न्याय व्यवस्था की आलोचना में जन-हस्तक्षेप
|न्यायपालिका पर बहस
कार्यपालिका और विधायिका पर बहस एक आम बात है किन्तु हमारी मौजूदा संसदीय लोकतांत्रिक पद्धति के तीसरे खंबे न्याय पालिका पर बहस नगण्य है। जितनी है वह प्रकृति में अकादमिक है और केवल सेवा निवृत्त न्यायाधीशों, वकीलों के संगठनों और गिने चुने राजनेताओं तक सीमित है और, आमजन उस से बहुत दूर है। विगत कुछ समय से न्याय व्यवस्था पर खुली बहस की प्रवृत्ति प्रारम्भ हुई है। उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश, लोकसभा के अध्यक्ष और अन्य अनेक व्यक्तियों ने इस बहस में भाग लिया। इस के बाद केरल के स्थानीय निकाय मंत्री पाओली मोहम्मद कुट्टी के विवादित वक्तव्य और उन के विरुद्ध केरल उच्च न्यायालय द्वारा प्रारम्भ किए गए अवमानना प्रकरण ने इस बहस को आगे बढ़ाया है।
गलतियाँ, कमियां और दोष
संसदीय लोकतंत्र में न्याय पालिका की भूमिका महत्वपूर्ण है। लेकिन उस की कार्यप्रणाली में अनेक कमजोरियाँ और कमियाँ भी हैं जिन्हें दुरूस्त किया जाना आवश्यक है जिस से न्याय व्यवस्था की दक्षता को उन्नत बनाया जा सके। आम लोगों के मध्य इस तरह की सूचनाऐं हैं कि न्यायाधीशों का एक वर्ग भ्रष्ट है, इस में विवाद केवल मात्रा का है। इस तरह के भी आरोप हैं कि अनेक न्यायाधीश पक्षधरता प्रदर्शित करते हैं, और अनेक अयोग्य हैं। अनेक निर्णय समाज के कमजोर वर्गों के हितों की उपेक्षा करते हैं और उनकी हालत में सुधार के सामाजिक प्रयत्नों को बाधित करते हैं। अनेक निर्णय जन संघर्षों और जन संगठनों के प्रति अत्यन्त असहिष्णुता प्रदर्शित करते हैं। अनेक निर्णय आम जनता के हितों की उपेक्षा करते हुए वैश्वीकरण के सिद्धान्त के आगे मत्था टिकाते दिखाई पड़ रहे हैं। न्याय के महंगे होते जाने और न्यायालय की प्रक्रिया में अत्यधिक विलम्ब ने न्याय को आम जनता की शक्ति से परे और अनुपलब्ध बना दिया है। अधिकाधिक जनता हमारी न्याय प्रणाली में विश्वास खोती जा रही है।
अवमानना कार्यवाहियां
न्यायाधीशों की नियुक्तियों की पद्धति, पारदर्शिता, जवाबदेही और जन परीक्षण के अभाव के कारण दोषपूर्ण है। न्यायाधीशों के विरूद्ध न्यायिक अपव्यवहार के लिए कार्यवाही के प्रावधान असाध्य और अव्यावहारिक हैं। यहां तक कि किसी निर्णय की तर्कसंगत आलोचना को भी वर्तमान कानूनों के अन्तर्गत न्यायालय की अवमाननना की संज्ञा दिया जाना संभव है। अवमानना के मामलों की सुनवाई का तंत्र नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों के समाविष्ट न होने से दोषपूर्ण है। वर्तमान परिस्थितियों में अनेक न्यायिक निर्णयों से प्रवर्तनवादी रुझान के उदय की संभावनाऐं दिखाई देने लगी हैं। वैश्वीकरण की ताकतें उन का अपना एजेण्डा लागू करने के लिए न्यापालिका का अधिकाधिक उपयोग करने के लिए प्रयत्नशील हैं क्यों कि कार्यपालिका और विधायिका जनतांत्रिक हस्तक्षेप से प्रभावित होती है।
क्या किया जाए?
