दूसरी पत्नी को पेंशन क्यों नहीं?
|समस्या-
सत्यकी यादव ने आजमगढ़, उत्तर प्रदेश से पूछा है-
मेरे पिता जी डिग्री कॉलेज के सेवा निवृत्त अध्यापक थे उनकी मृत्यु नौ जनवरी को हो गयी। उन्होंने दो शादियाँ की थीं। पहली पत्नी से कोई संतान नहीं है। उन्होंने पेंशन की उत्तराधिकारी अपनी दूसरी पत्नी को बनाया है। कोषाधिकारी द्वारा यह कहते हुए पेंशन जारी नहीं की जा रही है कि पहले उन की बड़ी पत्नी को पेंशन जारी कि जायेगी और उनके मरने के बाद दूसरी पत्नी को। जब कि पहली पत्नी भी हम लोगों के साथ में ही रहती है और वह भी चाहती हैं कि पेंशन दूसरी पत्नी के नाम से ही जारी हो.लेकिन कोषाधिकारी द्वारा जारी नहीं कि जा रही है।
समाधान-
सरकारी कर्मचारी के देहान्त के उपरान्त पेंशन पेंशन के नियमों के अनुसार मिलती है, इस आधार पर नहीं कि वह किसे नॉमिनी बना कर गया है। उत्तराधिकार का प्रश्न भी कानून से तय होता है न कि व्यक्ति की इच्छा से। व्यक्ति अपनी संपत्ति को अपनी इच्छा से वसीयत कर सकता है। लेकिन पेंशन मृत व्यक्ति की संपत्ति नहीं होती। वह उस के निकटतम आश्रितों को मिलने वाला कानूनी लाभ मात्र है।
आप के पिता हिन्दू थे। उन्हें 1955 में हिन्दू विवाह अधिनियम पारित होने के बाद पहली पत्नी के जीवित रहते या उस से विवाह विच्छेद हुए बिना दूसरा विवाह करने का कोई अधिकार नहीं था। इस प्रकार आप के पिता का दूसरा विवाह वैध नहीं था। भले ही उसे आप के पिता की पहली पत्नी ने स्वीकार कर लिया हो। आप की माता जी आप के पिता की वैध पत्नी नहीं हैं। आप के पिता की पहली पत्नी जीवित हैं इस कारण से इस पेंशन पर अधिकार है। उन के कहने से भी यह पेंशन किसी दूसरे व्यक्ति को नहीं दी जा सकती है।
यदि आप के पिता की पहली पत्नी आप के साथ ही रहती हैं और चाहती हैं कि उन पेंशन आप की माता जी को मिले तो इस में कोई परेशानी नहीं है। आप के पिता की पहली पत्नी पेंशन प्राप्त कर सकती हैं और हर माह वे आप की माता जी को दे सकती हैं या खुद प्रयोग में ले सकती हैं। यह बिलकुल समझ से परे है कि आप और आप की माता जी फिर भी क्यों चाहते हैं कि पेंशन आप की माता जी को ही मिले। साम्य का सिद्धान्त भी यही कहता है कि उन्हें ही पेंशन मिलनी चाहिए। आप की माता जी के पास तो आप हैं। आप के पिता की पहली पत्नी को यदि आप और आप की माता जी आश्रय नहीं देते हैं तो वह तो बिलकुल निराश्रित हो जाएंगी।
Sir divorce wife get husband defense pension after husband death. No any other income divorce lady. Divorce ke baad dono Mai se kisi ne remarriage Nahi ki. Sir kya DIVORCE WIFE ko husband ki death ke baad husband ki govt. Pension mil sakti Hai.
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काफी लंबे प्रयास के बाद आज दोनों पत्नी के नाम से पारिवारिक पेंशन जारी कर दी गयी .पहले उनकी बड़ी पत्नी को दी जायेगी जब तक वो जीवित हैं.उनकी मृत्यु के बाद उनकी दूसरी पत्नी को पारिवारिक पेंशन दी जायेगी |.
सुप्रीम कोर्ट का हाल ही में आया एक निर्णय
अभी तक हम सबने कहावत पढी और सुनी है कि “मियां बीवी राजी, क्या करेगा काजी?” लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में सुनाये गये एक निर्णय की गहराई में जाने पर जो बात निकलकर सामने आयी है, उसके आधार पर मैं एक नयी कहावत का सृजन करने का दुस्साहस कर रहा हूँ-“दोनों बीवी राजी, क्या करेगा काजी (कानून)?”
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिसका दूरगामी परिणाम क्या होगा? यह अभी कहना जल्दबाजी होगा, लेकिन चूंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरुद्ध किसी भी अदालत में अपील नहीं की जा सकती। इसलिये प्रत्येक भारतीय के लिये मामनीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को मानना संविधान द्वारा निर्धारित बाध्यता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि किसी पुरुष की मृत्यु के बाद यदि उसकी पहली पत्नी को कोई आपत्ति नहीं हो तो उसकी दूसरी पत्नी को भी सरकारी नौकरी में अनुकंपा नियुक्ति पाने का कानूनी अधिकार है। जबकि हम सब जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के ठीक विपरीत हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक विवाहित पुरुष, एक समय में केवल एक ही पत्नी रख सकता है।
एक विवाहित स्त्री पर भी यही बात लागू होती विवाहित होते हुए दूसरी शादी करना भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की धारा 494 और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 17 के तहत अपराध माना गया है। जिसमें सात साल तक के कड़े कारावास की सजा दिये जाने की व्यवस्था है।इन दोनों कानूनों के विद्यमान होने के बावजूद भी सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पहली पत्नी की अनुमति से दूसरी पत्नी को मृतक पति के स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति दी जा सकती सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय समाज और कानून को ऐसे रास्ते पर ले जाता हुआ प्रतीत हो रहा है, जिसका अन्त न जाने कितने भयावह परिणामों को जन्म दे सकता है!
