न्यायालय को सारी परिस्थितियाँ बताएँ और मामले को लोक अदालत में निपटाने का निवेदन करें
|समस्या –
मैंने एक आदमी को दो चैक दिये थे। हम दोनों का पहले से कुछ विवाद चल रहा था। दोनों चैक की पेमेंट मैंने नकद कर दी थी। लेकिन विवाद की वजह से उसने एक चैक तो मेरा लौटा दिया लेकिन एक चैक देने से मना कर दिया। जो सिर्फ 35 हजार रूपये का था। उसने ये चैक बैंक में डाल दिया, मैंने पेमेंट स्टॉप करवा दी थी। छह साल से कोर्ट में केस चल रहा है। कोर्ट में भी उसने एक चैक वापस करने की बात मानी है। अब मेरी जॉब दूसरे शहर में लग गई है और हर सुनवाई पर कोर्ट आना मुश्किल है। अब छह साल लगातार लड़ने के बाद हिम्मत टूट गई है। क्या मैं कोर्ट में चैक की राशि जमा करवाकर ये केस खत्म करने की अपील कर सकता हूं। कोर्ट जो राशि कहे मैं देने के लिये तैयार हूं।
– प्रदीप, दिल्ली
समाधान –
जब से धारा-138 अपरक्राम्य विलेख अधिनियम के उपबंध अस्तित्व में आए हैं, चैक के संबंध में कुछ बातों का ध्यान रखना और सावधानियाँ बरतना आवश्यक हो गया है। चैक हमेशा प्राप्त कर्ता का नाम, तारीख और राशि भर कर ही देना चाहिए। जब तक चैक आप के हाथ वापस न आ जाए तब तक उस के धन का भुगतान नहीं करना चाहिए। यदि कोई कहे कि बाद में दे दूंगा तो उसे रकम देनी ही नहीं चाहिए। कोई कहे कि विश्वास करो तो कभी नहीं करना चाहिए अपितु उस से कहना चाहिए कि वह चैक बैंक में प्रस्तुत कर दे वहाँ से उसे भुगतान मिल जाएगा। वैसे भी चैक देने का अर्थ भुगतान ही है तो चैक की राशि का भुगतान नकद क्यों किया जाए? अक्सर विश्वास जिस पर किया जाता है वही आप को धोखा देता है। खैर !
आप ने कहा है कि वह एक चैक वापस लौटाना स्वीकार कर चुका है। लेकिन इस का यह अर्थ भी निकलता है कि आप ने चैक किसी न किसी ऐसे दायित्व के लिए दिया था जो विधिक रूप से वसूल किए जाने योग्य था। इस तरह के मामलों में वैसे भी जीतने के लिए कोई बचाव के आधार नगण्य हैं। आप अपने मामले को सिर्फ इसलिए लड़ना नहीं चाहते हैं कि न्यायिक प्रक्रिया थका देने वाली और अत्यन्त असुविधाजनक है। आप कोशिश करिए कि इस मामले में मुकदमा करने वाले व्यक्ति से आप का समझौता हो जाए। यदि समझौता न हो रहा हो तो आप मजिस्ट्रेट को सारी बात खुद बता दीजिए कि मामला क्या है और आप क्यों इस मामले में मुकदमा न लड़ कर समझौता चाहते हैं? मजिस्ट्रेट आप की बात को अवश्य समझेगा और कोई न कोई राह अवश्य निकाल लेगा। आजकल सभी स्थानों पर हर माह नियत तिथियों पर लोक अदालत लगती है। आप अपने मजिस्ट्रेट को लिखित में यह आवेदन कर सकते हैं कि मामले का निस्तारण लोक अदालत के माध्यम से किया जाए। लोक अदालत के माध्यम से इस तरह के मुकदमों में राजीनामा हो सकता है। निश्चित रूप से न्यायालय कोई न कोई मार्ग अवश्य निकाल लेगा।
मुझे नहीं लगता है कि अदालत या जज के पास पूरी बात सुनने का समय होगा. उसके पास हद से ज्यादा तो मुकद्दमों के अम्बार लगे हुए है.
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ऐसा नहीं है कि इस मामले में अदालत के पास सारी बात सुनने का समय नहीं होगा। मुकदमों की भरमार हर अदालत में अवश्य है। लेकिन फिर भी सुनवाई के लिए समय देना उन का कर्तव्य है। फिर यदि इस अदालत में बात नहीं सुनी जाती है और कोई निर्णय उन के विरुद्ध पारित कर दिया जाता है तो वे आगे अपील कर सकते हैं। अपील में वे यह भी कह सकते हैं कि उन्हें अधीनस्थ न्यायालय ने सुनवाई के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया है।
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गुरुदेव जी, उपरोक्त व्यक्ति की निचली अदालत में छह साल से केस लड़ते-लड़ते हिम्मत टूट चुकी है. क्या अदालत ने छह साल से एक बार उसकी बात सुनने की कोशिश क्यों नहीं की. फिर बेचारा क्या से अपील करेगा और क्या अपील मुफ्त में हो जायेगी और ना जाने अपील का ही निर्णय ही कितने सालों में आयेगा. आज अदालत सिर्फ तारीख देकर अपना कर्तव्य पूरा कर रही है. मुझे भी कल “एक्जीक्यूशन” के केस में बिना हमारी बात सुने ही एक नई तारीख मिल गई.
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