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द्वितीय अपील की समाप्ति और न्याय शुल्क में वृद्धि : भारत में विधि का इतिहास-57

लॉर्ड हेस्टिंग्स ने अपने न्यायिक सुधारों के अंतर्गत सदर और प्रांतीय न्यायालयों की तरह ही  अधीनस्थ न्यायालयों की कार्यप्रणाली में भी परिवर्तन किए। उस ने जिला दीवानी अदालत के संयुक्त और सहायक न्यायाधीशों के पद समाप्त कर दिए। जिला दीवानी अदालत व रजिस्ट्रार के न्यायालयों में न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति के लिए अर्हताएँ निर्धारित कर दी गईँ। अब जिला अदालत के न्यायाधीश पद के लिए तीन वर्षों तक सहायक न्यायाधीश, संयुक्त न्यायाधीश या रजिस्ट्रार के पद पर कार्य करने का अनुभव होना अथवा तीन वर्षों तक सिविल या दांडिक न्यायिक दायित्व का निर्वहन करने का अनुभव होना अनिवार्य कर दिया गया। इसी तरह रजिस्ट्रार के पद के लिए फोर्ट विलियम कॉलेज द्वारा उक्त पद पर नियुक्त किए जाने की सक्षमता का प्रमाण-पत्र प्राप्त होना अनिवार्य किया गया।
1814 के विनियम-23 द्वारा इन न्यायालयों के क्षेत्राधिकार में भी परिवर्तन कर उन्हें निश्चितता प्रदान कर दी गई। जिला दीवानी अदालत को 5000 रुपए मूल्य के, , रजिस्ट्रार को 500 रुपए मूल्य तक के, सदर अमीन को 150 रुपए मूल्य तक के तथा मुंसिफ को 64 रुपए मूल्य तक के दीवानी मुकदमे सुनने का अधिकार दिया गया था। बाद में 1821 में यह अधिकारिता बढ़ा कर रजिस्ट्रार को जिला अदालत द्वारा निर्दिष्ट 500 रुपए मूल्य से अधिक के मुकदमों तक, सदर अमीन को पाँच सौ रुपए मूल्य तक के तथा मुंसिफ को 150 रुपए मूल्य तक के दीवानी मुकदमों की सुनवाई करने तक बढ़ा दी गई थी। जिला अदालत को इन सभी अधीनस्थ अदालतों के निर्णयों की अपील की सुनवाई करने का अधिकार दिया गया था। मुंसिफ के न्यायालयों की संख्या में वृद्धि कर के प्रत्येक थाना क्षेत्र में कम से कम एक मुंसिफ की नियुक्ति  कर दी गई। आवश्यकता होने पर किसी थाना क्षेत्र में एक से अधिक मुंसिफ नियुक्त किए जा सकते थे। मुंसिफ और सदर अमीन केवल भारतीय व्यक्तियों के मामले ही सुन सकते थे। किसी मामले में ब्रिटिश प्रजाजन या यूरोपीय व्यक्ति के पक्षकार होने पर ये न्यायालय उस की सुनवाई नहीं कर सकते थे। 
मुकदमों की संख्या की अधिकता के कारण दो अपीलों के सिद्धांत को तिलांजलि दे दी गई और न्यायालय शुल्क बढ़ा दिया गया। अब किसी भी न्यायालय के निर्णय की केवल एक ही अपील हो सकती थी। अपीलीय निर्णय अंतिम कर दिया गया, उस की अपील नहीं की जा सकती थी। न्यायालय शुल्क में वृद्धि कर लघुवादों में एक रुपए पर एक आना अर्थात 6.25 प्रतिशत, 50000 रुपए मूल्य से एक लाख तक के मामलों में एक हजार रुपए, तथा इस से अधिक मूल्य के मामलों में दो हजार रुपए न्याय शुल्क निश्चित कर दी गई। लॉर्ड हेस्टिंग्स ने न्यायशुल्क अदायगी के लिए स्टाम्प पेपर का उपयोग आरंभ किया। इस व्यवस्था से राजस्व संग्रह में वृद्धि हुई किन्तु न्यायार्थियों को भारी न्यायशुल्क अदा करने के कारण असुविधा का सामना करना पड़ा। उस ने राजस्व संबंधी मामलों का निपटारा मध्यस्थता से किए जाने का प्रावधान भी किया। अब न्यायालय के माध्यम से मध्यस्थ नियुक्त करवा कर लोग अपने राजस्व संबंधी मामले सुलझा सकते थे।
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