मिथ्या शिकायत का नतीजा आने के बाद कार्यवाही करें …
सुशील कुमार शर्मा ने अवन्तिका, रोहिणी, दिल्ली से समस्या भेजी है कि-
मेरी पुत्री रात को साढ़े आठ बजे के करीब बाजार से सामान खरीद कर अपने फ्लैट पर जा रही थी। रास्ते में मेरी पुत्री की सास और देवर (जो कि अलग रहते हैं) ने उसे घेर लिया और मारपीट की तथा बदतमीजी की। 100 नंबर पर फोन किया, पुलिस आई और थाने में जाकर एफआईआर दर्ज हो गई। उसमें धारा 354 के साथ-साथ और भी धाराएं लगीं। चूंकि मेरी पुत्री के ससुराल वाले पैसे वाले हैं सो उन्होंने पुलिस और अन्य लोगों को प्रभावित कर अपनी गिरफ्तारी तीन महीने तक रुकवाए रखी। जब मैंने और मेरी पुत्री ने काफी लिखा-पढ़ी की तब जाकर गिरफ्तारी के लिए पुलिस पुत्री की ससुराल में गई। चूंकि पुलिस पहले से ही प्रभावित थी सो ससुराल वाले पहले ही फरार हो गए और आई (जांच अधिकारी) से मिलकर अदालत से जमानत करवा ली। जमानत तक तो बात ठीक थी। ससुराल वालों ने जमानत करवाने के साथ-साथ जज साहब के सामने एक अर्जी दी जिसमें ससुराल वालों ने दरख्वास्त की है कि पुलिस उनकी (ससुराल वालों की) भी एफआईआर दर्ज करे। अर्जी में उन्होंने बहुत सारे झूठे आरोप लगाए हैं तथा उसमें मेरी पुत्री के साथ-साथ मेरा नाम भी घसीटा गया है। अर्जी में पांच झूठे गवाह भी खड़े कर दिए गए हैं। उसमें आरोप लगाया गया है कि मैं भी उस वक्त घटनास्थल पर था जबकि मेरे पास पुख्ता एवं अकाट्य सबूत हैं कि मैं वहां नहीं था। अब प्रश्न यह है कि क्या मैं उस अर्जी के विरुद्ध मानहानि एवं झूठा मुकदमा करने का मुकदमा डाल सकता हूं या नहीं।
समाधान-
आप की पुत्री के ससुराल वाले अपना बचाव करने में लगे हैं। अपनी खुद की शिकायत से एक बात तो उन्हों ने स्वीकार कर ली है कि घटना हुई है और वे खुद घटना में उपस्थित थे। इस तरह उन्हों ने अपने बचाव का एक तर्क तो खो दिया है। अभी उन्हों ने अदालत को शिकायत की है। अदालत उस शिकायत की प्रारंभिक जाँच कर के यह तय करेगा कि इस शिकायत को अन्वेषण के लिए पुलिस को भेजा जाए या स्वयं ही जाँच की जाए। यदि पुलिस को भेजा जाता है तो पुलिस उस की जाँच कर के शिकायत सही पाने पर आरोप पत्र प्रस्तुत कर सकती है। अन्यथा स्थिति में न्यायालय खुद जाँच कर के शिकायत पर प्रसंज्ञान ले सकता है या लेने से इन्कार कर सकता है। यदि न्यायालय प्रसंज्ञान लेता है तो आप उस आदेश को सेशन न्यायालय में निगरानी कर चुनौती दे सकते हैं।
जब तक उक्त मामले में पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करती या प्रसंज्ञान नहीं लिया जाता तब तक आप की कोई भूमिका नहीं है। यदि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होती है तो आप पुलिस के समक्ष अपना पक्ष रख सकते हैं।
जब तक उक्त शिकायत अपनी अंतिम परिणति पर नहीं पहुँच जाती है तब तक आप द्वारा मानहानि का मुकदमा करना ठीक नहीं है। यदि यह सिद्ध हो जाता है कि शिकायत मिथ्या थी और आप की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने और अपना मिथ्या बचाव करने के लिए की गई थी। तब आप मानहानि और दुर्भावनापूर्ण अभियोजन के लिए अपराधिक और दीवानी दोनों प्रकार के मुकदमे उन के विरुद्ध कर सकते हैं।
हम अपनी एक पुरानी दुकान की मरम्मत करा रहे हैं वो भी अपने नक्शे के दायरे में बगल वाला दुकानदार पत्रकार है जो अपनी पेशे की धौंस में एस डी एम के पास दरख़्वास्त लगा कर हमारा काम रुकवा दिया है जबकि हम अपने दायरे में हैं और वो असली किराएदार भी नहीं है इस पर हम क्या कार्यवाही कर सकते हैं क्या हम अपने नक्शे और रजिस्ट्री के हिसाब से भी अपना काम नहीं करा सकते वो कहता है या तो एक दीवार मेरे लिए छोडो नहीं तो तुमको और काम को बंद करा दुंगा.
हम अपनी एक पुरानी दुकान की मरम्मत करा रहे हैं वो भी अपने नक्शे के दायरे में बगल वाला दुकानदार पत्रकार है जो अपनी पेशे की धौंस में एस डी एम के पास दरख़्वास्त लगा कर हमारा काम रुकवा दिया है जबकि हम अपने दायरे में हैं और वो असली किराएदार भी नहीं है इस पर हम क्या कार्यवाही कर सकते हैं
किराया दारी मुकदमा जीतने के बाद क्या माकन मालिक किरायेदार के खिलाफ मानहानि का मुकदमा कर सकता है यदि कोई न्याय दृष्ट्यान्ट हो तो कृपया वो भी बताये