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पिता को नई परिस्थितियाँ समझा कर बीच की राह निकालने का प्रयत्न करें

समस्या-

मै शिक्षाकर्मी के पद पर कार्यरत हूँ। मुझे मासिक ९००० वेतन मिलता है।  मैं अपने घर से बहूत दूर था तब तक तो ठीक था। माह में खर्च के लिए रूपये भी देता था। मैं ने अपने ही खर्च पर बहन की और अपनी शादी किया।  घर भी बनाया जिस में उन्होंने एक रुपया तक का मुझे सहयोग नहीं दिया।  मेरे पिता जी के पास कृषि भूमि भी है, मेरे नाम पर भी कृषि भूमि है। परन्तु सभी की देख रेख वे ही करते हैं। मुझे उसका कुछ भी नहीं देते जब मै अपना स्थानांतरण करवा कर घर आया तो मुझे घर में रहने नहीं दिया।  आज मैं घर से बाहक दूसरी जगह पर किराये के मकान में रहता हूँ।   मैं शारीरिक रूप से एक पैर से विकलांग भी हूँ।  मेरी समस्या है कि  मेरे पिता मुझ से मेरे वेतन का आधा हिस्सा मांगते हैं। यह कहाँ तक सही है? मेरा कहना है कि मैं आधा क्या पूरा दूंगा, परन्तु मुझे घर में रहने दो या चावल दो,  मै खर्चा देने के लिए तैयार हूँ। अभी घर में माता पिता एवं एक अविवाहित भाई है।  कृषि भूमि उनके लिए काफी है।  यदि मुझे आधा वेतन देना होगा तो मेरा परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हो जायेगा। मैं विकलांग होने कारण कोई अन्य काम करने में असमर्थ हूँ। |कृपया उचित सलाह दीजिये। ताकि मेरी मानसिक परेशानी दूर हो सके।

समाधान-

मारे यहाँ हिन्दू परिवारों में पुराने जमाने में संयुक्त परिवार और संयुक्त परिवार की संपत्ति का सिद्धान्त रहा है जो हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के आने के बाद समाप्तप्रायः हो चला है। आप के पिता की समझ है कि आप का परिवार एक संयुक्त परिवार है। उस के सभी सदस्यों और संपत्ति से हुई आय परिवार की संपत्ति है और जब तक वे परिवार के मुखिया हैं उस का प्रबंध करने का अधिकार उन का है। उन के सामने संभवतः अभी दायित्व हैं। आप के छोटे भाई का विवाह करना है, हो सकता है और भी दायित्व हों। वे इसी के लिए बचा कर कुछ धन संग्रह कर लेना चाहते हैं। जमीन और अन्य साधनों से आय इतनी पर्याप्त नहीं है कि वे धन संग्रह कर सकें। यही कारण है कि वे आप को परिवार के साथ नहीं रखना चाहते। परिवार में रहते ही आप के परिवार का खर्च और बढ़ जाएगा। वे उसी के लिए आप का आधा वेतन चाहते हैं। यही कारण है कि वे आप की जमीन को भी अभी अपने कब्जे में रखना चाहते हैं।

लेकिन कानूनी स्थितियाँ बदल चुकी हैं।  कानून परिवार को संयुक्त नहीं मानता। आप भी समझते हैं कि आप जितनी मदद परिवार की कर सकते हैं कर चुके हैं। आगे आप की भी जीवन है, आप का भी दायित्व है। उस के लिए आप कुछ बचा कर रखना चाहते हैं। आप का जीवन स्तर परिवार से कुछ सुधरा हुआ है आप उसे खोना नहीं चाहते। इस कारण आप चाहते हैं कि आप को अपनी जमीन की उपज मिले। हालाँकि आप जमीन पर खेती करने में असमर्थ हैं।

प के पिता और आप दोनों अपनी अपनी जगह सही हैं। लेकिन बदली हुई परिस्थितियों ने आप दोनों के बीच एक द्वन्द उत्पन्न कर दिया है। आप दोनों को ही अपने अपने स्थान से कुछ हटना पड़ेगा और बीच में आ कर समझौता करना पडेगा। आप को पिता से कहना पड़ेगा कि आप की जमीन में जो खेती की जा रही है उस का मुनाफा प्राप्त करना आप का हक है। वह उन्हें आप को दे देना चाहिए। उस के अतिरिक्त आप परिवार की जो संयुक्त संपत्ति है उस में से कोई हिस्सा अभी नहीं चाहते हैं। यदि आप उन के साथ मकान में आ कर रहेंगे तो उस से आप के पास कुछ बचत होगी और आप उन की मदद भी कर पाएंगे। यदि पिता के कथनानुसार चले तो फिर न बचत होगी और न आप उन की मदद कर पाएंगे।

प अपने पिता को ठीक से समझाएँ। यदि हो सके तो कुछ अन्य लोग जिन पर आप के पिता विश्वास कर सकते हैं उन की मदद ले कर अपने पिता को नई परिस्थितियों को समझाने की कोशिश करेंगे तो यह मामला घर में बातचीत और आपसी समझ से हल हो सकता है। अन्यथा कोर्ट कचहरी में तो समय भी लगता है और दोनों पिता-पुत्र का पैसा बरबाद होगा। यदि यही पैसा बचेगा तो परिवार के काम आएगा। मुझे लगता है कि आप के पिता इतनी समझ तो रखते ही होंगे कि आप के द्वारा समझाई बात को समझ सकेंगे, शायद वे भी कोर्ट कचहरी पसंद नहीं करें और इस नौबत को टालने का प्रयत्न करें। यदि फिर भी नहीं समझ पाते हैं तो आप के पास अपने अधिकारों के लिए न्यायालय में गुहार लगाने के सिवा कोई चारा नहीं रहेगा।