। इसके बावजूद भी मैंने उससे तलाक लेने का आवेदन नहीं लगाया, क्योंकि मैं अपने बच्चों से उनकी माँ का प्यार नहीं छीनना चाहता था|
अब जबकि बच्चों की अपनी दुनिया अलग है। उन्हें उससे ही फुर्सत नहीं है। मैं घर में पत्नी के साथ रहकर भी एकाकी और अत्यधिक तनावभरा जीवन जीने को विवश हूँ। बार-बार एक ही विचार आता रहता है कि यदि मैंने अभी भी अपने लिये दूसरी जीवन संगिनी का चयन नहीं किया तो मेरा शेष जीवन निश्चय ही कष्टमय होगा, लेकिन मैं अपने बच्चों को उनकी मॉं से दूर नहीं करना चाहता। इसलिये तलाक तो ले नहीं सकता। ऐसे में मेरे सवाल इस प्रकार हैं-
१. यदि मैं बिना तलाक लिये दूसरी किसी जरूरतमन्द, विधवा, परित्यक्ता या बांझ स्त्री को अपनी जीवन संगिनी बना लेता हूँ तो और यदि मेरी पत्नी मेरे विरुद्ध मुकदमा दायर कर देती है तो मुझे न्यूनतम व अधिकतम कितने वर्ष की सजा हो सकती है?
२. एक बार सजा भुगतने के बाद यदि मैं फिर से उसी जीवन संगिनी के साथ रहता हूँ तो फिर से तो मेरे विरुद्ध कोई मुकदमा नहीं चलेगा?
३. दूसरी जीवन संगिनी लाने पर भी मैं अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता मांगने की नोबत नहीं आने दूँ। बराबर साधन उपलब्ध करवाता रहूँ, इसके उपरान्त भी उन हालातों में (जैसा कि होता है) लोगों के सिखावे या उकसावे में आकर वह मुझसे मेरी हैसियत से अधिक धन गुजारा भत्ते के रूप में मांगने के लिये कोर्ट में मुकदमा दायर कर देती तो तो मुझे कितनी सजा कितनी बार हो सकती है और ऐसे में क्या मेरी चल अचल सम्पत्ति को कुर्क किया जा सकता है? मेरे पास पैतिृक सम्पत्ति के नाम पर कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी है, वह स्वअर्जित सम्पत्ति ही है। नियमित आय के रूप में मुझे बारह हजार रुपये सरकारी पेंशन मिलती है। इसके अलावा मुझे करीब तीस हजार रुपये की आय अन्य अलिखित स्रोतों से भी प्राप्त होती है।
४. उपरोक्त के अलावा यदि अन्य कोई विकल्प हो तो कृपया वह भी बताने और मार्गदर्शन करने का कष्ट करें।
मधुसुदन जी,
आप ने अपनी परिस्थितियों का स्वयं ही खूब विश्लेषण कर दिया है। आप ने पत्नी को अपने हाल पर छोड़ कर अन्य स्त्री को जीवन संगिनी बनाना लगभग तय कर लिया है और सिर्फ बाधाओं तथा आने वाली समस्याओं का आकलन व निराकरण पहले से कर लेना चाहते हैं। लेकिन कई बाधाएँ और समस्याएँ ऐसी भी हो सकती हैं जिन का आप अभी मूल्यांकन नहीं कर सकते। आप का यह तर्क कि आप अपनी पत्नी से इस लिए तलाक लेना नहीं चाहते कि इस तरह उस से उस के बच्चे छिन जाएंगे उचित नहीं है। बच्चों से माँ-बाप कभी नहीं छिनते। मुझे नहीं लगता कि आप के बच्चे अब इतने छोटे हैं कि वे आप दोनों की समस्या को नहीं समझते हों। इस कारण से आप को अपनी समस्या बच्चों के सामने खुल कर रख देनी चाहिए और कारण सहित अपना निर्णय भी कि आप उन की माँ से तलाक लेना चाहते हैं। बच्चे इस स्थिति में अपनी स्थिति स्वयं तय कर लेंगे। मेरी राय यह है कि आप की पत्नी का व्यवहार आप के प्रति क्रूरतापूर्ण है और इस आधार पर आप को तलाक मिल सकता है। तलाक की स्थिति में आप की पत्नी का पुनर्भरण भी तय हो जाएगा। तलाक की अर्जी लगाने का अर्थ यह भी नहीं कि तुरंत तलाक हो ही गया है। उस से जो भी भविष्य की रूपरेखा है वह स्पष्ट हो सकती है जिस से आप को आगे का निर्णय लेना आसान हो जाएगा। आप को बच्चों के सामने स्थिति रखने पर तलाक की अर्जी लगा देनी चाहिए।
आप के पहले प्रश्न का उत्तर यह है कि यदि कोई विवाहित पुरुष किसी ऐसी स्त्री के साथ जिस का पति नहीं है अथवा जीवित नहीं है, उस से बिना विवाह किए निवास करता है तो भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जिस के अनुसार ऐसा करना अपराध हो। इस कारण से इस कृत्य के लिए किसी प्रकार का दंड किसी पुरुष को नहीं दिया जा सकता है। इस कारण आप के दूसरे प्रश्न का उत्तर भी यही है कि एक बार सजा नहीं दी जा सकती तो दूसरी बार भी सजा नहीं दी जा सकती है।
आप के तीसरे प्रश्न का उत्तर यह है कि यदि आप अपनी पत्नी को उस के गुजारे के लायक वे सभी साधन जुटा देते हैं, जो कि अभी जुटा रहे हैं तो आप की पत्नी के पास गुजारा भत्ता मांगने के लिए कोई आधार उपलब्ध नहीं होगा। फिर भी वह मिथ्या तथ्यों के आधार पर आप के विरुद्ध गुजारा भत्ता प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकती है। कोई भी न्यायालय आप को अपनी हैसियत से अधिक गुजारा भत्ता देने का आदेश/ निर्णय पारित नहीं कर सकता है। यदि कर दे तो आप उस की अपील कर सकते हैं। आप गुजारा भत्ता नहीं देंगे तो आप को हर बार जब कि गुजारा भत्ता नहीं दिया गया है तब तक के लिए जेल भेजा जा सकता है जब तक कि आप बकाया गुजारा भत्ता अदा नहीं कर देते हैं। गुजारा भत्ता की वसूली के लिए आप की चल-अचल संपत्ति कुर्क भी की जा सकती है।
जहाँ तक अन्य विकल्प की बात है तो वह एक ही विकल्प है कि आप अपनी पत्नी से तलाक ले कर ही किसी स्त्री को जीवन संगिनी बनाएँ। वही सामाजिक रूप से आप के लिए श्रेयस्कर होगा। इस बात की क्या गारंटी है कि आप जिसे जीवन संगिनी बनाएंगे उस के साथ आप की कोई समस्या नहीं होगी? इसलिए जो कुछ करें सोच समझ कर ही करें।