पत्नी या उस के माता-पिता से फर्जी मुकदमे करने की धमकी मिलने पर क्या करें?
समस्या-
मेरा विवाह 2008 में हिन्दू रीति रिवाज से हुआ था। दो वर्ष तक हमारा वैवाहिक जीवन बहुत अच्छी तरह से चल रहा था। लेकिन उस के बाद मेरी सास और ससुर ने मेरी पत्नी को मेरे परिवार के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। मेरे परिवार में माँ और एक छोटा भाई है। मेरी पत्नी लगभग दो वर्ष से अपने मायके में है। मैं ने उसे लाने की कई बार कोशिश की। पर उस की एक ही जिद रही है कि जब तक मैं अपने परिवार से अलग नहीं हो जाता तब तक वह नहीं आएगी। मैं ने उसे मना कर दिया कि मैं अपनी माँ और भाई को नहीं छोड़ सकता। उस के बाद मेरी पत्नी ने मुझ पर घरेलू हिंसा का मुकदमा कर दिया। जिस का निर्णय यह हुआ कि प्रार्थना पत्र आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया गया। मुझ पर जो आरोप पत्नी ने लगाए उन्हें वह साबित नहीं कर सकी। न्यायालय ने मुझे आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि से रुपए 1000/- प्रतिमाह गुजारा भत्ता अपनी पत्नी को देने का आदेश दिया। उस के बाद पत्नी ने धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत कर दिया है, जिस में उस ने यह मिथ्या तथ्य अंकित किया है कि मेरी आमदनी एक लाख रुपया बताई है। पिछले एक साल से पत्नी पेशी पर नहीं आ रही है, जानबूझ कर केस लटका रखा है। इस दौरान भी मैं ने उसे खूब समझाया पर वह मानने को तैयार नहीं है। अब मेरे ससुर ने मुझे धमकी दी है कि मैं ने अपने परिवार को नहीं त्यागा तो मेरे ऊपर 498 ए भा. दंड संहिता सहित चार मुकदमे और लगवा देंगे। मेरे कोई संतान भी नहीं है। मैं बहुत परेशान हूँ। मुझे क्या करना चाहिए?
-जयप्रकाश नारायण, शिमला, हिमाचल प्रदेश
समाधान-
यह आजकल एक आम समस्या हो चली है। अधिकांश पतियों की शिकायत यही होती है कि पत्नी को उस के माता-पिता ने भड़काया और वह पति को छोड़ कर चली गई। उस का कहना है कि परिवार छोड़ कर अलग रहो तो आएगी। मना करने पर वह मुकदमा कर देती है। लेकिन यह जानने की कोशिश कोई नहीं करता कि ऐसा क्यों हो रहा है? समस्या के आरंभ में ही यह जानने की कोशिश की जाए और काउंसलिंग का सहारा लिया जाए तो ऐसी समस्याएँ उसी स्तर पर हल की जा सकती हैं। लेकिन आरंभ में पति-पत्नी दोनों ही अपनी जिद पर अड़े रहते हैं, मुकदमे होने पर समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है। दोनों और इतना दुराग्रह हो जाता है कि समस्या का कोई हल नहीं निकल पाता है।
