DwonloadDownload Point responsive WP Theme for FREE!

विधि व्यवसाय का नियमन : भारत में विधि का इतिहास-49

लॉर्ड कार्नवलिस ने 1793 के सातवें विनियम के माध्यम से विधि व्यवसाय का नियमन किया। योग्य और चरित्रवान अधिवक्ताओं को लायसेंस प्रदान किए जाने की व्यवस्था की गई और उन्हें देय फीस का निर्धारण किया गया। अवचार के लिए दोषी अधिवक्ताओं को दंडित किए जाने की व्यवस्था भी इस विनियम में की गई। इस के द्वारा सदर दीवानी अदालत को विधि के योग्य जानकारों को प्रमाणपत्र देने का अधिकार दिया गया। निर्धारित फीस से अधिक फीस लेना प्रतिबंधित कर दिया गया था। 
तीसरे विनियम के माध्यम से मुफस्सल दीवानी अदालत को किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध सुनवाई करने की अधिकारिता प्रदान कर दी गई थी। जिस से वह ब्रिटिश और यूरोपवासियों के विरुद्ध भी सुनवाई कर सकती थी। भू-राजस्व संग्रह का कार्य करने वाले अधिकारियों, कर्मचारियों और कलेक्टरों को विधि के प्रति उत्तरदायी बनाया गया। इस तरह विधि के समक्ष समानता और विधि व न्याय की सर्वोच्चता स्थापित करने का प्रयत्न किया गया।
बारहवें अधिनियम के अंतर्गत जमींदारों को पूर्व में प्राप्त शांति और व्यवस्था बनाए रखने के अधिकारों को समाप्त कर दिया गया तथा जिलों को निर्धारित इकाइयों में विभाजित कर प्रत्येक इकाई के लिए दरोगा की नियुक्ति का अधिकार मजिस्ट्रेट को दिया गया। ढाका, पटना और मुर्शिदाबाद जैसे नगरों को भी छोटी इकाइयों में बांट कर यह व्यवस्था की गई। दरोगा का दायित्व कोतवाल के नियंत्रण में अपने क्षेत्र में शांति बनाए रखना और अपराधों की रोकथाम करना होता था। उस की सहायता के लिए प्रत्येक गांव में एक-एक चौकीदार नियुक्त किया गया। 
लॉर्ड कार्नवलिस ने भू-राजस्व संग्रह की दरों को निर्धारित करने और उन के संग्रह की प्रक्रिया भी निर्धारित कर राजस्व संग्रह के नाम पर होने वाली मनमानी को समाप्त करने का प्रयास किया। उस ने स्थाई बंदोबस्त को मंजूरी प्रदान की और जमींदारों को भू-स्वामी मानते हुए उन से संग्रह किए गए भू-राजस्व की 9/10 राशि को कलेक्टर के माध्यम  से सरकार के पास जमा करना आवश्यक कर दिया। संबद्ध ताल्लुकादार और अन्य व्यक्ति भी सब-कलेक्टर के यहाँ भू-राजस्व जमा करा सकते थे। निरंकुश दमन और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के प्रयास किए गए। विनियमों का उल्लंघन करने  पर अधिकारियों के विरुद्ध दीवानी अदालत में दीवानी वाद दायर करने की राह खोल दी गई।
6 Comments