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न्यायालयों की श्रेणियाँ और उन में न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ

 राजीव तीसरा खंबा के नियमित पाठकों में से एक हैं।  अक्सर मुझ से प्रश्न पूछते रहते हैं। उन के ये प्रश्न किसी कानूनी समस्या से संबंधित न हो कर न्याय के लिए स्थापित व्यवस्था से संबंधित होते हैं। पिछले दिनों उन्हों ने जो प्रश्न पूछे हैं वे ऐसे ही हैं। प्रश्न बहुत साधारण प्रतीत होते हैं, किन्तु उन के उत्तर देना विस्तार में जाए बिना  संभव नहीं है। उन के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए उन के साथ-साथ आप को भी इस विस्तार में लिए चलता हूँ …..
में सब से पहले यह जानना चाहिए कि भारत में  किस किस तरह के न्यायालय हैं। सर्वोच्च न्यायालय और प्रदेशों में स्थापित उच्च न्यायालय के अतिरिक्त भारत में स्थापित न्यायालयों की दो प्रमुख श्रेणियाँ हैं। दीवानी न्यायालय और अपराधिक न्यायालय। जिला स्तर पर सब से बड़ा दीवानी न्यायालय जिला न्यायाधीश का न्यायालय होता है। अन्य न्यायालय इस के अधीनस्थ होते हैं। जिला न्यायालय की सहायता के लिए अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के न्यायालय होते हैं, जो जिला न्यायालय द्वारा स्थानान्तरित दीवानी मामलों की सुनवाई करते हैं। इस से निचले स्तर पर सिविल न्यायाधीशों के न्यायालय होते हैं जिन्हें वरिष्ठ और कनिष्ठ खंड की श्रेणियों में विभाजित किया गया है। सिविल न्यायाधीश कनिष्ठ खंड दीवानी मामलों के प्रारंभिक न्यायालय हैं, इन्हें 25000 रुपए तक के मूल्य के दीवानी मामलों को सुनने का अधिकार है। 25000 से 50000 रुपए तक मूल्य के मामलों को सुनने का अधिकार सिविल न्यायाधीश वरिष्ठ खंड के न्यायालयों को है। इन न्यायालयों के निर्णयों की अपील जिला न्यायाधीश के न्यायालय को की जा सकती है। जब कि 50000 रुपए से अधिक मूल्य के दीवानी मामलों की सुनवाई का अधिकार जिला न्यायाधीशों के न्यायालय को है। 
पराधिक न्यायालयों के मामले में प्रत्येक राज्य को एक सत्र विभाग माना गया है। आबादी के हिसाब से एक राज्य में अनेक सत्र विभाग हो सकते हैं। प्रत्येक सत्र विभाग में एक जिला या एकाधिक जिले हो सकते हैं। सामान्यतः प्रत्येक जिले में एक सत्र न्यायाधीश का न्यायालय होता है, इस की सहायता के लिए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीशों के न्यायालय स्थापित किए गए हैं। सत्र न्यायालय के अधीन न्यायिक मजिस्ट्रेटों के न्यायालय होते हैं। प्रत्येक जिले में एक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय तथा उस की सहायता के लिए अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय होते हैं। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से निचले स्तर पर न्यायिक मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त न्यायिक मजिस्ट्रेटों के न्यायालय होते हैं। इसी तरह महानगर क्षेत्रों में मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट तथा महानगर मजिस्ट्रेटों के न्यायालय स्थापित किए जाते हैं।
स के अतिरिक्त कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रत्येक जिले में जिला मजिस्ट्रेट का कार्यालय तथा उस की सहायता के लिए अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेटों के कार्यालय होते हैं। इस से निचले स्तर पर कार्यपालक मजिस्ट्रेटों के कार्यालय होते हैं। किसी भी राज्य में स्थापित सभी दीवानी और अपराधिक न्यायालयों का निरीक्षणीय क्षेत्राधिकार उस राज्य के उच्च न्यायालय को होता है। 
जिला मजिस्ट्रेट और कार्यपालक मजिस्ट्रेटों की नियुक्ति राज्य सरकारों द्वारा की जाती है। वे अक्सर राज्य के प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। जिला कलेक्टर जिला मजिस्ट्रेट होता है और अतिरिक्त कलेक्टर अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट। उपखंड अधिकारी, सहायक कलेक्टर, तहसीलदार आदि सभी प्रशासनिक अधिकारियों को कार्यपालक मजिस्ट्रेट के अधिकार प्रदत्त किए जाते हैं. ये सभी संघीय या राज्य प्रशासनिक सेवा और अधीनस्थ राज्य सेवा के अधिकारी होते हैं। इन की नियुक्ति के लिए चयन संविधान के अंतर्गत गठित संघीय तथा राज्य सेवा आयोगों द्वारा किया जाता है उन की सिफारिश पर राज्य सरकारें इन की नियुक्ति करती है।