तीसरा खंबा को पति की ओर से इस तरह की शिकायत मिलती है तो उन में अधिकांश में पत्नी और उस के मायके वालों का ही दोष बताया जाता है। पति कभी भी अपनी या अपने परिवार वालों की गलती नहीं बताता। जब कि ऐसा नहीं होता। ये समस्याएँ आरंभ में मामूली होती हैं जिन्हें आपसी समझ से हल किया जा सकता है। ये दोनों ओर से होने वाली गलतियों से गंभीर होती चली जाती हैं और एक स्तर पर आ कर ये असाध्य हो जाती हैं। आरंभ में पत्नी अपनी शिकायत पति से ही करती है। ये शिकायतें अक्सर पति के परिवार के सदस्यों के व्यवहार से संबंधित होती हैं। पहले पहल तो पति इन शिकायतों को सुनने से ही इन्कार कर देता है और पत्नी को ही गलत ठहराता है। दूसरे स्तर पर जब वह थोड़ा बहुत यह मानने लगता है कि गलती उस के परिवार के किसी सदस्य की है तो वह अपने परिवार के किसी सदस्य को समझाने के स्थान पर अपनी पत्नी से ही सहने की अपेक्षा करता है। यदि आरंभ में ही पत्नी की शिकायत या समस्या को गंभीरता से लिया जाए और दोनों मिल कर उस का हल निकालने की ओर आगे बढ़ें तो ये समस्याएँ गंभीर होने के स्थान पर हल होने लगती हैं।
हमें लगता है कि यदि इस स्तर पर भी काउंसलिंग के माध्यम से प्रयत्न किया जाए आप की समस्या भी हल हो सकती है। काउंसलिंग जिन न्यायालयों में मुकदमे चल रहे हैं उन से आग्रह कर के उन के माध्यम से भी आरंभ की जा सकती है। काउंसलर के सामने दोनों अपनी समस्याएँ रखें और उन्हें मार्ग सुझाने के लिए कहें। काउंसलर दोनों को अपने अपने परिजनों के प्रभाव से मुक्त कर के दोनों की गृहस्थी को बसाने का प्रयत्न कर सकते हैं। खैर¡
किसी भी कार्य को करने के लिए किसी व्यक्ति को यह धमकी देना कि अन्यथा वह उसे फर्जी मुकदमों में फँसा देगा, भारतीय दंड संहिता की धारा 503 के अंतर्गत परिभाषित अपराधिक अभित्रास (Criminal Intimidation) का अपराध है। धारा 506 के अंतर्गत ऐसे अपराध के लिए दो वर्ष के कारावास का या जुर्माने का या दोनों से दंडित किया जा सकता है। आप को पत्नी और उस के माता-पिता ने यह धमकी दी है कि वे आप के विरुद्ध फर्जी मुकदमे लगा देंगे। यदि आप यह सब न्यायालय में साक्ष्य से साबित कर सकते हैं कि उन्हों ने ऐसी धमकी दी है तो आप को तुरंत धारा 506 भा.दं.संहिता के अंतर्गत मजिस्ट्रेट के न्यायालय के समक्ष परिवाद प्रस्तुत करना चाहिए। जिस से बाद में पत्नी और उस के माता-पिता द्वारा ऐसा कोई भी मुकदमा कर दिए जाने पर आप प्रतिरक्षा कर सकें। ऐसा परिवाद प्रस्तुत कर देने के उपरान्त आप को अपने वकील से एक नोटिस अपनी पत्नी को दिलाना चाहिए जिस में यह बताना चाहिए कि उस का स्त्री-धन आप के पास सुरक्षित है और कभी भी वह स्वयं या अपने विधिपूर्वक अधिकृत प्रतिनिधि को भेज कर प्राप्त कर सकती हैं। इस से आप धारा 406 भारतीय दंड संहिता के अपराधिक न्यास भंग के अपराध में प्रतिरक्षा कर सकेंगे। इस के साथ ही आप हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत पत्नी के विरुद्ध दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए भी आवेदन प्रस्तुत करना चाहिए।
दुनिया में तरह तरह के दुःख है सुनकर मन दहल जाता है में भी अपनी दूसरी पत्नी से बहुत दुखी हूँ अपनी समस्या किस तरह से इस कलम में दे सकते है कृपा बतानी का कास्ट करे
