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वयस्क अविवाहित पुत्री को धारा 125 दंप्रसं के अन्तर्गत भरण-पोषण के लिए संशोधन हेतु इलाहाबाद उच्च् न्यायालय सुनवाई करेगा।

धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 कहती है …

पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति- (क) अपनी पत्नी जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या (ख) अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का चाहे विवाहित हो या न हो जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या (ग) अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का ( जो विवाहित पुत्री नहीं है) जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहाँ ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है, या (घ) अपने पिता या माता, का जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, भरण-पोषण करने में उपेक्षा करता है या भरण-पोषण करने से इन्कार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, ऐसी उपेक्षा या इन्कार के साबित हो जाने पर, ऐसे व्यक्ति को निर्देश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान … के भरण-पोषण के लिए ऐसी मासिक दर पर जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिस को संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय समय पर निर्देश दे। …..

अब एक मुकदमा इलाहाबाद उच्चन्यायालय के सामने आया जिस में कानपुर के मुख्य परिवार न्यायालय ने एक मामले में विचार करते हुए यह आदेश दिया कि पत्नी और पुत्री को भरण-पोषण भत्ता दिया जाए, लेकिन पुत्री को मुआवजा केवल उस के अठारह वर्ष की आयु की होने तक ही दिया जाए, तदुपरांत बंद कर दिया जाए।

मामले में वकील ने बहस की कि एक पुत्री का भरण-पोषण उस समय नहीं रोका जा सकता जब कि वह बारहवीं कक्षा की विद्यार्थी है, उस के पास आय का कोई साधन नहीं है और उसे स्वयं की पढ़ाई जारी रखने और अपने विकास के लिए इस की सख्त जरूरत है।

अदालत ने इस मामले पर विचार किया और माना कि धारा 125 दंप्रसं के अंतर्गत इस पुत्री को वयस्क होने के उपरांत भरण-पोषण भत्ता दिलाया जाना जारी नहीं रखा जा सकता। लेकिन अदालत ने इस मामले में अन्य वकीलों से सहायता मांगी और अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता शशिधर त्रिपाठी को धन्यवाद दिया जिन्होंने उन के समक्ष एक उच्चन्यायालय का निर्णय रखा, जिस में यह कहते हुए कि इस धारा के अंतर्गत पुत्री का भरण-पोषण वयस्क होने तक जारी नहीं रखा जा सकता, लेकिन  हिन्दू पर्सनल कानून के अनुसार उसे वयस्क होने पर भी यह भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है। इस के लिए वह एक नया मुकदमा फिर से दायर करे और उस की सुनवाई फिर से हो अनेक मुकदमें किये और सुने जाएँ इसी मुकदमे में दी गई राहत को जारी रखा। बाद में उच्चतम न्यायालय ने भी इस निर्णय का समर्थन किया।

इस नजीर को देखते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने परिवार न्यायालय का आदेश स्थगित कर दिया। इसी मामले में विधि आयोग की सिफारिशों विविध वैयक्तिक कानूनों की गहन समीक्षा के उपरांत यह महसूस किया कि धारा 125 दंप्रसं का यह कानून इस तरह का संशोधन चाहता है जिस से कि एक अविवाहित पुत्री जो स्वयं अपना भरण-पोषण जुटाने में असमर्थ है, वयस्क होने के उपरांत भी भरण-पोषण इस सामाजिक दायित्व वाले कानून के अंतर्गत प्राप्त कर सके।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह आदेश दिया कि भारत सरकार और उत्तरप्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया जाए कि वे कारण बताएँ कि किस प्रकार से धारा 125 दंप्रसं के इस प्रावधान की वैधानिकता का बचाव करेंगे?  जब कि यह कानून एक अविवाहित पुत्री  के लिए, जिसे भरण-पोषण की आवश्यकता है, भरण-पोषण भत्ता प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त रूप से यह दायित्व डालता है कि वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ होना साबित करे उन्हों ने केन्द्रीय और उत्तर प्रदेश के विधि आयोगों और राष्ट्रीय और उत्तरप्रदेश महिला आयोगों को भी इस आदेश की प्रतियाँ भिजवाने का आदेश दिया जिस से वे इस मामले की आगे सुनवाई के लिए उचित दखल दे सकें।

इलाहाबाद उच्चन्यायालय के निर्णय को यहाँ पढ़ा जा सकता है।

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