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दीवानी वाद निर्धारित अवधि के उपरान्त प्रस्तुत नहीं किया जा सकता

 समस्या-

मैं ने 6.02.2006 को एक मकान खरीदने की संविदा की थी। दिनांक 04-02.2006 को मैं ने विक्रेता को अग्रिम राशि 50,000/- रुपए दिए। संविदा 3, 50, 000/- की थी। परन्तु विक्रेता को वह संपत्ति दान में प्राप्त हुई थी और विक्रेता ने मुझे मकान के पूरे दस्तावेजात नहीं बताए थे। मैं ने दिनांक 11-02.2004 को विक्रेतागण के विरुद्ध एक परिवाद दायर किया और फौजदारी मुकदमा किया। प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट ने मेरे परिवाद को माना और विक्रेता को धारा 420 भा.दं.संहिता के अन्तर्गत दोषी माना। विक्रेता  उस मुकदमे को सत्र न्यायालय में ले गए। सत्र न्यायालय ने उस मामले को दीवानी प्रकृति का मानते हुए निर्णय दिया। मैं मुकदमे को उच्च न्यायालय में ले गया। उच्च न्यायालय ने भी दिनांक 06.02.2012 को यही निर्णय दिया कि मामला दीवानी प्रकृति का है।   क्या मैं अब सिविल मुकदमा दायर कर सकता हूँ?

-संचित, चूरू, राजस्थान

समाधान-

प ने अपने प्रश्न में अनेक तथ्य छिपा लिए हैं।  विक्रेता को संपत्ति दान में मिलने मात्र से यह स्पष्ट नहीं होता कि आप को धारा-420 भा.दं.संहिता के अंतर्गत मुकदमा क्यों करना पड़ा। यह तो तभी संभव था जब कि संपत्ति को बेचने का विक्रेता को अधिकार न होता और उस ने आप के साथ संविदा कर के रुपया प्राप्त किया होता। संभव है ऐसा ही हुआ हो लेकिन आप ने  यह बात अपने प्रश्न में प्रकट नहीं की।

प की संविदा दिनांक 06.02.2006 को हुई थी, रुपया आप दो दिन पहले ही दे चुके थे। आप ने संविदा करने वाले के विरुद्ध फौजदारी मुकदमा किया। आखिर आप उस मुकदमे से राहत क्या चाहते थे। एक फौजदारी मुकदमे में अपराध करने वाले व्यक्ति को केवल मात्र सजा और जुर्माना हो सकता है।   जिस से परिवादी को केवल संतोष प्राप्त होता है। कोई भौतिक राहत प्राप्त नहीं होती। यह अवश्य  है कि न्यायालय परिवादी को कुछ हर्जाना दिला सकती है। लेकिन प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की हर्जाना दिलाने की सीमा भी सीमित होती है। इस कारण यह तो आरंभ से निश्चित था कि आप द्वारा विक्रेता को दिया गया अग्रिम रुपया आप के परिवाद पर संस्थित फौजदारी मुकदमे से प्राप्त नहीं हो सकता।

जो तथ्य आप ने बताए हैं उन के अनुसार आप को जिस दिन यह पता लगा कि विक्रेता ने उस का संपत्ति पर विक्रयाधिकार न होते हुए भी आप के साथ संविदा कर के रुपए 50,000/- प्राप्त कर लिए हैं। उसी दिन वाद कारण उत्पन्न हो चुका था और दीवानी मुकदमा करने के लिए अवधि आरंभ हो चुकी थी। कोई भी वाद अवधि अधिनियम द्वारा निर्धारित अवधि व्यतीत हो जाने के उपरान्त प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। आप के पक्ष में वाद कारण उत्पन्न होने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि में आप यह मुकदमा कर सकते थे। आप के द्वारा मुकदमा करने की अवधि समाप्त हो चुकी है। अब आप उन 50,000/- रुपए की वापसी और हर्जाने के लिए  दीवानी मुकदमा नहीं कर सकेंगे।

फिर भी हो सकता है कि कोई और राह निकल आए। इस के लिए आप अपने क्षेत्र के किसी वरिष्ठ दीवानी वकील से मिलें और समस्त दस्तावेज और परिस्थितियाँ उन्हें बताएँ। यदि आप के उन 50,000/- रुपयों की वसूली के लिए कोई उपाय हो सकेगा तो वे अवश्य बता देंगे।

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