मेरी पत्नी व उसके परिवार वालों से डर है कि वो मुझे किसी गैर जुर्म में न फंसा दें क्योकि आज 11 वर्ष हो गये शादी के दो बच्चों के साथ 6-7 बार वो मायके भाग जाती है कारण कि वो मुझे मेरे परिवार से अलग करना चाहती है २००८ में वो तो मेरे 4-5 माह के छोटे बेटे को मायके में 6 माह से अधिक रखी तब मैंने माननीय न्यायालय में पुर्नस्थापना का केस लगाया तब उसके व उपसे परिवार वाले अगली पेशी से 2 दिन पहले ही उसे छोडकर माफी मांग कर चले गये फिर अभी 27 जून को साम को बिना बताये घ्ार से भाग कर 2 दिन बाद मायके पहुंची फिर भी उनके मायके वालों ने मुझे इसकी सूचना नहीं दी 6 जुलाई को महिला थाना से नोटिस आया कि 21 तारीख को उपस्िथत होवें आपके व आपकी माता के विरूद्य आवेदन प्राप्त हुआ है और जब मैं 21 तारीख को थाना पहुंचा तो वो और उसके परिवार जन झूठी ही बात कह रहे थे और थाने में मेरी बात कोई नहीं सुन रहा था ऐसे में मैं अपनी बात कैसे रख पाउंगा और सच क्या है कैसे पता चलेगा. महोदय मेरी अनुकंपा नियुक्ति के दायित्वों से अलग करना चाहती है. इस हेतु वर्तमान में मेरी व मेरी माता के खिलाफ वो महिला थाना बिलासपुर में यह शिकायत की है कि ये लोग मुझसे मार पीट करतें हैं. वो एक साइको लेडी है और उसके परिवार वाले उसकी बातों में आकर मुझे दोषी मान रहें हैं जबकि मैंने उसे कभी भी कोई प्रताडना नहीं दी है. बल्कि उसके इलाज में लाखों रूपये अपने घर परिवार का पेट काट काट कर कर चुका हॅं एवं इसे जहां जहां इनके परिवार वाले दोस्त वोले वहां दि खा चुका हूं और आज भी मैं उसे इसी हालत में स्वीकार करता हॅं मुझे सलाह दें कि मैं किसी भी अप्रत्याशित स्थ्िाति से कैसे बचाव कर सकॅं. मेरी कहानी बहुत बडी है पर इसमें पूर्णत सच्चाई हैा
हमारे समाज में मनोविज्ञान तत्त्व को नाकारा गया है की कोई अच्छा या बुरा आचरण कर रहा है तो क्यों ! कभी माता पिता होते है इसके पीछे कभी पैसा तो कभी दूसरा सम्बन्ध कभी बेरोजगारी कभी उचा पद प्राप्ति की आकांशा ! समस्या जाने बिना केस होते है ! तलाक के केसों में भी न्यायालय मनोविज्ञान को अनदेखा कर रहा है. परामर्श तो दिया ही नहीं जाता समस्या कैसे हल करोगे ! जज पत्नियों को भी नहीं बक्शते बुरा भला कह देते है ! में खुद जज से लड़ पड़ी जब उन्होंने अपमान किया एक तलाक के केस में की महिला बुरी हे लड़ती हे ghar में जबकि समस्या बहुत गंभीर थी कोर्ट जान ही नहीं पाया वास्तविक कारण लेकिन तलाक हो गया!
गुरुदेव जी, आपने तीसरा खम्बा ब्लॉग पर 9-मई 2011 की एक पोस्ट (पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में दंड संबंधी भा.दं.संहिता की धारा 498-ए में संशोधन हेतु सुझाव प्रकट करें https://teesarakhamba.com/archives/1650 ) में धारा 498ए में बदलाव के लिए सुझाव मंगाए थें. जिन्हें आप विधि आयोग को भेजने वाले थें. उनका क्या हुआ ? कब व क्या लागू होने जा रहा है ? इस संदर्भ में अपने पाठकों को कोई जानकारी उपलब्ध करवाए.
