वकील अपने मुवक्किल की प्राइवेसी को भंग कर के अपने ही प्रोफेशन को हानि पहुँचाते हैं।
|विनय ने जबलपुर, मध्य प्रदेश से समस्या भेजी है कि-
मेरे मित्र के पक्ष मे कोर्ट का एक फ़ैसला हुआ था। मित्र के एडवोकेट ने न्यूज़ पेपर्स में पूरी न्यूज़ छपवा दी। दोनो पक्षकारों के पूरे नाम पते के साथ। जबकि मित्र से इसकी कोई अनुमति नहीं ली गयी थी। वो परेशान हो गया पूरे शहर मे गली गली मेरी बदनामी हो गयी, ऐसा कहता है और उसके ऑफिस में उसे बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। वो आत्महत्या की बातें करता है। जब कि एक बार उस के वकील साहब के ये कहने पर की इसे छपवा देना चाहिए। उसने साफ कहा था कि हमारे नाम नहीं आए तो छाप सकता है। लेकिन वकील साहब ने न्यूज़ दे दी अपने नाम के लिए। अब फ्रेंड बहुत मानसिक तनाव पीड़ा और परेशानी में है। वकील साहब से बात करने पर वो असंगत आर्ग्युमेंट देने लगते हैं। मित्र का कहना है हम ने समाज के खिलाफ कोई अपराध नहीं किया। ये पर्सनल मैटर था। हो सकता है कल को मेरे घर को बसाने के लिए मैं प्रयास करूँ। लेकिन इन वकील साहब ने सब बिगाड़ कर दिया। क्या करना चाहिए? क्या वकील साहब को ये हक है कि बिना उस की अनुमति के वो न्यूज़ छपवा दे। क्या बिना नाम के या नाम बदल के न्यूज़ नहीं छप सकती थी? क्या वकील साहब के खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है? वकील साहब ने एक दिन पहले मित्र के फोन करने पर उसे बताया था कि कल न्यूज़ देख लेना छप जाएगी। मित्र के पास एसएमएस है जो उसने वकील साहब को किए थे कि यदि न्यूज़ दे दी है तो नाम मत छापने देना और बात भी की थी। कृपया मार्गदर्शन करें। वकील साहब अपनी गलती तक मानने को तैयार नही हैं। क्या किया जाए? वकील साहब को क्या इतने असीमित अधिकार हैं?
समाधान-
न्यायालय से निर्णय हुआ है और आजकल समाचार पत्र इस तरह के पारिवारिक मामलों के समाचार प्राप्त करने के लिए अपने संवाददाताओं को नियमित रूप से न्यायालय भेजते हैं जो हर न्यायालय में रोज होने वाले वाले निर्णयों की जानकारी न्यायालय के कार्यालय से तथा वकीलों से प्राप्त करते हैं। वकीलों में भी उन का नाम अखबार में छपने की चाहत होती है तो वे संवाददाताओं को यह जरूर कहते हैं कि उन का नाम छपे तो बेहतर होगा।
इस समाचार के प्रकाशन में वकील की गलती सिर्फ इतनी है कि उन्हों ने आप के मित्र को यह कह दिया कि न्यूज छप जाएगी, कल के अखबार में देख लेना। वर्ना इस तरह का समाचार आप के वकील की जानकारी के बिना भी अखबार वाले छाप सकते थे। यदि उस में समाचार जैसा तत्व होता तो वे अवश्य छापते वकील के मना करने पर भी नहीं रुकते। इस कारण वकील ने विधिक रूप से कोई गलती नहीं की है। अखबार वालों ने भी जो समाचार प्रकाशित किया है वह केवल वही है जो कि उन्हें न्यायालय के निर्णय से प्राप्त हुआ है।
जो निर्णय हुआ है उसे आप के मित्र को सहज रूप से स्वीकार करना चाहिए। सचाई को तो लोग कभी न कभी जान ही जाते हैं इस कारण उस से कब तक बचा जा सकता है। इस कारण सचाई को साहस के साथ स्वीकार करते हुए निर्भीकता से समाज का सामना करना चाहिए। उस में शर्म की कोई बात नहीं है। वकील साहब ने किसी तरह का कोई विधिक दुराचरण नहीं किया है इस कारण उन के विरुद्ध कोई कार्यवाही किया जाना संभव नहीं है। फिर भी वकीलों को चाहिए कि कम से कम वे अपने मुवक्किलों की प्राइवेसी का ध्यान रखें। इस से मुवक्किल को तो कम ही नुकसान होता है, अधिक हानि वकील की होती है कि उस की विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है जो उस के प्रोफेशन को नुकसान पहुँचाती है। आप के मित्र या आप से यदि कोई पूछे कि कौन वकील करना चाहिए तो आप शायद किसी का नाम न बताएँ लेकिन यह जरूर कहेंगें कि उस वकील को मत करना वह मुवक्किलों की परवाह नहीं करता।
मान्यवर, हमने इसमे लिखा है वकील साहब ने खुद दी न्यूज़।खैर हमारी व्यक्तिगत जिग्यासा है,जो उपरोक्त सवाल और जवाब से ही जागी है.. कृपया समाधन कर सकें तो हम लाभान्वित होंगे.. क्या कोर्ट का फैसला पक्षकार के अलावा प्रेस वाले निकलवा सकते हैं?? क्या पक्षकार की बिना अनुमति के किसी को हक है प्रेस मे देने का?? या वकील को कंसर्न मात्र केस तक होता है, उसके बाद उसका क्या अधिकार है जो ऐसा कर सके?? ये व्यक्तिगत विवाद होते हैं.. समाज के प्रति कोई अपराध नही किया होता परिवारिक मामलो मे..फिर उन्हे किस वज़ह से बदनाम करने का हक मिल सकता है किसी को.. इसके लिये हम उदाहरण देना चाहेंगे..पुलिस का.. जो बड़े बड़े अपराधियों..साज्यफ़्ता..अथवा आरोपी जो पकड़ाए हैं..उन्हे मुह ढँककर नकाब मे लाती ले जाती है..कोर्ट मे पेश करने.. फिर इन लोगो ने क्या अपराध किया हो सकता है ऐसा जो नाम पाते के साथ उनकी गली ग़ली फजीहत करवा दे कोई..ऐसे असीमित अधिकार संविधान के किस नियम मे आप लोगो को मिले हैं..
और सबसे अहम.. बार बार बोलने पर भी वकील साहब ने अपना कदम पीछे नही किया. क्या वे नाम परिवर्तित नही करवा सकते थे?? वकील साहब के प्रति कोई कार्यवाही नही कर सकता..इसका अर्थ क्या वकील साहबों को फिर स्वयं ही स्व-नियंत्रण मे नही रहना सीखना चाहिये.. विशेषाधिकार प्राप्त नेता आज सजा पाने लगे हैं.. क्योंकि अनुचित लाभ विशेषाधिकार का लेने के लिये अयोग्य लोग नेता बनने लगे हैं.. आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है.. 🙂 कृपया बताने का कष्ट करें.. क्योंकि सामान्य दृष्टिकोण से तो ये कतई अनुचित प्रतीत हो रहा है..