मोटर दुर्घटना की मिथ्या प्रथम सूचना रिपोर्ट होने पर क्या करें?
समस्या-
कुशलगढ़, राजस्थान, से प्रदीप सोहनलाल सेठ ने पूछा है –
मुझे पिछले महिने साजिश के तहत मोटर वाहन एक्ट के झूठे मुकदमे में फँसा दिया गया। मैं अपने गांव से अपने पुत्र की शादी के कार्ड बाँटने आस पास के गाँवों में रिश्तेदारो के यहाँ निजि कार से जा रहा था। जिस रास्ते से मेरा जाना हुआ था उसी मार्ग पर एक एक्सीडेन्ट हुआ था। जो किसी अन्य वाहन से हुआ था। आपसी रंजिशवश उस परिवार ने मेरी निजी कार से उसके क्षेत्र में एक्सीडेन्ट होना बता कर एफ.आई.आर. कटवा दी। एफ.आई.आर. में जीप से एक्सीडेंट होना बताया है, जबकि मेरे पास निजी अल्टो कार है। एफ.आई.आर. दर्ज होने के बाद राजनैतिक प्रभाव व भ्रष्टाचार के दम पर थानाधिकारी पर दबाव डालकर मुझे आरोपी साबित करने के लिये दुघर्टना के लगगभग 1 माह 7 दिन बाद मेरे गांव में वहां के थानाधिकारी व पुलिस बल आकर मेरा वाहन जबरजस्ती ले गए। जिस पर मेरे द्वारा स्वयं जिला कलक्टर एवं जिला पुलिस अधिक्षक महोदय, बांसवाडा को पत्र भेजकर इसकी निष्पक्ष जाँच की मांग की गई। लेकिन उस पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। उल्टे मुझे थानाधिकारी द्वारा दबाव बनाया जा रहा है कि आप गाडी की जमानत करवालें। मैं आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं हूँW एवं वर्तमान में इस कारण मैं व मेरा पुरा परिवार मानसिक रूप से परेशान हो रहा है। ऐसी स्थिति में मुझे सुझाव दें कि मैं क्या करूँ?
समाधान-
ऐसा आज कल बहुधा हो रहा है। इस के पीछे आपसी रंजिश से अधिक मोटर दुर्घटना दावा प्राप्त करने की मानसिकता काम करती है। मोटर दुर्घटना होने पर क्षतिपूर्ति के लिए यह आवश्यक होता है कि दुर्घटना को साबित किया जाए। जिस के लिए सब से आसान काम होता है कि मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हुई हो और फिर आरोप पत्र प्रस्तुत हुआ हो। जैसे ही आरोप पत्र प्रस्तुत होता है वैसे ही दुर्घटना में क्षतिग्रस्त व्यक्ति उस की प्रतिलिपि प्राप्त करता है और फिर वाहन के चालक, स्वामी और बीमा कंपनी के विरुद्ध मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण के समक्ष अपना क्षतिपूर्ति का दावा प्रस्तुत करता है।
सड़क पर होने वाली मोटर दुर्घटनाओं में अक्सर ऐसा होता है कि वाहन टक्कर मार कर तेजी से निकल जाता है और उसकी पहचान नहीं हो पाती है। क्षतिग्रस्त व्यक्ति पुलिस थाना पहुँचता है तो पुलिस तब तक रिपोर्ट लिखने से मना कर देती है जब तक कि उसे वाहन का पंजीकरण सं. न बता दी जाए। पुलिसकर्मियों यह भी सलाह मिलती है कि किसी अपने व्यक्ति के वाहन का नंबर लिखवा दें, अन्यथा दुर्घटना क्षतिपूर्ति दावा में कुछ नहीं मिलेगा। पुलिस वालों का कोई मिलने वाला होता है तो वे उधर से गुजरते किसी भी वाहन का नंबर लिख कर उस के चालक के विरुद्ध मुकदमा बना देते हैं। मोटर दुर्घटना दावों की पैरवी करने वाले वकील भी इन कामों में लिप्त हैं, हालाँकि वे ऐसे लोगों की गाड़ियों का नम्बर लिखवाते हैं जो कुछ पैसा ले कर इस काम के लिए तैयार रहते हैं। जैसा आप बता रहे हैं वैसा भी हो सकता है कि दुर्घटना हो जाने पर मुआवजा झटकने के साथ ही साथ किसी से रंजिश निकाल ली जाए। यह सब धड़ल्ले से चल रहा है और इसी के चक्कर में आप भी आ गए हैं।
