न्याय सस्ता, सुलभ और त्वरित क्यों न हो?
| राजस्थान में कोटा, उदयपुर और बीकानेर संभागों में हाईकोर्ट की बैंच स्थापित किए जाने हेतु आंदोलन जारी है। कोटा में वकीलों को न्यायिक कार्य का बहिष्कार करते दो माह से अधिक हो चुका है। 30 अक्टूबर को कोटा संभाग बंद रहा। जिस का व्यापक असर देखा गया। दो माह के इस आंदोलन के बाद भी राज्य सरकार का रवैया उच्चन्यायालय के विकेंद्रीकरण की समयानुकूल मांग के प्रति उपेक्षापूर्ण रहा। पिछले दिनों एक प्रतिनिधिमंडल से मुख्यमंत्री ने कहा कि यह मामला राज्य सरकार के सोचने का नहीं अपितु हाईकोर्ट के सोचने का है। लेकिन राजस्थान उच्चन्यायालय के भूतपूर्व न्यायामूर्ति श्री पानाचंद जी जैन का कहना है कि इस मामले में राज्य सरकार को ही क्षेत्राधिकार है कि वह यह तय करे कि हाईकोर्ट को कहाँ-कहाँ बैठना है और उन पीठों का क्षेत्राधिकार क्या है? न्यायमूर्ति श्री पानाचंद जी जैन का आलेख इस तरह है …..
- न्यायमूर्ति जस्टिस पानाचंद जैन (निवर्तमान)
वर्तमान में देश गम्भीर समस्याओं से जूझ रहा है। कही आतंकवादी गतिविधियां है, तो कहीं माओवादियों ने देश की आन्तरिक सुरक्षा को खतरे में डाला हुआ है। कर्नाटक में डाक्टर हडताल पर हैं, कुछ दिनों पूर्व एयरलाईन्स के पायलेटों ने हड़ताल की थी और अभी एयर इंडिया के पायलेटस् हडताल पर हैं। कुछ समय पूर्व जोधपुर उच्च न्यायालय के वकीलों ने लगभग 20 दिन हडताल रखी और इस समय उदयपुर, कोटा आदि कई जिला हैड क्वाट्र्स पर वकीलों की हड़ताल चल रही है। राज्य के कई नगर बंद की चपेट में है। समस्याएं बहुत हैं किन्तु कोई सकारात्मक सोच सामने नही आ रहा है। यह सच है कि हमारा संविधान इस बात की ओर इंगित करता है कि न्याय सबको मिले। यहां तक की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय समान रूप से समस्त नागरिकों को मिले। संविधान ने सभी को अवसर की समानता प्राप्त कराने के लिए अधिकार दिये हैं। न्याय भी सस्ता, त्वरित और सुलभ हो। कुछ समय पूर्व ही ग्राम न्यायालय अधिनियम के द्वारा घोषणा की गई है कि प्रत्येक व्यक्ति को न्याय उसकी दहलीज पर मिलेगा। जब भारत के संविधान में इस प्रकार की व्यवस्था है तो फिर सुलभ न्याय के लिए राजस्थान में हाईकोर्ट की बेंच को अन्य स्थान पर खोलने के लिए या वहां पर सर्किट बेंच स्थापित करने के लिए यदि कोई मांग उठती है, तो उससे मुख क्यों मोड़ा जाए? यह बात समझ नहीं आती। ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार हाईकोर्ट की ओर इशारा कर अपने दायित्व को नहीं निभाना चाहती और हाईकोर्ट यह कहकर अपने दायित्व को भूल जाना चाहता है कि पूर्व में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के इस सम्बन्ध में क्या विचार रहे हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 245 में संसद द्वारा और राज्यों के विधान मंडलों द्वारा बनाई गई विधियों के विस्तार का विवरण संविधान की 3 सूचियों के माध्यम से किया गया है, ये तीन सूचियाँ, संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान में हुये कई संशोधनों की व्याख्या करते हुये इस बात को स्पष्ट किया है कि न्याय प्रशासन व न्यायालयों की स्थापना आदि के सम्बन्ध में प्रविष्ठी 11ए 46 समवर्ती
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7 Comments
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hona hee chahiye. lekin andher hai isliye der hai,dur hai,log majbur hai.narayan narayan
जस्टिस पानाचंद जी का यह विचारोत्तेजक लेख बहुत से सवालों का जवाब चाहता है।
मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि जब हर क्षेत्र में समय और जरूरत के हिसाब से परिवर्तन जायज और अपेक्षित है..और उसी अनुरूप हो भी रहा है तो फ़िर यहां क्यों नहीं । सच कहा है आपने ये जिम्मेदारी को एक दूसरे पर थोपने के कारण ही आम आदमी आज भी सस्ते और सुलभ न्याय से वंचित ही है।
बहुत उत्कृष्ट आलेख. शुभकामनाएं.
रामराम.
आज के वर्तमान परिवेश में जहाँ सब न्याय के इंतज़ार में क़ानून की ओर आशावादी नज़रों से ताकते हैं वहाँ न्याय का सही प्रस्तुतिकरण उन्हे एक खुशी देती है..और एक विश्वास भी की सत्य की जीत अभी तक कायम है..
बढ़िया चर्चा..धन्यवाद