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एक वाद हेतुक के आधार पर प्रस्तुत वाद में अनेक अधिकारों के आधार पर अनेक अनुतोष चाहे जा सकते हैं तथा अनेक वाद हेतुकों को एक ही वाद में संयोजित किया जा सकता है।

समस्या-

सुजानगढ़, राजस्थान से विनोद कुमार शर्मा ने पूछा है –

क्या वादी विशिष्ठ अनुतोष अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत प्रस्तुत वाद में स्वत्व के आधार पर वैकल्पिक अनुतोष की मांग कर सकता है? जब सिविल न्यायाधीश यह मान ले कि वादी विशिष्ठ अनुतोष अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत डिक्री प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है तब क्या सिविल न्यायाधीश उसी वाद में स्वत्व के आधार पर वैकल्पिक अनुतोष के लिए वादी के पक्ष में डिक्री प्रदान कर सकता है? और क्या जब सिविल न्यायाधीश उपरोक्त प्रकार से विशिष्ठ अनुतोष, अधिनियम की धारा-6 के वाद में वैकल्पिक अनुतोष की डिक्री वादी के पक्ष में पारित कर देता है तो उस की अपील जिला न्यायाधीश के न्यायालय में होगी या नहीं?

समाधान-

Code of Civil Procedureविशिष्ठ अनुतोष अधिनियम की धारा-6 में यह उपबंधित है कि यदि किसी व्यक्ति को विधि की रीति के अतिरिक्त अन्य रीति से किसी अचल संपत्ति से बेकब्जा किया गया हो तो वह व्यक्ति या उस के माध्यम से अधिकार रखने वाला व्यक्ति दीवानी वाद प्रस्तुत कर उस संपत्ति पर पुनः कब्जा प्राप्त कर सकता है। लेकिन वह ऐसा वाद उस का कब्जा छीने जाने की तिथि से छह माह की अवधि में ही कर सकता है। इस धारा में दीवानी न्यायालय जो भी डिक्री प्रदान करेगी उस की अपील नहीं हो सकती।

स तरह इस धारा के अंतर्गत किसी अचल संपत्ति पर कब्जा रखने वाले व्यक्ति को विधि के विरुद्ध बेकब्जा किए जाने पर उस संपत्ति का कब्जा पुनः प्राप्त करने हेतु वाद प्रस्तुत करने का अधिकार प्रदान किया गया है, चाहे वह उस संपत्ति का स्वामी या स्वत्वाधिकारी हो या न हो।

सी तरह हर उस व्यक्ति को जिस का किसी संपत्ति पर स्वत्व है अपने स्वत्व के आधार पर संपत्ति का कब्जा प्राप्त करने हेतु वाद प्रस्तुत करने का अधिकार है।

दि किसी व्यक्ति के पास दोनों अधिकार हैं तो वह दोनों अधिकारों के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है।

दीवानी प्रक्रिया संहिता का आदेश 2 नियम 2 यह कहता है कि एक व्यक्ति को एक वाद हेतुक के आधार पर प्रस्तुत वाद में उस वाद हेतुक पर आधारित सभी दावे प्रस्तुत करने चाहिए। यदि कोई किसी अनुतोष का लोप करता है तो बाद में वह उस अनुतोष के लिए वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता।

दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 3 के अंतर्गत एक वाद में विभिन्न वाद हेतुकों का संयोजन किया जा सकता है, अर्थात अनेक वाद हेतुकों के आधार पर एक ही वाद प्रस्तुत किया जा सकता है।

दि हम उक्त सभी प्रावधानों का ध्यान  से अध्ययन करें और आप के मामले के बारे में विचार करें तो पाएंगे कि वादी के पास दो अधिकार हैं, एक तो कब्जे से विधिक रीति के अतिरिक्त अन्य रीति से बेकब्जा किए जाने पर कब्जा प्राप्त करने हेतु वाद प्रस्तुत करने का अधिकार और दूसरा यदि उस के पास उस अचल संपत्ति का स्वत्व भी है तो स्वत्व के आधार पर अचल संपत्ति का कब्जा प्राप्त करने का अधिकार। किन्तु इन दोनों अधिकारों के आधार पर वाद प्रस्तुत करने के लिए वाद हेतुक केवल तभी उत्पन्न होता है जब कि वादी को बेकब्जा कर दिया गया हो, अर्थात उसे बेकब्जा किये जाने के कारण वाद हेतुक उत्पन्न होगा। इस तरह बेकब्जा किया गया व्यक्ति कब्जे के लिए वाद प्रस्तुत करेगा तो वह एक या दोनों अधिकारों के अंतर्गत वाद प्रस्तुत करेगा तो उस का वाद हेतुक एक ही होगा। यदि वह केवल एक आधार पर वाद प्रस्तुत करता है तो यह माना जाएगा कि उस ने दूसरा आधार त्याग दिया है।  इस तरह दोनों अधिकारों के लिए एक ही वाद प्रस्तुत करना वादी की बाध्यता है। वह दोनों आधारों पर एक ही वाद प्रस्तुत कर सकता है।

कोई भी सिविल न्यायालय दो आधारों पर प्रस्तुत वाद में तथ्यों के आधार पर एक आधार को गलत और दूसरे आधार को सही सिद्ध पा सकता है। इस स्थिति में एक आधार पर दावे को गलत और दूसरे पर सही मान कर वाद डिक्री कर सकता है।

दि धारा 6 विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम के अंतर्गत प्रदत्त अधिकार के आधार पर प्रस्तुत दावे में अन्य आधार लिए गए हों और इस धारा के अधिकार के आधार पर दावा अमान्य कर दिया हो और अन्य अधिकार के आधार पर वाद डिक्री कर दिया हो तो उस डिक्री की अपील हो सकती है। लेकिन धारा 6 विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम के आधार पर दावा निरस्त किया हो या डिक्री किया गया हो उस की अपील नहीं हो सकती है। अपील करने वाला अपील में धारा 6 विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम के अधिकार का आधार नहीं ले सकता।  यदि वह लेता भी है तो भी वह शून्य माना जाएगा।

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