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नए व्यवसायिक संस्थान के लिए प्रारंभिक औपचारिकताएँ

 अभिनव गुप्ता पूछते हैं –
मैं एक कंपनी की सेवा में हूँ,  मेरी पत्‍नी एचआर कंसल्‍टेंट का काम शुरू करना चाहती है। एक फ्रीलांस कंसल्‍टेंट के रूप में काम करने के लिए उसे क्‍या कोई फर्म या ऐसी ही कोई अन्‍य एंटिटी रजिस्‍टर करानी होगी?  या किस तरह वह कानूनी तरीके से यह काम कर सकती हैं… अगर सांझेदारी फर्म खोलना हो तो मैं उसका कागजी सांझेदार बन सकता हूं या नहीं? साथ ही यह भी बताएं कि इसके लिए सही तरीका क्‍या है और क्‍या क्‍या करने की मांग करता है? 


 उत्तर –


अभिनव जी,
चआर कंसल्टेंट का काम एक प्रोफेशनल काम है। इस के माध्यम से किसी अन्य संस्थान को सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। यदि इस काम को आप की पत्नी अकेले चलाती है तो इसे आरंभ करने के लिए किसी कानूनी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इस काम को करने के लिए वे एक या अधिक कर्मचारी को नियोजित करती हैं और वह कर्मचारी कहीं बैठकर काम करता है तो यह कार्य एक वाणिज्यिक संस्थान हो जाएगा। तब इस संस्थान को जहाँ वह स्थित है उस राज्य के दुकान एवं वाणिज्य संस्थान अधिनियम (Shops and Commercial Establishment Act)  के अंतर्गत एक वाणिज्यिक संस्थान के रूप में पंजीकृत कराना होगा। इस के साथ ही इस अधिनियम में बताई गई सभी कानूनी बाध्यताएँ पूर्ण करनी होंगी। इस के लिए आप अपने राज्य का यह अधिनियम और उस के अंतर्गत बने नियमों की पुस्तक खरीद लें और पढ़ लें। इस से आप को यह जानकारी हो जाएगी कि आप को क्या क्या औपचारिकताएँ पूर्ण करनी होंगी। इस के अंतर्गत जो रिकॉर्ड आदि रखने आवश्यक होते हैं उन की स्टेशनरी कानूनी स्टेशनरी रखने वाली दुकानों पर आप को मिल जाएगी। अधिकांश लोग जो दुकान या किसी वाणिज्य संस्थान के स्वामी हैं। वे इस पुस्तक को न तो खरीदते हैं और न ही उसे पढ़ते हैं। इस का नतीजा यह होता है कि उस की औपचारिकताएँ पूरी करने में उन से गलतियाँ होती हैं और श्रम विभाग कानून के उल्लंघन के लिए उन के विरुद्ध अभियोजन चलाता है।  
दि आप किसी कंपनी में कर्मचारी हैं तो किसी भी व्यवसाय में साझीदार बनने से पहले यह जाँच लें कि आप की नौकरी की संविदा में कोई ऐसी शर्त तो नहीं है जो आप को इस व्यवसाय में भागीदार बनने से रोकती हो। इस के साथ ही यह भी देखें कि आप की कंपनी स्वयं वैसा ही काम तो नहीं करती है जिस काम को वह फर्म करती हो जिस के आप साझीदार बनना चाह रहे हैं। यदि ऐसा है तो मेरी सलाह है कि आप फर्म में कागजी साझीदार भी न बनें। यदि किसी  संस्थान के स्वामी एक से अधिक व्यक्ति हैं तो वह साझेदारी फर्म हो जाएगी। इस साझेदारी फर्म का पंजीकृत होना आवश्यक है। अन्यथा एक अपंजीकृत साझेदारी को कानून कहीं मान्यता नहीं देगा। उस फर्म की ओर से कोई वाद न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया जा सकेगा। इस क
े अतिरिक्त भी अनेक परेशानियाँ उठ खड़ी होंगी। इस से अच्छा है कि आप अपनी पत्नी की इस फर्म को एक प्रोप्राइटर फर्म के रूप में ही चलाएँ।   
 
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