रमेश कुमार जैन उर्फ सिरफिरा का पिछला आलेख है:–.खुद मिटा देंगे लेकिन "जन लोकपाल बिल" लेकर रहेंगे
ऐसा नहीं कि आप लोगों की बात और समस्या को कोई समझता नहीं है। समझते भी हैं और हरसंभव मदद करने का प्रयत्न भी करते हैं। मुझे लगता है कि आप बात को ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं। आप की समस्य़ा पत्नी द्वारा मिथ्या प्रकरण से उत्पन्न परेशानियाँ हैं। इस के लिए कानून, न्यायालय और वकील जिम्मेदार नहीं हैं। कानून का अपने स्वार्थ के लिए दुरुपयोग करने वाली पुलिस है। सरकार है जो पर्याप्त मात्रा में न्यायालय स्थापित नहीं करती जिस से त्वरित न्याय मिले। आप का गुस्सा इन पर निकलना चाहिए। इस के विरुद्ध मिल कर संघर्ष की आवश्यकता है। जहाँ तक वकील का प्रश्न है, उस का काम अपने मुवक्किल की पैरवी करना है। मुवक्किल चाहे स्त्री हो या पुरुष। अंतिम निर्णय तो तथ्यों और साक्ष्य के आधार पर होता है। उस में वकील और जज कुछ नहीं कर सकते। यदि पुलिस सही तथ्यों के आधार पर ही काम करे और न्यायालय हर मामले का निपटारा साल दो साल में कर दे तो ये समस्या एक हद तक समाप्त हो जाएगी। यूँ ४९८ ए में संशोधन भी प्रस्तावित हैं।
रमेश जी आपका प्रयाश बहुत अच्छा है ये बात मैं भी बहुत टाइम से दिनेश सर को कहने वाला था पर आपने मेरे दिल की बात अपने लाब्जो में कह कर मेरी बात ही दिनेश सर तक पंहुचा दी है ,लेकिन इसमें दिनेश सर की कोई गलती नहीं है हमारे समाज में पता नहीं क्यों ओरतों की बातो को बहुत ही ध्यान से सुना जाता है जबकि चाये ओरत की गलती ही क्यों न हो और शायद इशी कारण आज समाज में pidit पतियों की संख्या दिन व् दिन बडती जा रही है , अक्सर पति अपने ऊपर हुए अत्याचार को किसी से कहने मात्र से कतराते है क्योकि वो हमेशा ये सोचते है की समाज उनपर हसेगा और सही पूछो तो पतियों में अपनी pida बताने का ही लक्षण नहीं होता है इसके विपरीत पत्नी अपनी मनघडंत कहानी को नमक मिर्च लगा कर दुसरो के आगे पेश करती है, इशी कारण से पति हमेशा गलत सावित होते है ……….
@कमल हिन्दुस्तानी जी आपके विचारों से सहमत हूँ. अब समाज और अदालत में कितने पति यह स्वीकार कर सकते है कि उनकी पत्नी ने उसे अनेकों बार मारा-पीटा है और दूसरी ओर पत्नी झूठे ही भरी अदालत में या समाज में कहती है कि उसके पति ने उसको मारा-पीटा है. चाहे उसके पति ने मारने के उद्देश्य से कभी छुआ भी नहीं हो. आपने मेरे अनेक लेखों (मेरा उदाहरण) में पढ़ा भी होगा. हमारे देश में लोगों की कथनी और करनी में काफी फर्क होता है. मेरा ऐसा अनुभव है. इसलिए श्री दिनेश राय द्विवेदी जैसे वकील, जज और पुलिस के अधिकारी कभी विश्वास नहीं कर पाते हैं. इसलिए अन्धिकाश पति आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाते है. मैं कहीं पर ही “गुरुदेव” को गलत नहीं कह रहा हूँ.
