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प्रस्ताव, स्वीकृति, प्रतिफल, अनुबंध और कॉन्ट्रेक्ट

पिछली पोस्ट पर आई टिप्पणियों ने मुझे उत्साहित किया। मुझे लगा कि कॉन्ट्रेक्ट या संविदा या (contract) एक ऐसा विषय है जिस से प्रत्येक व्यक्ति पग-पग पर प्रभावित होता है। लेकिन इस की कानूनी जानकारी उन लोगों को भी नहीं है, जिन का जीवन इस के भरोसे ही चल रहा होता हैं। मेरे पास ऐसे कॉन्ट्रेक्टर अपने मुकदमें ले कर आते हैं जो बरसों से कॉन्ट्रेक्ट पर अपना व्यवसाय कर रहे होते हैं, लेकिन जिन्हें उस के कानून का क.ख.ग. भी पता नहीं होता। मैं ने महसूस किया कि इस कानून का खुलासा अपने पाठकों के सामने करना ही चाहिए। भारत में सभी कॉन्ट्रेक्ट भारतीय संविदा अधिनियम (Indian Contract Act) से शासित होते हैं। हिन्दी में कॉन्ट्रेक्ट को संविदा कहते हैं, लेकिन अब कॉन्ट्रेक्ट शब्द का इतना प्रचलन है कि संविदा एक एलियन नजर आने लगता है। भाषा का काम संप्रेषण है। प्रचलन से अनेक अंग्रेजी शब्द ऐसे हो गए हैं कि कानून को समझने में उन का उपयोग करना हिन्दी की पारिभाषिक शब्दावली में निर्मित शब्दों की अपेक्षा अधिक संप्रेषणीयता प्रदान करता है। इस आलेख और आने वाले इसी तरह के आलेखों में हम उन्हीं शब्दों का प्रयोग करेंगे जो उसे संप्रेषणीय बनाएँ, दुरूह नहीं।

कॉन्ट्रेक्ट को समझने के लिए हमें कुछ अन्य क्रियाओं और शब्दों को समझना पड़ेगा, जो कॉन्ट्रेक्ट को समझने के पहले जरुरी हैं।

इन में पहला है, प्रस्ताव या प्रपोजल। जब हम किसी को उस की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए कहते हैं कि वह कोई काम हमारे लिए करे, या वह कोई काम हमारे लिए न करे, तो कहा जाएगा कि हम ने एक प्रस्ताव या प्रपोजल किसी के सामने रखा। जैसे मैं किसी को कहूँ कि वह मेरे चिट्ठे के लिए एक आलेख लिख दे, या यह कि वह किसी खास चिट्ठे के लिए कोई आलेख न लिखे। तो इसे हम प्रस्ताव कहेंगे।

इसी तरह जब कोई व्यक्ति किसी प्रस्ताव में किसी काम को करने या न करने की अपनी सहमति दे देता है, तो यह कहा जा सकता है कि वह एक स्वीकृत प्रस्ताव है, और एक प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो उसे प्रोमिस या वादा कहा जाता है।

प्रस्ताव करने वाले को हम प्रस्तावक (प्रोमिसर) और उसे स्वीकार करने वाले को प्रस्तावगृहिता (प्रोमिसी) कह सकते हैं।

जब प्रस्तावक (प्रोमिसर) की इच्छा पर प्रस्तावगृहिता (प्रोमिसी) या कोई अन्य व्यक्ति कुछ कर देता है या करने से रुक जाता है, अथवा कुछ करता है या करने से रुकता है, अथवा कुछ करने या न करने का वादा करता है, तो इसे वादे (प्रोमिस) का प्रतिफल (कन्सीडरेशन) कहा जाता है।

प्रत्येक वादा और वादों का समूह जिस का प्रतिफल निश्चित हो जाए वह अनुबंध (एग्रीमेंट) कहा जाता है। जिन वादों, या वादे के भाग का प्रतिफल निश्चित हो जाता हैं वे परस्पर एक दूसरे से किए गए वादे कहलाते हैं।

कानून के द्वारा लागू न कराए जा सकने वाले अनुबंध (एग्रीमेंट) शून्य अनुबंध कहलाते हैं, और कानून के द्वारा लागू कराए जा सकने वाले अनुबंध कॉन्ट्रेक्ट कहलाते हैं

कोई अनुबंध उस के किसी पक्षकार (पार्टी) या उस के कुछ पक्षकारों के विकल्प पर कानून द्वारा लागू कराए जा सकते हों और अनुबंध के किसी अन्य पक्षकार (पार्टी) या कुछ पक्षकारों के द्वारा कानून द्वारा लागू न कराए जा सकते हों तो ऐसे अनुबंध शून्य कराए जा सकने वाले कॉन्ट्रेक्ट (वॉयडेबुल कॉन्ट्रेक्ट) कहलाते हैं।

कोई कॉन्ट्रेक्ट कानून द्वारा लागू कराए जाने से बाधित हो जाता है तो वह उसी समय से शून्य कॉन्ट्रेक्ट हो जाएगा जब वह लागू कराए जाने से बाधित हो जाता है। (धारा-2)

पाठकों को पच जाए तो इस आलेख के लिए इतना ही पर्याप्त है। हालांकि मुझे लग रहा है कि यह कुछ गरिष्ठ हो गया है। पर अपच की शिकायत आई तो पाचन के लिए लवण भास्कर की खुराक का इंतजाम हो जाएगा।

पिछली पोस्ट पर प्रश्न तो थे पर उन के उत्तर भी प्रश्नकर्ताओं को खुद पता हैं। इस लिए उत्तर नहीं दे रहा हूँ। हाँ अभिषेक ओझा जी की इच्छा शीघ्र ही पूरी कर दी जाएगी। उस से अनेक अन्य लोग भी लाभावन्वित होंगे।

पल्लवी त्रिवेदी जी का प्रश्न है कि इजाजत हो तो प्रश्न पूछूँ? तो हमारा कहना है कि वे हमारे ससुराल की सगोत्री हैं, उन का पूछने के लिए पूछना, मेरे लिए अतिसदाशयता है। तीसरा खंबा सभी पाठकों के उत्तर प्राप्त करने के योग्य और अयोग्य दोनों ही तरह के प्रश्नों का स्वागत करता है।

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