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देरी से मांगने वाले को न्याय नहीं मिलता

 औरंगाबाद महाराष्ट्र से समीर डी ने पूछा है –
मेरी उम्र 42 वर्ष है, मेरे दादा जी गाँव में रहते थे। उन को इनामी जमीन मिली थी। लेकिन उन के देहान्त के बाद मेरे पिताजी वह गाँव छोड़ कर नौकरी की तलाश में शहर आ गए। उन्हों ने जमीन पर ध्यान नहीं दिया। उसे आज पचास वर्ष हो गए हैं। हमारे पास कागजात भी नहीं हैं। क्या वह जमीन हमें मिल सकती है। 
 उत्तर –
समीर जी,
कानून का एक सिद्धांत है कि देरी से मांगने वाले को न्याय नहीं मिलता। जिसे न्याय चाहिए उसे समय रहते न्याय के लिए आवाज उठानी चाहिए। अवधि की एक सीमा तक आप अपने हक के लिए लड़ाई लड़ सकते हैं लेकिन सीमा निकल जाने के उपरांत नहीं। इस संबंध में भारत में अवधि अधिनियम भी है जिस में यह निश्चित किया हुआ है कि किस तरह के मामले में कब तक अदालत में वाद लाया जा सकता है। किसी संपत्ति पर कब्जे के लिए दावा 12 वर्ष के उपरांत नहीं लाया जा सकता। 
प के मामले में आप को केवल स्मृति है कि आप के दादा जी को कोई जमीन मिली थी। फिर आप के पिता जी गाँव छोड़ आए, उस बात को पचास वर्ष हो चुके हैं। वस्तुतः आप के पिता ने उस जमीन पर अपना दावा त्याग दिया। अब आप को न तो यह पता है कि वह जमीन कौन सी है? वह किस के कब्जे में है? जिस के कब्जे में है वह कितने समय से उस पर काबिज है और किस आधार पर कब्जे में आया है। वैसे भी किसी अचल संपत्ति पर स्वामित्व का सब से बड़ा सबूत उस पर कब्जा है।  बिना किसी तफसील के आप क्या कर पाएंगे। यदि आप यह सब बातें जान पाए और उस भूमि पर अपने स्वामित्व को सिद्ध करने की स्थिति में आ भी गए तो भी कब्जा प्राप्त करने के लिए केवल सक्षम अदालत में दावा पेश किया जा सकता है। दावा पेश होने पर जिस व्यक्ति के कब्जे में वह जमीन है, वह बचाव के लिए यह आधार ले सकता है कि आप का दावा अवधि सीमा के बाहर है और वह उस जमीन पर विगत 12 वर्ष से अधिक समय से निर्विवादित रूप से कब्जे में है, उस का कब्जा हटाया नहीं जा सकता।
मेरी राय में आप उस जमीन को वापस कब्जे में लेने के बारे में सोचना छोड़ ही दें तो अधिक अच्छा है। वरना बहुत सा समय और धन खर्च डालेंगे और हाथ कुछ भी न लगेगा।
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