DwonloadDownload Point responsive WP Theme for FREE!

पत्नी धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम तथा धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत एक साथ भरण पोषण प्राप्त कर सकती है

समस्या-

क्यात्नी धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम तथा धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत एक साथ दोनों उपबंधों में भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारी है?

– सुनील कुमार जैन, भोपाल, मध्य प्रदेश

समाधान-

धारा- 24 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत यह उपबंध किया गया है कि जब हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत पति-पत्नी के मध्य कोई भी प्रकरण किसी न्यायालय के समक्ष लंबित हो और पति या पत्नी में से किसी की भी स्वयं के भरण पोषण के लिए तथा प्रकरण के आवश्यक खर्चों के लिए कोई स्वतंत्र आय नहीं हो तो वह न्यायालय प्रार्थी के विरुद्ध अप्रार्थी को न्यायालय के आवश्यक खर्चों के लिए तथा मुकदमे के लंबित रहने के दौरान अप्रार्थी के भरण पोषण के लिए आवश्यक राशि प्रतिमाह अदा करने का आदेश प्रदान कर सकता है।

इस तरह यह उपबंध केवल हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत संस्थित किए गए प्रकरणों पर ही लागू है और इस के अंतर्गत अप्रार्थी को प्रार्थी से केवल मुकदमे के लंबित रहने की अवधि के लिए ही भरण पोषण राशि अदा किए जाने का आदेश दिया जा सकता है।

स के विपरीत धारा-125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत पत्नी को पति से भरण पोषण राशि अदा किए जाने का आदेश दिया जा सकता है जो तब तक प्रभावी रहता है जब तक कि उसे धारा-127 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत संशोधित या निरस्त नहीं कर दिया जाता है।

दोनों उपबंध पृथक पृथक हैं और दोनों में पृथक पृथक प्रभावी आदेश न्यायालय द्वारा प्रदान किए जा सकते हैं। इन में से किसी एक उपबंध में पहले से भरण पोषण की राशि अदा करने का कोई आदेश प्रभावी हो तो दूसरे उपबंध में आदेश होने के पूर्व यह आधार न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है कि प्रतिपक्षी को एक उपबंध के अंतर्गत पहले से भरण पोषण राशि प्राप्त हो रही है। ऐसी अवस्था में न्यायालय इस तर्क पर ध्यान देगा और दूसरा आदेश पूर्व आदेश को ध्यान में रखते हुए पारित करेगा। यदि न्यायालय पूर्व में पारित आदेश का ध्यान न रखते हुए दूसरा आदेश पारित करता है तो दूसरे आदेश के विरुद्ध अगले न्यायालय में अपील या निगरानी याचिका प्रस्तुत कर उसे दुरुस्त कराया जा सकता है। इस तरह दोनों आदेश उचित होंगे और दोनों आदेशों के अंतर्गत भरण पोषण राशि अदा करना आवश्यक होगा।

स संबंध में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने अशोक सिंह पाल बनाम मंजूलता (AIR 2008 MP 139, 2008 (2) MPHT 275) के प्रकरण में सभी तथ्यों और विधि की विवेचना करते हुए दिनांक 14 जनवरी 2008 को निर्णय पारित किया है वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आप अपने वकील से उक्त निर्णय के प्रकाश में विमर्श कर आगे कार्यवाही करने या न करने का निर्णय ले सकते हैं।

Print Friendly, PDF & Email
2 Comments