रमेश कुमार जैन उर्फ सिरफिरा का पिछला आलेख है:–.जिन्दा रहो वरना जीवन लीला समाप्त कर लो
वैरी गुड श्री कमल हिन्दुस्तानी जी मेरे मन के विचारो को सपस्ट तरीके से अपने कह दिया thanks
आदरणीय गुरुदेव जी, आपने @जय प्रकाश नारायण को बहुत अच्छी सलाह दी है. आपसे अच्छी सलाह कभी किसी को कहीं से मिल भी नहीं सकती है. लेकिन आप पत्नी पीड़ित पतियों के प्रश्नों के उत्तर देते समय अक्सर आप हमेशा पतियों को ही दोषी ठहरते हैं. आपको जल्दी से किसी पति की बातों पर विश्वास नहीं होता है. मेरे विचार से हर पति बहुत सी बातें आपको इतना खुलकर नहीं बताता है,क्योकि समाज में अपनी इच्चत और सम्मान खो जाने के डर से अपनी पत्नी के क्रूरता व्यवहार को लिख नहीं पाता है. क्या आप 00.01 % पति को भी सही मानते हैं या नहीं ? क्या पूरे भारत देश के 99 .99 % पति दहेज मांगने वाले, अपनी पत्नी से हमेशा मारपीट करने वाले और किसी न किसी तरीके से परेशान करने वाले के साथ ही अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने वाले होते है? क्या आपने आज तक अपनी वकालत अवधि के दौरान किसी महिला को दोषी (दहेज प्रताडना के केस में) नहीं ठहरा है? अगर आजतक आपने ऐसा नहीं किया है तो शायद आपने आज तक किसी सभ्य पति के ऊपर दर्ज किये दहेज प्रताडना के फर्जी केस ही नहीं लड़ा होगा या लिया(फ़ीस कम मिलने या अन्य किसी कारण से) नहीं होगा. गुरुदेव जी आप एक बात ध्यान रखना कि पत्नी पीड़ित पति के पास आपकी फ़ीस की राशि देने के लिए दूसरों क्लाइंटों से बहुत कम होगी या मिलेगी. आप मेरी एक पोस्ट (मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2011/06/blog-post_12.html) को पढकर देखें कि एक पत्नी एक सभ्य पति पर कितना अत्याचार कर सकती है. इसके अलावा एक दो लिंक(http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2012/07/blog-post.html क्या महिलाओं को पीटना मर्दानगी की निशानी है ? http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2012/07/blog-post_16.html क्या आज महिलाएं खुद मार खाना चाहती हैं ?) और पढ़ें. तब शायद आपकी राय में कुछ सभ्य पति के प्रति आपका नजरिया भी बदल जाए.
रमेश कुमार जैन उर्फ सिरफिरा का पिछला आलेख है:–.जिन्दा रहो वरना जीवन लीला समाप्त कर लो
आप वास्तव में ईमानदार हैं, पहली बार किसी ने स्वीकार किया है कि पति इज्जत और मान को बचाए रखने के लिए पूरे तथ्य नहीं बताता। लेकिन पूरे तथ्यों के बिना किसी समस्या को हल भी नहीं किया जा सकता। यदि किसी को कानूनी सलाह चाहिए तो फिर उसे सब बातें उसे बतानी चाहिए जिस से मदद मांगी जा रही है। मुझ से सवाल करने वाला और सलाह लेना एक भी शख्स आज तक ऐसा नहीं मिला जिस ने कभी पत्नी के प्रति क्रूरता ( जैसी धारा 498-ए) में परिभाषित है) का व्यवहार न किया हो। हाँ कुछ लोग ऐसे अवश्य मिले जिन्हों ने स्वयं यह लिखा कि उन्हें गुस्सा आ गया और उन्हों ने पत्नी को थप्पड़ रसीद कर दिए। उस के बाद से मामला बिगड़ गया। इस लिए यह कहना कि पति को कुछ न कहना चाहिए पूरी तरह से गलत है। वस्तुतः पति पत्नी के संबंधों के बिगड़ने में पति कम दोषी नहीं होता। लेकिन वह अपनी गलतियों को अपना अधिकार मानता है और इस लिए उन्हें इज्जत और सम्मान का प्रश्न बना कर छुपाता है। क्या इज्जत और सम्मान केवल पुरुषों के लिए होते हैं? स्त्रियों के नहीं? मुझ से किए जाने वाले तमाम प्रश्नों में वह अपनी ही पत्नी की इज्जत और सम्मान का तो बिलकुल खयाल नहीं करता।
दिनेशराय द्विवेदी का पिछला आलेख है:–.पत्नी या उस के माता-पिता से फर्जी मुकदमे करने की धमकी मिलने पर क्या करें?
