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लॉर्ड बेंटिंक के न्यायिक सुधार : भारत में विधि का इतिहास-60

लॉर्ड एमहर्स्ट के उत्तराधिकारी के रूप में लॉर्ड बेंटिंक ने गवर्नर जनरल का पदभार 1828 में ग्रहण किया। वे 1835 तक केवल सात वर्ष इस पद पर रहे। लेकिन उन्हें प्रशासक कम और समाज सुधारक अधिक कहा गया। उस ने समाज सुधार को अपना प्रशासनिक कर्तव्य समझा। इस मामले में उसे सभी गवर्नर जनरलों में सब से अलग कहा जा सकता है। बंगाल में प्रचलित अमानवीय सती प्रथा को उन्हों ने 1829 के सत्रहवें विनियम से  गैर कानूनी घोषित किया और उस की समाप्ति के लिए कठोर प्रशासनिक उपाय भी किए। जिस से सती प्रथा बंगाल में समाप्त हो गई।  इस कानून को बंगाल प्रेसीडेंसी के बाद मद्रास और मुंबई में भी लागू किया गया। उस ने अपने प्रशासनिक क्षेत्रों में कन्या भ्रूण हत्या को भी गंभीर अपराध बनाया और उस के अपराधियों को सजा के पुख्ता इंतजाम किए। मुगल प्रशासन के कमजोर हो जाने और स्थानीय प्रशासन कमजोर होने के कारण ठग बहुत बड़ी संख्या में जनता को परेशान करने लगे थे। स्थानीय प्रशासक उन के विरुद्ध कार्यवाही आरंभ करने के स्थान पर उन से नजराना ले कर उन्हें माफ कर देते थे। विलियम बेंटिंक ने उन के विरुद्ध सख्त कानून बनाया और कार्यवाही की। 1500 से अधिक ठगों को गिरफ्तार ही नहीं किया अपितु उन पर मुकदमा चला कर उन्हें मृत्यु दंड दिया गया। उस ने भारतियों और अंग्रेजों के बीच नौकरियों में भेदभाव की समाप्ति के प्रयास किए। उसी के प्रयासों से भारतियों को महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर काम करने के अवसर प्राप्त होने लगे।
इलाहाबाद में अतिरिक्त सदर अदालतें
लॉर्ड बेंटिंक ने लॉर्ड कॉर्नवलिस द्वारा स्थापित न्यायिक व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने के लिए भी महत्वपूर्ण कदम उठाए। कलकत्ता की सदर निजामत अदालत और सदर दीवानी अदालत काम के बोझ से बहुत अधिक व्यस्त रहने लगी थीं, न्याय में देरी सामान्य बात थी। परिवहन के साधनों का अभाव था और दूर से लोग न्याय हेतु कलकत्ता पहुँचने के स्थान पर अन्याय सहन करना उचित समझते थे। ऐसी अवस्था में उस ने इलाहाबाद में अतिरिक्त सदर निजामत अदालत और अतिरिक्त सदर दीवानी अदालत स्थापित की जिन्हें सहारनपुर, मेरठ, बुलंदशहर और बनारस के क्षेत्रों का न्यायाधिकार दिया गया। इस से इस क्षेत्र के लोगों को न्याय प्राप्त होने लगा।
दांडिक न्याय प्रशासन में सुधार, कमिश्नर के न्यायालयों की स्थापना
न दिनों सिविल और दीवानी न्याय के लिए प्रान्तीय स्तर पर सर्किट न्यायालय कार्य करते थे। लेकिन उन की न्याय प्रणाली ऐसी थी कि न्याय में असामान्य देरी होती थी और अनेक अभियुक्तों को अकारण ही लम्बे समय तक जेल में बंदी रहना पड़ता था। बेंटिंक ने इन सर्किट न्यायालयों को 1829 में समाप्त कर दिया। उस ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की प्रेसिडेंसियों को बीस भागों में बांट कर प्रत्येक भाग में एक कोर्ट ऑफ कमिश्नर एवं सर्किट स्थापित की। यह न्यायालय भू-राजस्व परिषद के नियंत्रण में रहते हुए राजस्व संबंधी काम देखते थे। इस के साथ ही वे सदर निजामत अदालत के नियंत्रण में दांडिक न्याय प्रशासन का कार्य भी देखते थे। उस ने कमिश्नर के न्यायालय को मजिस्ट्रेट, कलेक्टर और पुलिस के निरीक्षण का कार्य सोंपा। वह कुछ मामलों में मजिस्ट्रेट और संयुक्त मजिस्ट्रेट के निर्णयों की अपीलें भी सुन सकता था। इस व्यवस्था से बंगाल, बिहार और उड़ीसा के निवासियों को बहुत राहत महसूस की थी। लेकिन ए
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