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दावों में अनेक वादियों और प्रतिवादियों का संयोजन

पिछले सप्ताह हम ने चर्चा की थी कि दीवानी वाद किन न्यायालयों में प्रस्तुत किए जा सकते हैं?  जब भी कोई वाद किसी न्यायालय को प्रस्तुत किया जाता है तो वह किसी न किसी प्रकार की राहत प्राप्त करने के लिए होता है। इसी तरह प्रत्येक वाद के लिए किसी एक या अनेक व्यक्तियों द्वारा किया गया कोई न कोई कृत्य (Act) या संव्यवहार  (Transaction) या, कृत्यों या संव्यवहारों की श्रंखला उस के मूल में होती है। जब किसी वाद में यह कहा जाए कि किसी कृत्य (Act) या संव्यवहार  (Transaction) या, कृत्यों या संव्यवहारों की श्रंखला से अनेक व्यक्ति व्य़थित हुए हैं तो वे सभी व्यथित व्यक्ति संयुक्त रूप से एक ही वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। उदाहरण के रूप में किसी ठेकेदार को स्कूल में बच्चों के लिए दोपहर का पहुँचाने का ठेका दिया हुआ है। ठेकेदारा द्वारा पहुँचाए गए दूषित भोजन के कारण स्कूल के अनेक बच्चे बीमार हो जाते हैं। बीमार हुए इन सभी बच्चों को पहुँची क्षतियों के लिए संयुक्त रूप से एक ही वाद न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सकता है, अर्थात् इन सभी  बच्चों के अभिभावकों को एक ही वाद में वादी के रूप में संयोजित किया जा सकता है। लेकिन अनेक व्यक्तियों द्वारा एक ही वाद प्रस्तुत करने के पहले यह भी देखा जाना आवश्यक है कि यदि ये सभी व्यक्ति पृथक पृथक वाद प्रस्तुत करते तो सभी वादों में विधि और तथ्य के एक जैसे सामान्य प्रश्न पैदा होते।

स तरह अनेक व्यक्तियों द्वारा वादी के रूप में संयोजित हो कर एक ही वाद प्रस्तुत करना इस अर्थ में लाभदायक है कि न्यायालय को विधि और तथ्य के प्रश्नों को एक बार में ही तय किया जा सकता है। यदि अनेक वाद प्रस्तुत किए जाते तो न्यायालय को हर वाद में एक जैसे प्रश्न अलग अलग तय करने पड़ते, तथ्य के एक जैसे प्रश्नों के लिए अलग अलग साक्ष्य लेनी पड़ती। इस से न्यायालय का बहुत सा समय जाया होता। उधर प्रत्येक व्यक्ति को अलग अलग वाद प्रस्तुत करने के लिए अलग अलग तैयारी करनी पड़ती, अलग अलग साक्ष्य प्रस्तुत करनी पड़ती, अलग अलग वकील करने पड़ते, अलग अलग न्यायालय शुल्क अदा करनी पड़ती। इस से बहुत सा समय और धन खर्च होता। यदि ये सभी व्यक्ति संयुक्त रूप से एक ही वाद प्रस्तुत करें तो इन्हें समय और धन कम खर्च करना पड़ेगा और प्रति व्यक्ति जो खर्च आएगा वह नाम मात्र का होगा।

लेकिन इस तरह अनेक व्यक्तियों द्वारा वादी के रूप में संयोजित हो कर एक ही वाद प्रस्तुत करने से कुछ परेशानियाँ भी खड़ी हो सकती हैं। जैसे प्रत्येक वादी को दी जानी राहत के लिए प्रत्येक वादी वादी की साक्ष्य ली जानी आवश्यक है। इस तरह एक ही वाद में अनेक साक्षी हो जाएंगे और जब तक सभी साक्षियों की साक्ष्य न्यायालय द्वारा नहीं ले ली जाती है तब तक मुकदमा आगे नहीं बढ़ेगा। हो सकता है इस बीच कुछ वादी लापरवाही बरतने लगें और उन की साक्ष्य न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने में समय  ले ले। ऐसी परिस्थिति में मुकदमे में निर्णय आने में देरी हो और मुकदमे का निर्णय होने में और देरी हो। इस के लिए न्यायालय को दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम दो में यह शक्ति प्रदान की हुई है कि जब अनेक वादियों के संयोजन से वाद के विचारण में उलझन या देरी उत्पन्न होने की संभावना हो वह वादियों को यह निर्देश दे सकता है कि वे पृथक पृथक वाद प्रस्तुत करें, जिन का विचारण पृथक पृथक हो सके। वह न्याय में देरी और उलझन को हटाने के लिए कोई भी उपयुक्त आदेश दे सकता है।

सी तरह यदि किसी वाद में एक ही कृत्य (Act) या संव्यवहार  (Transaction) या, कृत्यों या संव्यवहारों की श्रंखला के बारे में या उस से पैदा होने वाली राहत के संबंध में अनेक व्यक्तियों से राहत प्राप्त करना कथित किया गया है, या ऐसी राहत के लिए अनेक व्यक्तियों के विरुद्ध अनेक वाद लाए जाते तो विधि का सामान्य प्रश्न उत्पन्न होता हो तो उन सब व्यक्तियों को प्रतिवादी के रूप में संयोजित किया जा कर उन के विरुद्ध एक ही वाद न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है। जैसे एक नगर के बहुत से दुकानदार पीवीसी थैलियों का प्रयोग कर रहे हैं जिस से नगर में कचरा उत्पन्न हो रहा है और उन के विरुद्ध ऐसी थैलियों के उपयोग पर प्रतिबंध के लिए वाद लाया जाना हो तो उन सब दुकानदारों को एक साथ प्रतिवादी के रूप में संयोजित किया जा कर एक ही वाद लाया जा सकता है। ऐसे मामलों मे न्यायालय को यह भी अधिकार दिया हुआ है कि यदि ऐसे वाद में न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि प्रतिवादियों को इस तरह से संयोजित किए जाने से विचारण में उलझन उत्पन्न होती है या निर्णय में देरी होती है तो वह न्याय हित में सभी प्रतिवादियों के विरुद्ध पृथक पृथक वाद प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है।

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