निकट के दीवानी मामलों के किसी वरिष्ठ वकील से परामर्श करें कि क्या अब भी आपको कोई उपाय उपलब्ध है?
|समस्या-
संजय गोयल ने कैलाश नगर, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़) से पूछा है-

वर्ष 2011 में मेरी बुजुर्ग माता जी को एक अन्य व्यक्ति व्दारा भ्रमित कर उनकी संपत्ति का मुख्तारनामा-आम ले लिया गया था। उसके बाद उसने उनकी संपत्ति अपनी भतीजी के नाम पर रजिस्ट्री करा ली थी। रजिस्ट्री के उपरांत उस व्यक्ति ने माताजी को कोई राशि नहीं दी है यह प्रमाणित है। माता जी ने तत्समय पुलिस में रिपोर्ट की थी। उनका 2017 में निधन हो चुका है। मााताजी की वसीयत के अनुसार उनके पोते (मेरे बेटे) उनकी संपत्ति के वारिसान है। अब मुझे विस्तृत रुप से जानकारी देते हुए उक्त रजिस्ट्री निरस्त कराने के लिए क्या करना होगा कृपया मार्गदर्शन करने का कष्ट करें।
समाधान-
आपने अपनी समस्या जिस तरह यहाँ रखी है उसमें कुछ विवरण छूटे हुए हैं। जैसे, यह संपत्ति किस तरह माताजी के स्वामित्व में आयी थी? पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से रजिस्ट्री कब कराई गयी? माताजी ने इस मुख्तारनामा और रजिस्ट्री को निरस्त कराने के लिए पुलिस में रिपोर्ट कराने के सिवा और क्या कार्यवाही की? आपको और आपको इन सब तथ्यों की जानकारी कब हुई? क्या आपके पास पावर ऑफ अटॉर्नी, विक्रय पत्र की रजिस्ट्री और पुलिस में कराई गयी रिपोर्ट की प्रतिलिपियाँ उपलब्ध हैं? संपत्ति कब से किसके कब्जे में है? और माताजी ने पुलिस में जो रिपोर्ट कराई उस पर क्या कार्यवाही की थी और उसका परिणाम क्या रहा?
आपको जानना चाहिए कि पुलिस का काम दीवानी मामलों के निपटारे का नहीं है। वे केवल किए गए अपराध का अन्वेषण कर सकते हैं और यदि आरोप को प्रमाणित करने हेतु पर्याप्त साक्ष्य उन्हें मिलती है तो अपराध करने वाले व्यक्ति को दंडित कराने हेतु उसके विरुद्ध अदालत के समक्ष आरोप पत्र दाखिल कर सकते हैं। इस से पावर ऑफ अटॉर्नी प्रारंभ से शून्य और अवैध नहीं होती और न ही उसके आधार पर किया गया संपत्ति हस्तान्तरण निरस्त होता है। पावर ऑफ अटॉर्नी को भ्रम उत्पन्न कर निष्पादित कराने के आधार पर प्रारंभ से शून्य घोषित कराना तथा उसके आधार पर निष्पादित किए गए विक्रय पत्र को निरस्त केवल एक दीवानी वाद सक्षम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर डिक्री प्राप्त करने से ङी संभव है। आपको यह भी जानकारी होनी चाहिए कि हर तरह के दीवानी वाद के लिए निश्चित अवधि है जिसके बाद इस तरह के दावे प्रस्तुत नहीं किए जा सकते।
आपके मामले में आपकी माताजी को उनके जीवनकाल में ज्ञात था कि उनसे एक पावर ऑफ अटार्नी लिखाई गयी है और उसके आधार पर संपत्ति का हस्तान्तरण हो चुका है। इस बात की वे पुलिस में शिकायत कर चुकी थीं। जिस दिन से उन्हें जानकारी हुई उससे तीन वर्ष की अवधि में उन्हें इस के लिए दीवानी वाद संस्थित करना चाहिए था। जो उन्होंने नहीं किया। इस तरह इस संपत्ति के लिए किसी भी तरह की कार्यवाही के लिए समय निकल चुका है और अब यह कार्यवाही की भी जाएगी तो वह निर्धारित अवधि में प्रस्तुत नहीं किए जाने के कारण निरस्त हो जाएगी।
फिर भी आपको चाहिए कि आप राजनान्दगाँव में या दुर्ग में किसी वरिष्ठ दीवानी वकील से मिलें और उनसे परामर्श लें। हमने यहाँ जिन अधूरी जानकारियों का उल्लेख किया है वे उन्हें बताएँ। इसके अलावा भी जो जानकारियाँ वे चाहें उन्हें उपलब्ध करवा कर परामर्श करें। हो सकता है परामर्श के उपरान्त कोई मार्ग निकल आए जिससे आप अपने बच्चों को उनके अधिकार की संपत्ति दिलवा सकें।