मृतक के स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति
कल को सुप्रीम कोर्ट यह भी कह सकता है कि यदि पहली पत्नी को किसी प्रकार की आपत्ति नहीं है, तो कोई पुरुष दूसरी पत्नी रख सकता है। बल्कि देखा जाये तो यही निर्णय दूसरी पत्नी को मान्यता प्रदान कर चुका है। केवल अन्तर इतना सा है कि दूसरी पत्नी को सुप्रीम कोर्ट ने जो मान्यता प्रदान की है, वह पति के मरने के बाद प्रदान की यद्यपि मुद्दा यह नहीं है, मान्यता कब प्रदान की है, बल्कि मुद्दा यह है कि पहली विवाहिता पत्नी के होते हुए, जब एक पुरुष को दूसरी पत्नी रखने का कानून में प्रावधान है ही नहीं तो फिर, दूसरी पत्नी को किसी भी सूरत में मृतक पति की वारिस कहलाने का कानून द्वारा अधिकार कैसे प्रदान किया जा सकता है? परन्तु, चूंकि सुप्रीम कोर्ट तो सुप्रीम कोर्ट है! आदेश दे दिया तो दे दिया, कोई क्या कर सकता है? अब दूसरी पत्नियों को सरकारी सेवा में रहे मृतक पतियों के स्थान पर नौकरी पाने के लिये केवल, पहली पत्नी की अनुमति लेनी होगी और मिल जायेगी, अनुकम्पा के आधार पर सरकारी नौकरी।
इस निर्णय के प्रकाश में मृतक के स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति दिये जाने के नियम पर भी विचार करने की आवश्यकता है। मैं जितना समझता हूँ, किसी लोकसेवक की असामयिक मृत्यु हो जाने पर, उसके परिवार को सहारा देने के लिये सहानुभूति के आधार पर, मृतक के कानूनी वारिसों को अनुकम्पा नियुक्ति दी जाती है। सम्भवतः यह प्रावधान पूरी तरह से मानवीयता को दृष्टिगत रखते हुए बनाया गया जिस सरकारी विभाग में एक व्यक्ति अपना पूरा जीवन सेवा करता है, उस विभाग की भी उस व्यक्ति के परिवार के प्रति कुछ मानवीय जिम्मेदारी होनी चाहिये, यह मानकर इस जिम्मेदारी को अनुकम्पा नियुक्ति प्रदान करके पूरी करने का प्रयास किया जाता रहा है। लेकिन इसके लिये केवल कानूनी वारिसों को ही परिवार के सदस्य माना जाता है, जिनमें मृतक की पत्नी, पुत्र, पुत्री, पोत्र, विशेष परिस्थितियों में पति भी अनुकम्पा नियुक्ति के हकदार हो सकते हैं।
इस मामले में तो सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी महिला को अनुकम्पा नियुक्ति प्रदान करने का आदेश दिया है, जो मृतक के जिन्दा रहने तक, मृतक के परिवार की कानूनी सदस्य भी नहीं थी। ऐसे में मृतक के परिवार को सम्बल प्रदान करने के लिये ऐसी पत्नी को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी प्रदान करने से मृतक के परिवार को क्या हासिल होगा, यह भी विचारणीय विषय है? एक ऐसी महिला को, किसी ऐसे मृतक पुरुष की मृत्यु के बाद, जो उसका वैध पति नहीं था, को उस मृतक की पत्नी का दर्जा देना, जिसने एक वैध विवाहिता पत्नी के अधिकारों पर बलात अतिक्रमण किया हो कहाँ का न्याय है? समझ से परे है?
राम विलास पासवान ने पहली पत्नी को
तलाक दिए बिना दूसरा विवाह किया|
इस निर्णय में सुप्रीम कार्ट के न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की पीठ ने कर्नाटक सरकार की एक अपील को खारिज करते हुए कहा कि जब दोनों पत्नी राजी हो गई हैं तो आप आपत्ति करने वाले कौन होते हैं। यदि एक पत्नी अनुकंपा नियुक्ति चाहती है और दूसरी मुआवजे संबंधी लाभ चाहती है तो आपको क्या परेशानी है? यहाँ पर सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इसी तर्ज पर कल को यह भी कहा जा सकता है कि जब दो औरतें एक पुरुष से विवाह करने को राजी हैं, तो सरकार होती कौन है, आपत्ति करने वाली? यद्यपि व्यवहार में पहले से भी यही होता आ रहा है।
मैं आपसे ये पूछना चाहता हूँ कि क्या पहली पत्नी कि मृत्यु के पश्चात पारिवारिक पेंशन का लाभ दूसरी पत्नी को भी मिलेगा.?
मैं आपसे ये पूछना चाहता हूँ कि क्या पहली पत्नी कि मृत्यु के पश्चात पारिवारिक पेंशन का लाभ दूसरी पत्नी को भी मिलेगा.???????