आप ने एस.पी. पुलिस और कलेक्टर को जो शिकायतें की हैं उन की प्रतिलिपि जिस पर उन की प्राप्ति रसीद हो संभाल कर रखें। अगर आप ने अपनी शिकायतों की प्रतियाँ और उन की प्राप्त स्वीकृति संभाल कर न रखी हो या ली ही न हो तो आप दोनों को एक एक स्मरण पत्र अवश्य दे और उन की प्रतियाँ और प्राप्ति स्वीकृति (रसीदें) संभाल कर रखें ये आप की प्रतिरक्षा में काम आएंगी। आप यदि आप की कार बीमित थी तो आप अपनी बीमा कंपनी क सूचित करें। क्यों कि मुआवजे का मुकदमा होने की स्थिति में मुआवजे का भार बीमा कंपनी पर आएगा। इस कारण वह एक प्रोफेशनल इन्वेस्टीगेटर नियुक्त कर के इस का अन्वेषण करा लेगी उस से भी आप के बचाव के तथ्य सामने आएंगे।
पुलिस ने जब मुकदमा बना ही दिया है तो आप अपने वाहन को तो जमानत पर तुरंत छुड़ा लें। वरना पुलिस वाले वाहन का बेजा इस्तेमाल भी कर सकते हैं और उसे खराब भी कर सकते हैं। यह भी हो सकता है कि पुलिस थाना में खड़ी आप की कार के कुछ पुर्जे बदल दिए जाएँ। वे कम से कम नए टायरों को पुरानों से तो बदल ही सकते हैं। यह भी जब्तशुदा वाहनों के साथ बहुत होता है। जमानत आवेदन में स्पष्ट रूप से लिखें कि आप के विरुद्ध मिथ्या प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई गई है। आप यदि सिद्ध कर सकते हैं कि आप के विरुद्ध की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट मिथ्या और फर्जी है तो आप उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत कर के प्रथम सूचना रिपोर्ट को निरस्त कराने हेतु आवेदन कर सकते हैं।
यदि आप के विरुद्ध फौजदारी मुकदमा चलता है तो कोई ठीक-ठीक वकील कर लें वह किसी भी तरह मुकदमे में आप को दोष मुक्त सिद्ध करवा देगा। यदि मुआवजा प्राप्त करने के लिए मुकदमा होता है तो भी हर्जाना देने की जिम्मेदारी या तो आएगी ही नहीं और आती है तो उस का भुगतान बीमा कंपनी को करना होगा। आप को इतना कष्ट तो सहना होगा कि मुकदमों में पेशियों पर जाना होगा और वकील की फीस अदा करनी होगी। यदि आप दोषमुक्त घोषित होते हैं तो आप दुर्भावनापूर्ण अभियोजन का मुकदमा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने वाले व्यक्ति के विरुद्ध कर के उस से हर्जाना वसूल कर सकते हैं।
एक डराइवर मेरे दोस्त के गाड़ी के उपर चढ कर सामान बाध रहा था कि उपर से गिर गया और उसकी मौत हो गई पुलिस एक इस्तफाकीया लिखवाकर लाश पी एम के लिए भेज दिया
पैसे के लालच और दुस्बामनो के चढाने पर उसका बेटा मेरे और मेरे दोस्त के खिलाफ कोर्ट मे १५६(३) के तहत दावा किया है कि मेरे पिता को राड से मार कर मार डाला गया है क्या करे
कमाल है!
ऐसा भी होता है!!
बी एस पाबला का पिछला आलेख है:–.जीना यहाँ मरना यहाँ
खूब होता है।
दुःख है और आश्चर्य भी कि देश में क्षतिपूर्ति वसूली हेतु ऐसे षड्यंत्र भी चलते हैं जिन में स्वयं पुलिस साथ देती है.कि किसी गुज़रते वहाँ का नंबर लिख देती है!
इस हद तक फैले भ्रष्टाचार को कोई कभी मिटा नहीं सकता.
यहाँ यू.ए.ई देश में अगर कभी एक वाहन दूसरे को टक्कर मारता है तो दोनों वहीँ सड़क पर खड़े रहते हैं,जब तक कि पुलिस मौके पर आ कर खुद देखकर कागज़ न बना दे और तय करे कि गलती किसकी है .
बिना पुलिस के कागज़ के कोई गाड़ी में किसी भी तरह का रिपेयर का काम नहीं हो सकता.चाहे वह लाईट टूटने का या खरोंच हटाने का भी हो…यहाँ तक की रंग भी बिना पक्की कागजी परमिशन नहीं बदला जा सकता .जानपहचान गेराज वाला भी बिना कागज़ काम नहीं करेगा क्योंकि ख़ुफ़िया पुलिस की नज़र गैराजों पर रहती है.
इसलिए टक्कर मार कर कोई अमूमन भागता नहीं .अगर कोई टक्कर मार कर बिना रुके चल जाता है तो देर सबेर पकड जाता है.शायद यहाँ जनसँख्या कम होना भी इस व्यवस्था के बने रहने का एक कारण हो.
थैंक यू सर