राजस्थान में अधीनस्थ न्यायालयों की हालत पर सरकार और बार कौंसिल की उदासीनता
|अभिभाषक परिषद द्वारा आयोजित एक समारोह में भीलवाड़ा राजस्थान के जिला एवं सत्र न्यायाधीश हरसुखराम पूनिया ने मुकदमों की सांख्यिकी प्रस्तुत करने हुए बताया कि जिले में 32 न्यायालय हैं। इनमें 18 जिला मुख्यालय पर और 14 अन्य कस्बों में हैं। जिले में कुल 11, 455 दीवानी और 31,166 फौजदारी कुल 42,631 मुकदमे हैं लम्बित हैं। उन्हों ने यह भी बताया कि जिले में प्रतिवर्ष 24 हजार मामले दर्ज होते हैं।
इस सांख्यिकी से हम इस जिले की अदालतों की हालत का एक अनुमान लगा सकते हैं। वर्ष के 365 दिनों में से तकरीबन 105 दिन अवकाशों में चले जाते हैं। औसतन 40 दिन अन्य कारणों से बेकार हो जाते हैं जिन में न्यायाधीशों द्वारा लिए गए अवकाश भी सम्मिलित हैं। कुल 220 दिन अदालतों में काम हो पाता है। एक मुकदमा अदालत में पेश होने से ले कर उस के निर्णय तक अदालत को बहुत से काम करने होते हैं। जिन्हें सात घंटे के अदालती दिन में पूरा नहीं किया जा सकता। एक मुकदमा एक अदालत के कम से कम दो दिन अवश्य ही लेता है। एक अदालत अधिक से अधिक औसतन एक मुकदमा दो दिनों में निर्णीत कर सकती है। यह एक बहुत ही सावधानी पूर्वक प्राप्त किया गया निष्कर्ष है। इस अधिकतम गति से एक अदालत वर्ष में 110 मुकदमे निर्णीत कर सकती है। अदालतों को आधुनिक तकनीकी सुविधाएँ मुहैया कराई जाएँ और वे इस अधिकतम गति से दुगनी गति से भी काम करें तो भी वे प्रतिदिन एक मुकदमे की दर से वर्ष भर में केवल 220 मुकदमे ही निर्णीत कर पाएँगी। इस जिले की सभी 32 अदालतें मिल कर वर्ष भर में अधिक से अधिक 7040 मुकदमे निर्णीत कर सकती हैं। लेकिन जिले में कुल 24 हजार मुकदमे प्रतिवर्ष दर्ज होते हैं। इस तरह से इस जिले में प्रतिवर्ष अदालतों में आने वाले मुकदमों के निपटारे के लिए जितनी अदालतें होनी चाहिए उस की केवल एक चौथाई अदालतें हैं।
इस के अलावा जिले में 42,631 मुकदमे पहले से लम्बित हैं। इस गति से वर्तमान में लम्बित मुकदमों के निपटारे में कम से कम छह वर्ष लगेंग। तब तक अदालतों में प्रतिवर्ष 24 हजार मुकदमों के आने की गति से (जिस के बढ़ने की संभावना है) कुल 1,44,000 मुकदमें जिले में लम्बित हो चुके होंगे। यह एक भयावह स्थिति होगी। जिस का निपटारा समयबद्ध चरणों में नई अदालतें स्थापित किए बिना नहीं किया जा सकता। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकारों की तैयारी क्या है? यह अधीनस्थ न्यायालयों की बात है जिन की स्थापना की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है। राजस्थान सरकार ने इस वर्ष के अपने बजट में एक भी नई अदालत की स्थापना के लिए धन की व्यवस्था नहीं की है जिस से स्पष्ट है कि इस वर्ष कोई भी नई अदालत राजस्थान में नहीं खुलने जा रही है।
इसी समारोह में राजस्थान के वन पर्यावरण एवं खनिज राज्यमंत्री रामलाल जाट ने लोकतंत्र में न्यायपालिका के स्थान को महत्वपूर्ण होने का प्रवचन दिया और कहा कि आमजनता को सस्ता, सुलभ एवं त्वरित न्याय मिले। इसके लिए न्यायिक अधिकारी एवं अधिवक्ता तत्परता से प्रयास करें। उन्होंने कहा कि संविधान के दायरे में रहते हुए गरीब एवं जरूरतमंद लोगों को शीघ्र न्याय दिलाना न्यायपालिका का प्रमुख दायित्व है। राजस्थान के एक मंत्री का दृष्टिकोण इ
स गंभीर समस्या के प्रति बस इतना भर दिखाई दिया कि वह न्यायपालिका को अपनी जिम्मेदारी का अहसास दिला कर रह गए। उन्हों ने समस्या के प्रति सरकार के दृष्टिकोण का कोई भी खुलासा नहीं किया। ये तो खैर एक राज्य मंत्री थे। राजस्थान में नई काँग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री का हाल इस से भी बुरा है। राज्य में न्यायपालिका के विस्तार के संबंध में उन्हों ने मुख्यमंत्री बनने के बाद एक भी बार मुहँ नहीं खोला है। राजस्थान के वकीलों की संस्था राज्य की बार कौंसिल ने भी इस विषय में अपने विचार कभी सार्वजनिक नहीं किए हैं, जब कि मुकदमों के लम्बे समय तक अनिर्णीत पड़े रहने से सब से बुरी तरह वकीलों का ही व्यवसाय प्रभावित हो रहा है।
स गंभीर समस्या के प्रति बस इतना भर दिखाई दिया कि वह न्यायपालिका को अपनी जिम्मेदारी का अहसास दिला कर रह गए। उन्हों ने समस्या के प्रति सरकार के दृष्टिकोण का कोई भी खुलासा नहीं किया। ये तो खैर एक राज्य मंत्री थे। राजस्थान में नई काँग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री का हाल इस से भी बुरा है। राज्य में न्यायपालिका के विस्तार के संबंध में उन्हों ने मुख्यमंत्री बनने के बाद एक भी बार मुहँ नहीं खोला है। राजस्थान के वकीलों की संस्था राज्य की बार कौंसिल ने भी इस विषय में अपने विचार कभी सार्वजनिक नहीं किए हैं, जब कि मुकदमों के लम्बे समय तक अनिर्णीत पड़े रहने से सब से बुरी तरह वकीलों का ही व्यवसाय प्रभावित हो रहा है।
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9 Comments
I’d come to okay with you here. Which is not something I typically do! I really like reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to comment!
I’d have to allow with you here. Which is not something I usually do! I enjoy reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to speak my mind!
बिल्कुल सही फ़रमाया आपने! ये तो चिंता का विषय है!
Hamare loktantr kaa sabse chintneey vishay hamaree nyay waywastha hai..derse hote faisle..aur durust bhee nahee..kyonki der itnee ho jatee hai..
यह तो सुखद खबर नहीं है.
Chinta ki baat hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }</a
sudhar ji bahut jarurat hai..
bilkul sahi dardhaya aapne..
dhanywaad
बहुत सही लिखा आपने. स्थितियां ऐसी ही हैं.
रामराम.
चिन्तनीय स्थितियाँ हैं.