कुछ लोग यह राय प्रकट करते हैं कि न्यायपालिका की आलोचना से न्याय व्यवस्था पर से जनता का विश्वास उठ सकता है जो कि अत्यन्त खतरनाक स्थिति होगी; किन्तु जनतांत्रिक मूल्य इस राय से सहमत होने की अनुमति प्रदान नहीं करते। किसी भी व्यवस्था की आलोचना के बिना उस की कमियों, कमजोरियों और दोषों को दूर किया जाना संभव नहीं है और ये कमियां, कमजोरियां तथा दोष ही व्यवस्था में जन-विश्वास को समाप्त कर देते हैं। न्याय प्रणाली में जन-विश्वास को केवल कमियों, कमजोरियों और दोषों को दूर करने और सुव्यवस्थित कार्यप्रणाली के द्वारा ही अर्जित किया जा सकता है; अवमानना की कार्यवाही और दण्ड के भय से जन-आलोचना का मार्ग अवरुद्ध कर के नहीं। जन-हस्तक्षेप से ही दोषों का उपाय संभव है।
विषयः-ंउचय उत्तराखण्ड परिवहन निगम के बसों के टिकटो में अतिरिक्त सुविधाओं के शुल्क लिये जाने के बाबजूद सुविधा उपलब्ध नहीं कराये जाने के सम्बन्ध में पत्र।
महोदय,
सविनय नम्र निवेदन इस प्रकार है कि उत्तराखण्ड परिवहन निगम द्वारा अपनी बसों से काटे जाने प्रत्येक टिकट पर सुविघा के नाम पर बैठने का शुल्क, पीने का पानी का शुल्क, शुलभ शौचालय का शुल्क, गर्मी में पंखे कुलर का शुल्क, यात्रियों का बीमा खुलेआम बसूल किया जा रहा है। खटीमा में उत्तराखण्ड परिवहन निगम की काफी जमीन उपलब्ध है किन्तु यहाॅ से चलने वाली बसो में यात्रियों से खुलेआम सुविधा शुल्क को बसूल किया जाता है। यहाॅ पर बस स्टैण्ड में अतिक्रमण व तोड-ंउचयफोड की गयी है। बस स्टेशन पर बैठने की सही व्यवस्था, पीने का पानी नही है, पुरूष व महिलाओं के लिए शौचालय की व्यवस्था भी नहीं है, गर्मी में पंखे व कुलर की व्यवस्था भी उक्त स्टेशन में उपलब्ध नहीं है। यह शुल्क परिवाहन निगम द्वारा खटीमा में कई बर्षों से बसूल किया जा रहा है। कई बार इस सुविधा प्राप्त करने के लिए उत्तराखण्ड परिवहन के देहरादुन व टनकपुर लिखित रूप में (मुख्यमंत्री, राज्यपाल, प्रमुख सचिव) कई बार पत्र लिखे किन्तु उक्त लोगों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
अतः महोदय से निवेदन है उत्तराखण्ड परिवहन निगम द्वारा जो सुविघा शुल्क के नाम से टिकटों में अवैध बसूली बगैर सूविधा दिये की जा रही है। उस को या तो बन्द करा दी जाये और पिछले जो बसूली की गयी धनराशि से खटीमा बस स्टेशन में, पखा, पानी, बैठने, शौचालय की सुविधा के लिए उपभोक्ता को सुविधा न पहुचाने के जुर्म में उक्त विभाग के खिलाफ जाॅच बैठाकर कार्यवाही करने की कार्यवाही करने की कृपा करें।
धन्यवाद
आपके शुभचिन्तक
रोहित कुमार बर्मा
प््रादेष उपाध्यक्ष बेरोजगार संगठन, उत्तराखण्ड
निरन्तर भारत विकास हैल्पलाइन;छळव्द्ध
पो0 आ0 के सामने ,खटीमा
जिला-ंउचयउधम सिंह नगर राज्य-ंउचयउत्तराखण्ड
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