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अपमानजनक अभिवचनों के आधार पर मानहानि का मुकदमा किया जा सकता है

समस्या-

मेरे एक परिचित ने अपनी समस्या मुझे बताई और आप से समाधान पूछने के लिए कहा है।  उन की समस्या इस प्रकार है –

– मेरी के 2 पुत्रों और 3 पुत्रियों में से 1 पुत्र और 1 पुत्री ने मेरे उपर आरोप लगाया कि मैं ने उनकी माँ के नाम की खेती की जमीन धोखे से हडप ली। जब कि उनकी माँ ने कोई हिबानामा नही किया था। मेरी बुआ ने जब मैं नाबालिग था तो मेरे पिता के देहांत के बाद यह जमीन मुझे हिबा (दान) कर दी थी। यह बात उनके बच्चों को भी पता थी। बुआ की मृत्यु के 20 साल बाद उन्हों ने दूसरों के बहकावे मे आकर एक वाद दायर किया कि मैं ने उनकी माँ के नाम की झूठी रिपोर्ट लगा कर रजिस्ट्री करा ली। न्यायालय में वाद चला। लेकिन वे यह साबित नही कर पाये कि हमने झूठा काम किया है और समय सीमा के कारण भी यह वाद वो हार गये। मेरी बुआ के बच्चों ने बडी चालाकी से 1 पुत्र और 2 पुत्रियों को मेरे साथ इस वाद मे प्रतिवादी बनाया था कि उन को जमीन का हिस्सा मिल गया है हमें नही।  हमारे कहने के बाद भी उन्हों ने इस पर कोई ऐतराज नहीं किया और हमारे साथ प्रतिवादी बने रहे। उनका यह काम मुझे भविष्य में हानि तो नहीं पहुँचाएगा? मेरी बुआ के बच्चों ने वाद में वंशावली प्रस्तुत की और यह आरोप लगाया कि मेरे पिता ने मेरी माता को तलाक देकर उनकी दूसरी बहन से शादी कर ली थी और उसके के बाद हुई मेरी दो बहनों को उन्हों ने नाजायज और मेरी माँ को उनकी तलाक शुदा पत्नी बताया। जबकि मेरी माँ न तो तलाक शुदा थी और न मेरी बहनें नाजायज थीं। क्या मैं उनके विरूद्ध इस कृत्य के लिए न्यायालय में मानहानि और झुठा मुकदमा लगाने के लिए उन के विरुद्ध वाद दायर कर सकता हूँ?

-हाज़ी अमजद, गंजबासोदा, मध्यप्रदेश

समाधान-

म तौर पर यह माना जाता रहा है कि किसी मुकदमे में किसी पक्षकार द्वारा प्रस्तुत किए गए अभिवचनों को विशेषाधिकृत होते हैं और उन में जो तथ्य प्रस्तुत किए जाते हैं उन के आधार पर मानहानि का वाद प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। पर ऐसा नहीं है। यदि अभिवचनों में अंकित किए गए तथ्य किसी के सम्मान को चोट पहुँचाते हैं और बाद में गैर आवश्यक या मिथ्या सिद्ध होते हैं तो ऐसे मामलों में मानहानि के लिए अपराधिक और हर्जाने का दीवानी वाद प्रस्तुत किए जा सकते हैं। इस सम्बन्ध में कलकत्ता उच्च न्यायालय का धीरो कोच व अन्य बनाम गोविंददेव मिश्रा के मामले में दिया गया निर्णय तथा दिल्ली उच्च न्यायालय का संजय मिश्रा बनाम दिल्ली सरकार के मुकदमे में दिया गया निर्णय महत्वपूर्ण है। इन निर्णयों को आप उन पर क्लिक कर के पढ़ सकते हैं।

क्त मामले में आप के परिचित की माता जी और बहनों की मानहानि हुई है जिस से वे स्वयम् भी प्रभावित हुए हैं। वे स्वयं और उन की बहनें उक्त मामले में अपनी बुआ की उन संतानों के विरुद्ध जिन्होंने उन के विरुद्ध वाद प्रस्तुत किया था मानहानि के लिए अपराधिक परिवाद भी प्रस्तुत कर सकते हैं और हर्जाने के लिए दीवानी वाद भी प्रस्तुत कर सकते हैं।

ह प्रतिवादियों द्वारा वादी के मिथ्या कथनों पर ऐतराज न करने से आप के परिचित को कोई अंतर न पड़ेगा। क्यों कि न्यायालय ने वादी के कथनों को नहीं माना और वाद निरस्त कर दिया गया है। आप के परिचित को इस मामले में परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं है।

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