विवाहित पुत्री पिता की आश्रित नहीं।
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विसाखापट्टणम् से महिपाल सिंह ने पूछा है-
अपने भारत देश में लड़का लड़की को एक समान हक दिया जाता है। राजस्थान सरकार द्वारा अनुकम्पानियुक्ति के मामले में विवाहित लड़के को अनुकम्पा नियुक्ति दी जाती हैकिन्तु विवाहित लड़की को अनुकम्पा नियुक्ति नहीं दी जाती।
मृतक के कोईलड़का नहीं है, सिर्फ लड़कियाँ ही हैं। उस की माँ और पत्नी घर पर रहती हैं, पत्नी बीमारी के कारण अनुकम्पा नियुक्ति में नौकरी नहीं कर सकती। उसकि सभीलड़कियाँ विवाहित हैं।
क्या उन लड़कियों को अपने दादी और माँ की सेवाकरने के लिए अनुकम्पा नियुक्ति में नोकरी दी जा सकती है? कृपया मार्गदर्शन दें।
समाधान-
वर्तमान में राजस्थान में अनुकंपा नियुक्ति के जो नियम प्रभावी हैं उस में मृतक के उस आश्रित को नौकरी दी जा सकती है जो सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के समय उस का आश्रित हो। विवाहित पुत्रियाँ विवाह के पश्चात अपने पिता/माता की आश्रित न रह कर अपने पति की आश्रित हो जाती हैं। इस कारण से उन्हें आश्रित की श्रेणी में रखा जाना संभव नहीं है और वर्तमान नियमों में आश्रितों की जो सूची परिभाषा में दी गई है वह निम्न प्रकार है-
(c) “Dependent” means a spouse, son, unmarried or widowed daughter, “adopted son / adopted unmarried daughter” legally adopted by the deceased Government servant during his/her life time and who were wholly dependent on the deceased Government servant at the time of his/her death;
इस सूची में विवाहित पुत्री को सम्मिलित नहीं किया गया है इस कारण से उसे नियुक्ति देना संभव नहीं है।
जिन मामलों में मृतक के कोई पुत्र नहीं है और पुत्रियाँ विवाहित हैं वहाँ मृतक की माता और पत्नी ही परिवार में शेष रह जाती हैं। कोई भी विवाहित पुत्री उन की देखभाल कर सकती है। और उसे यह अधिकार मिलना चाहिए। इस दृष्टि से ऐसा प्रतीत होता है कि यह नियम संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। यह सरकारी सेवकों को इस बात के लिए भी प्रेरित करता है कि उन के एक पुत्र तो अवश्य हो चाहे वह दत्तक ही क्यों न हो। इस आधार पर इन नियमों को चुनौती देते हुए उपरोक्त परिस्थितियों में किसी एक विवाहित पुत्री को अन्य पुत्रियों की अनापत्ति तथा आवेदक पुत्री के पति की इस अंडरटेकिंग पर कि वह अपनी पत्नी को उस की माँ व दादी को अपने साथ रहने और उन की सेवा करने से न रोकेगा नौकरी देने का आदेश पारित करने के लिए रिट याचिका संबंधित उच्च न्यायालय में प्रस्तुत की जा सकती है। इस रिट याचिका में महत्वपूर्ण आदेश उच्च न्यायालय पारित कर सकता है, लेकिन यह भी हो सकता है कि इस रिट याचिका में आवेदक को कोई भी राहत नहीं भी दी जाए।