वैध मुस्लिम तलाक़ के लिए पहले दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों द्वारा पति-पत्नी की समझाइश जरूरी है
|समस्या-
अजमेर, राजस्थान से इरफान अली ने पूछा है-
मेरी शादी 2007 में हो गई थी। पर मेरी बीवी के पहले से किसी लड़के से संबंध थे। शादी की पहली रात को उस ने मुझ से कह दिया और तलाक देने के लिए कहा मैं ने उस के माँ बाप से बात की तो वे मुझे ही गाली गलौच करने लगे। 3 साल तक उसे मेरे पास नहीं भेजा। 3 साल बाद महिला सलाह सुरक्षा केन्द्र पर मेरी बीवी ने मुझे बुलवाया वहाँ से उस के माँ बाप ने भेज दिया पर उसने मुझे फिर कहा मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती हूँ। मुझे तलाक दे दो। पर उस ने अपने माँ बाप को नहीं बताया। अपनी माँ से कहा कि ससुराल वाले मेरी पिटाई करते हैं। उस के माँ ने 498ए व महिलाओं की घरेलू हिंसा से सुरक्षा अधिनियम में मुकदमा करवा दिया। मैं ने वकील के माध्यम से दो गवाहों हस्ताक्षऱ करवा कर तलाक दे दिया। मैं 75160 रुपए प्रतिमाह कमाता हूँ। मेरे घर में मैं अकेला और सब से बड़ा हूँ। मेरे वेतन से मेरे माता-पिता और तीन बहनों का गुजारा होता है। जब कि डीवी एक्ट में 2500 रुपया गुजारा भत्ता देने का आदेश हुआ है। मेरी उम्र 29 वर्ष की हो गई है। क्या मैं मुस्लिम विधि के अनुसार विवाह कर सकता हूँ? गुजारा भत्ता उच्च न्यायालय में अपील करने से कम हो सकता है? 2 साल का गुजारा भत्ता 50,000/- हो गया है उसे न दूँ तो कितने दिन की जेल होगी?
समाधान-
मुस्लिम विधि की साधारण जनता में जो समझ है उसी में सब से बड़ी गड़बड़ ये है। लोग समझते हैं कि तीन बार तलाक कह देने मात्र से तलाक हो जाता है जो सब से आसान है। खाविन्द विवाद बढ़ जाने पर सब से पहले यही करते हैं कि तलाक कर देते हैं। यह भ्रम बहुत कुछ वकीलों ने भी फैला रखा है। अब सुप्रीम कोर्ट ने शरीयत की सही व्याख्या को स्वीकार करते हुए स्पष्ट कहा है कि ऐसा तलाक तभी संभव है जब कि आखिरी (तीसरे) तलाक के पहले रिश्ते को बचाने के लिए समझौते की कोशिश (आर्बीट्रेशन) हुई हो जिस में एक व्यक्ति पति पक्ष का और एक व्यक्ति पत्नी पक्ष का हो। बंगलादेश और पाकिस्तान में तो अपराधिक कानून तक बना हुआ है कि पति जिस दिन पहला तलाक देगा तुरंत बोर्ड को तथा पत्नी को सूचना देगा। बोर्ड पति और पत्नी को आर्बीट्रेशन के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने के लिए नोटिस देगा। आर्बीट्रेशन असफल होने पर ही तीसरा तलाक होगा जो पहले तलाक का नोटिस बीवी को मिल जाने के 90 दिन के उपरान्त ही होगा। यदि कोई खाविन्द बोर्ड को नोटिस नहीं देता है तो वह दंड का भागी होगा। भारत में यह कानून नहीं है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने आर्बीट्रेशन का होना आवश्यक शर्त मान लिया है। ऐसे में आप का तलाक न्यायालय के समक्ष अवैध माना जाएगा। आप की बीवी आज भी आप की बीवी है। इस तरह वह भरण पोषण की अधिकारी तो है ही। 498-ए का मामला भी बीवी होने के आधार पर चलता रहेगा।
आप की पत्नी डरपोक थी। वह आप के साथ नहीं, अपने प्रेमी के साथ जीवन बिताना चाहती थी। लेकिन अपने माता-पिता से डरती भी थी। उस ने आप का ही सहारा लेना चाहा। आप ने सारी बात उस के माता पिता के सामने ही उजागर कर दी। उस के माता पिता भी सामाजिक बदनामी से डरते थे। अब सामाजिक बदनामी से बचने को मुकदमा लड़ रहे हैं। आप को पहले उस शख्स से बात करनी चाहिए थी जिस की बीवी के रूप में आप की बीवी रहना चाहती थी। वह तैयार हो जाता तो आप को उस के माँ बाप को बीच में डालने की जरूरत ही नहीं थी। तलाक कराते और उन का निकाह करा देते। हालांकि मुस्लिम विधि में यह इसलिए आसान न होता कि इद्दत में दूसरा निकाह न हो सकता था और इद्दत के वक्त बीवी आप के घर में रह भी नहीं सकती थी।
आप का मामला अच्छा था। पत्नी के पहले भी रिश्ते रहे हैं और वह स्वयं ही तलाक चाहती थी। आप को दो गवाहों के सामने पत्नी से यह स्वीकारोक्ति लिखवा लेनी चाहिए थी और उसी आधार पर तलाक कानूनी रूप से लेना चाहिए था।
जैसा आप ने बताया है, यदि आप 75160 रुपए प्रतिमाह कमाते हैं। तो जो भी भरण पोषण भत्ता न्यायालय ने अंतरिम रूप से आदेशित किया है वह उचित से कम ही है। उच्च न्यायालय जाने पर वह बढ़ तो सकता है लेकिन कम होने की संभावना रत्तीभर भी नहीं है। आप 50000 की राशि कब तक रोक कर रख सकेंगे? एक जेल भुगतने से दायित्व समाप्त तो नहीं होगा। गुजारा भत्ता तो तब भी देना होगा।
इस समय आप के पास अच्छा विकल्प यही है कि समाज के कुछ लोगों को बीच में डाल कर सहमति बना कर तलाक को अंतिम करने की ओर आगे बढ़ा जाए। पत्नी को एक पर्याप्त खर्चे की एक मुश्त व्यवस्था कर के ऐसी सहमति बनाई जा सकती है।
रमेश भाई इद्दत वह अवधि होती है, जिसमें तलाकशुदा अथवा विधवा महिला बिना अधिक ज़रूरत बाहर नहीं निकलती है… इस अवधि में वह अपने भविष्य की योजना बना सकती है… इस अवधि में अगर कोई पुरुष विवाह के लिए इच्छुक हो तब भी महिला से सीधा संपर्क नहीं कर पाता है… इस अवधि में महिला के गर्भ से होने या नहीं होने का भी पता चल जाता है।
परन्तु अगर महिला के अपनी पति से शारीरिक संबंध नहीं बने थे तो इद्दत की अनिवार्यता नहीं होती है।
शाह नवाज भाई, आपने काफी अच्छी जानकारी दी. मगर एक दो वाक्य समझ में कम समझ में आई.
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गुरुदेव जी, आपने मुस्लिम विधि को काफी अच्छे से समझाया और अच्छी जानकारी दी, मगर मुझे “इद्दत” की बात समझ में नहीं आई. इसकी परिभाषा क्या होती है ? जरा बताए.
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जानकारी के लिए आभार…
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