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लापरवाही से मृत्यु कारित होने के मामले में अपराधिक प्रकरण दर्ज किया जा सकता है।

कानूनी सलाहसमस्या-

रोहित ने राँची, झारखंड से समस्या भेजी है कि-

मेरे पिता राँची के ब्लाक से रिटायर 2005 मे हुये है।उसी गांव मे एक विवाहित महिला के साथ उनक नाजायज रिश्ता था। ये बात हम लोगों से छिपा कर मेरे पिता ने रखा था और किसी न किसी काम का बहाना बनाकर वो उसी के साथ रहते और पेन्शन का सारा पैसा उस महिला और उसके पति को देते। हाल में मेरी माँ को यह बात पता चला तब से उनपर मेरे पिता यातना देते रहे लेकिन वो सहती रही। इस बात के सदमे से मेरी माँ बीमार रहने लगी और मेरे पिता ने जानबूझ कर इलाज में देरी की जिस से मां का देहांत हो गया। क्या कोई ऐसा उपाय नहीँ है जिससे मेरे पिता और उस महिला पर कारवाई हो। इस के अलावा मेरी माँ के नाम से संपत्ति है उसका भी ग़लत ढंग से किसी को देने से रोका जा सके। अभी मैं हर हाल मे अपनी माँ को न्याय दिलाना चाहता हूँ।

समाधान-

प ने अपनी समस्या में यह नहीं बताया कि आप की माताजी का देहान्त कब हुआ है और आप के पिता ने किस तरह की उपेक्षा उन की चिकित्सा आदि में की है। यदि कोई पति जानबूझ कर अपनी बीमार पत्नी की चिकित्सा की उपेक्षा करता है तो यह धारा 304 ए आईपीसी का अपराध है इस मामले में लापरवाही से मृत्यु का मुकदमा आप के पिता के विरुद्ध दर्ज हो सकता था। लेकिन यदि आप की माता जी की मृत्यु को बहुत समय हो गया है तो उस के साक्ष्य भी नष्ट हो चुके होंगे। फिर भी आप अपनी ओर से पुलिस थाना में रपट दर्ज कराने की कोशिश कर सकते हैं। यदि आप समझते हैं कि अपने पिता की लापरवाही साबित करने के लिए आप के पास पर्याप्त सबूत हैं तो आप स्वयं भी मजिस्ट्रेट के न्यायालय में पिताजी के विरुद्ध इस अपराध के लिए परिवाद प्रस्तुत कर प्रार्थना कर सकते हैं कि इस मामले को जाँच के लिए पुलिस को दं.प्र.सं. की धारा 156 (3) में निर्देशित किया जाए।

प की माता जी के नाम जो संपत्ति है उस के उत्तराधिकारी आप की माता जी संतानें और आप के पिता हैं। इस कारण उस संपत्ति के बँटवारे और अपने हिस्से का पृथक कब्जा दिलाने के लिए आप दीवानी वाद प्रस्तुत कर के बँटवारा होने तक के लिए उसे बेचने या अन्य्था हस्तान्तरित करने से पिताजी को रोके जाने के लिए अस्थाई निषेधाज्ञा का आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं।

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