प्रत्येक राज्य में राज्य न्यायिक सेवा तथा राज्य उच्च न्यायिक सेवा के कैडरों की स्थापना की गई है। राज्य न्यायिक सेवा के लिए चयन राज्य के उच्च न्यायालय के निर्देश पर राज्य सेवा आयोग द्वारा किया जाता है किन्तु इन्हें नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा प्रदान की जाती है। प्रत्येक उच्च न्यायालय के अधीन गठित उच्च न्यायिक सेवा कैडर के अधिकारियों का चयन व नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है। इस के लिए चयन न्यायिक सेवा के अधिकारियों को पदोन्नति के माध्यम से और कम से कम सात वर्ष का अनुभव रखने वाले विधि व्यवसाइयों में से सीधी भर्ती के माध्यम से किया जाता है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश व अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीशों के पदों पर उच्च न्यायिक सेवा के अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं। सिविल न्यायाधीश कनिष्ठ खंड तथा न्यायिक मजिस्ट्रेट के पदों पर राज्य न्यायिक सेवा के अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है। इसी कैडर में से वरिष्ठता व वरीयता के आधार पर पदोन्नति के माध्यम से सिविल न्यायाधीश वरिष्ठ खंड एवं मुख्य व अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटों की नियुक्ति की जाती है।     
अब राजीव के प्रश्न का आरंभिक भाग –
क न्यायाधीश बनने की प्रक्रिया क्या होती है? क्या कोई भी वकील विधि स्नातक हो तो क्या वह न्यायाधीश बन सकता है?

राजीव भाई,
दि हम एडवोकेट एक्ट बनने के पहले की स्थिति को भूल जाएँ तो आज-कल केवल व्यवसायिक विधि स्नातक  ही एक विधि व्यवसायी (वकील) हो सकता है। विधि स्नातक होना जज होने के लिए एक अर्हता मात्र है। राज्य न्यायिक सेवा में चयन के लिए उसे लिखित परीक्षा देनी होगी उस में वरीयता प्राप्त होने पर उस का साक्षात्कार लिया जाएगा। दोनों में सफलता प्राप्त होने पर उस का चयन होगा। इस के बाद उसे सफलता पूर्वक प्रशिक्षण पूरा करना होगा तदुपरान्त उस की नियुक्ति परिवीक्षा पर की जाएगी। परिवीक्षाकाल में उस का कार्य संतोषजनक होने पर ही उसे सेवा में स्थाई किया जाएगा। 
सी तरह उच्च न्यायिक सेवा के लिए राज्य न्यायिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों को वरिष्ठता और वरीयता के आधार पर पदोन्नति के माध्यम से पहले परीवीक्षा पर नियुक्ति दी जाती है।  उच्च न्यायिक सेवा के आधे पद सीधे कम से कम  सात वर्ष का अनुभव रखने वाले विधि व्यवसाइयों में से किया जाता है। पहले उ

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