गुरुदेव जी, आपके कथन अनुसार ही मुझ से सवाल करने वाला और सलाह लेना एक भी शख्स आज तक ऐसा नहीं मिला जिस ने कभी पत्नी के प्रति क्रूरता ( जैसी धारा 498-ए) में परिभाषित है) का व्यवहार न किया हो। और तब आपने पिछले आलेख अनुसार कि-जब तक इस तरह के सामाजिक अध्ययन समाज विज्ञानियों द्वारा नहीं किए जाएंगे और कोई अधिकारिक रिपोर्टें समाज के सामने नहीं होंगी तब तक उन कारणों के उन्मूलन और कानूनो के कारण हो रहे पति-उत्पीड़न का उन्मूलन संभव नहीं है। वर्तमान में कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है यह सभी मानते और समझते हैं। लेकिन कानूनों में कोई त्रुटि भी नहीं है जिस से उन्हें बदले या संशोधित करने का मार्ग प्रशस्त हो। धारा 498-ए में बदलाव लाने के प्रयास जारी हैं। इस संबंध में विधि आयोग ने प्रयास किए हैं और हो सकता है कि उन प्रयासों के नतीजे शीघ्र आएँ। लेकिन यदि कानूनों में परिवर्तन हुए तो वे परिवर्तन की तिथि से ही लागू होंगे। आज जिन लोगों के विरुद्ध मुकदमे चल रहे हैं उन्हें उन परिवर्तनों का लाभ नहीं मिलेगा।
गुरुदेव जी, तब क्यों कानून मंत्रालय धारा 498-ए में बदलाव लाने के प्रयास कर रहे हैं ?
क्या इज्जत और सम्मान केवल पुरुषों के लिए होते हैं? स्त्रियों के नहीं? मुझ से किए जाने वाले तमाम प्रश्नों में वह अपनी ही पत्नी की इज्जत और सम्मान का तो बिलकुल खयाल नहीं करता।
गुरुदेव जी, जहाँ तक इज्जत और सम्मान की बात है. इसको प्राप्त करने का दोनों पक्षों को अधिकार है. लेकिन अनेकों मौकों पर एक सभ्य पत्नी पीड़ित पति अपनी पत्नी के गलत व्यवहार के कारण इतना आहत हो जाता है कि अपना विवेक खो बैठता है. झूठे केस दर्ज होने के बाद अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाता है. जो गुस्से पर काबू कर लेता है तब दूसरा पक्ष (पत्नी) उसको बुजदिल समझता है और अपनी अन्याय करने की चरम सीमा लाँघ जाता है. क्या किताबों और साहित्य में लिखा कि अन्याय करने वाले से अन्याय सहने वाला बड़ा गुनाहगार होता है? सब झूठ है और गलत है.
रमेश कुमार जैन उर्फ सिरफिरा का पिछला आलेख है:–.जिन्दा रहो वरना जीवन लीला समाप्त कर लो
आपका सुझाव काफी अच्छा लगा. पत्नी को जब ससुराल में प्रताड़ना सहना पड़े या पति के कार्य स्थल पर तो पत्नी कहाँ जाये . उसके सामने तो दो ही विकल्प हैं एक तो आत्महत्या कर ले या फिर अपने मायके जाये.
सर जी नमस्कार, जय प्रकाश जी ने एक प्रशन और किया है कि न्यायालय ने मुझे आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि से रुपए 1000/- प्रतिमाह गुजारा भत्ता अपनी पत्नी को देने का आदेश दिया। उस के बाद पत्नी ने धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत कर दिया है, जिस में उस ने यह मिथ्या तथ्य अंकित किया है कि मेरी आमदनी एक लाख रुपया बताई है।
इसके वारे में आपने जवाब नहीं दिया जी, शायद अगर D.V. Act में खर्चा मिल रहा हो तो पत्नी धारा 125 में खर्चा नहीं ले सकती और फिर जय प्रकाश जी के कोई संतान भी तो नहीं है , बाकि आप उचित सलाह दे सकते है जी , धन्यबाद
kamal hindustani का पिछला आलेख है:–.किन मामलों में हो सकता है समझौता और किन में नहीं