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पिता की संपत्ति में अपना हिस्सा लेने के लिए क्या करें?

 श्रीमती नाथीदेवी ने पूछा है –
मेरे पिता मांगीलाल जी का स्वर्गवास 1965 में हो गया था। हम अपने पिता की तीन संतानें हैं, दो पुत्र और एक पुत्री। लेकिन मेरे पिता की संपंत्ति में मेरा हिस्सा बिलकुल नहीं छोड़ा गया है। मैं क्या कर सकती हूँ?
 उत्तर –
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 17 जून 1956 को लागू  हो गया था। उस के बाद से ही पिता की संपत्ति में पुत्री को प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में सम्मिलित किया गया है। किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत उस की निर्वसीयती संपत्ति में उस की पत्नी, पुत्र और पुत्रियाँ समान भाग की अधिकारी हैं। आप के  द्वारा बताए गए तथ्यों के अनुसार यदि आप की माता जी जीवित नहीं हैं और आप के दो भाई जीवित हैं  तो आप के पिता की संपत्ति के तीन भाग होने चाहिए जिस में से एक भाग की आप स्वामिनी होंगी। किसी भी व्यक्ति का देहान्त होते ही उस की संपत्ति उस के उत्तराधिकारियों की संयुक्त संपत्ति में परिवर्तित हो जाती है। इस तरह आप के पिता के देहान्त के उपरान्त आप के पिता की संपत्ति भी उन के उत्तराधिकारियों की संयुक्त संपत्ति में परिवर्तित हो गयी है। इस संयुक्त संपत्ति में आप का भी हिस्सा सम्मिलित है। 

हो सकता है कि इस संयुक्त संपत्ति पर आप के भाइयों का कब्जा रहा हो और यह भी हो सकता है कि उन्हों ने उपयोग की दृष्टि से उस संपत्ति को दो भागों में विभाजित कर दोनों उस पर काबिज हो गए हों। लेकिन स्वामित्व के लिहाज से वह संपत्ति आज भी संयुक्त संपत्ति ही है और उस में आप का हिस्सा मौजूद है, जब तक कि उस संपत्ति का विभाजन नहीं हो जाता है। संपत्ति का विभाजन उस संपत्ति के सभी भागीदार आपसी सहमति से कर सकते हैं और इस विभाजन को पंजीकृत करवा सकते हैं। लेकिन आपसी सहमति संभव नहीं हो तो समस्त संपत्ति का विभाजन करने और अपने हिस्से का कब्जा दिलाए जाने के लिए न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया जा सकता है। 

प को करना, यह चाहिए कि आप अपने भाइयों से कहें कि तीनों बहन-भाई आपस में बैठ कर संपत्ति का बँटवारा कर लें और उसे पंजीकृत करवा लें। यदि भाई सहमत नहीं होते हैं तो आप को अपने क्षेत्र के किसी अच्छे और विश्वसनीय वकील से मिल कर उस के माध्यम से पिता की संपत्ति के विभाजन के लिए वाद न्यायालय में प्रस्तुत करना चाहिए।

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