शून्य विवाह और हिन्दू विवाह अधिनियम से शासित व्यक्ति
|शून्य विवाह
पिछली पोस्ट में मैं ने बताया था कि हिन्दू विवाह अधिनियम में सपिंडों और प्रतिबंधित संबंधों में विवाह वर्जित हैं। ऐसे विवाहों को इस अधिनियम की धारा 11 के द्वारा शून्य विवाह घोषित किया गया है और यह व्यवस्था की गई है कि किसी भी पक्ष द्वारा न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत करने पर डिक्री पारित कर उन्हें शून्य घोषित कर दिया जाएगा। विवाह के समय यदि किसी पक्षकार का पति या पत्नी जीवित हो तो भी वह विवाह शून्य होगा और उपरोक्त विधि से उसे शून्य घोषित किया जा सकेगा। इस तरह यदि कोई विवाह संपन्न हो भी जाए तो भी उसे किसी एक पक्ष द्वारा कभी भी शून्य घोषित किए जाने का अवसर बना रहेगा।
हिन्दू विवाह अधिनियम से शासित व्यक्ति
हम अब यह जानें कि हिन्दू विवाह अधिनियम किन पर प्रभावी है? हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-2 में यह स्पष्ट किया गया है कि इस अधिनियम का प्रभाव किन व्यक्तियों पर होगा?
क- प्रत्येक उस व्यक्ति पर जो धर्म से हिन्दू है धर्म में हिन्दू धर्म के सभी रूप और विकास सम्मिलित हैं। हिन्दुओं में वैष्णव, लिंगायत, ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज और आर्य समाज भी शामिल हैं;
ख- प्रत्येक उस व्यक्ति पर जो कि धर्म से बौद्ध, जैन या सिख है;
ग- प्रत्येक उस व्यक्ति पर जो भारत में निवास करते हैं और जो धर्म से मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी नहीं हैं; लेकिन इस अधिनियम के प्रावधान उन व्यक्तियों पर प्रभावी नहीं होंगे जो यह साबित कर देंगे कि उन पर परंपरा और प्रयोग से इस अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होते हैं।
इस संबंध में यह स्पष्टीकरण भी दिए गए हैं कि-
(1) कोई भी बालक चाहे वह वैध हो या अवैध हो यदि उस के माता-पिता दोनों हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिख हों वह हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिख माना जाएगा;
(2) कोई भी बालक चाहे वह वैध हो या अवैध हो यदि उस के माता-पिता दोनों में से कोई एक हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिख हों और वह उस के सदस्य के रूप में उस जनजाति, समुदाय, समूह या परिवार में लाया गया हो जिस में वह माता या पिता सम्मिलित हो;
(3) कोई भी व्यक्ति धर्म परिवर्तन कर के या पुनः धर्म परिवर्तन कर के हिन्दू, सिख, जैन या बौद्ध हो गया हो।
धारा 2 की उपधारा (2) में यह प्रावधान किया गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड (25) में घोषित अनुसूचित जनजाति के लोगों पर इस अधिनियम के प्रावधान प्रभावी नहीं होंगे।
इस अधिनियम के लिए हिन्दू शब्द में वे लोग भी सम्मिलित हैं जो धर्म से हिन्दू नहीं हैं लेकिन इस अधिनियम में वर्णित प्रावधानों के कारण उन पर यह अधिनियम प्रभावी होगा।
इस तरह हम पाते हैं कि हर उस व्यक्ति पर यह अधिनियम प्रभावी होगा जिस पर प्रभावी होना इस अधिनियम में कहा गया है। अब यह कहने मात्र से कि वह हिंदू नहीं है, या वह हिन्दू धर्म को नहीं मानता इस अधिनियम के प्रावधानों से परे नहीं रह सकता। उस पर भी यह अधिनियम प्रभावी होगा।
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16 Comments
Mai jain hu jab mujhe shadi ke 4 mah bad pata chala ki meri bibi ki shadi 3 sal pahle ho gai h tab mane vivah shunya ke liye avedan kiya to usne 20 bad mangadnt kahani batate huye sp office mai 376 ka case kar diya ki mai usse blackmail kar raha tha aur sare privar ko uljha diya.mai kya karu help me nhi mai atmhtya kar lunga
मनोज जी आप ने बिलकुल सही बात कही
मैं कानून द्वारा रोके जाने की बात पूछा था पर आपने समाज व संबंधी की बात की चर्चा कर दी. पर इस पूरे पोस्ट में व comment में आपके द्वारा दी गयी जानकारी से यही स्पष्ट होता है कि इस प्रकार की विवाह को कानूनी मान्यता नहीं है और यदि कोई युगल ऐसी विवाह करना चाहेगा तो उसे कानून रोक भी नहीं सकता है और यदि ऐसा विवाह कर लेगा तो वह अपराध भी नहीं है और इसके लिए कोई दंड भी नहीं है. जब युगल के स्वेच्छा पर ऐसा विवाह हो ही सकता है तो फिर कानूनी मान्यता रहने या न रहने का क्या मतलब रह जाता है? फिर सरकार को या कानून को किसी युगल के इस प्रकार के व्यक्तिगत मामला में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और यह उनके स्वविवेक पर छोड़ना चाहिए. अब देखिये किसी धर्म के लोगों के लिए इस प्रकार के विवाह को मान्यता मिली है तो किसी धर्म के लोगों के लिए मान्यता नहीं मिली है. यह उचित नहीं है. जो सही है तो वह सबके लिए सही है और जो गलत है तो वह सबके लिए गलत है. एक के लिए सही और एक के लिए गलत नहीं हो सकता है. और इस प्रकार के व्यक्तिगत मामले में एक धर्मनिरपेक्ष देश में अलग-धर्म के लोगों के लिए अलग-अलग कानून बनाना सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखना नहीं बल्कि यह विभिन्न धर्मों के साथ सौतेला व्यवहार ही हुआ. सरकार व कानून के इस सौतेलापन व्यवहार से संबंधित कानून का मैं विरोध करता हूँ. एक देश में सभी के लिए एक कानून होना चाहिए और इस प्रकार के व्यक्तिगत मामले के लिए कोई कानून नहीं होना चाहिए बल्कि इसे व्यक्ति के स्वविवेक पर छोड़ना चाहिए और तब ही होगी धर्मनिरपेक्ष देश में लोगों अपने-अपने धर्म मानने अधिकार.
विवाह ही शून्य होता लेकिन कोइ दंड नहीं दिया जाता है |
@ महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma,
आप के इस प्रश्न का कानून से कोई संबंध नहीं है। निश्चित ही इस तरह का विवाह कानून और सामाजिक मान्यताओं के विरुद्ध है तो समाज और संबंधी इसे रोकने का प्रयत्न करेंगे। यदि उन दोनों में समाज का प्रतिरोध करने की क्षमता है तो वे प्रतिरोध कर के भी ऐसा कर लेंगे। यदि समाज और संबंधी कमजोर हैं तो वे इस तरह के विवाह को होने भी दे सकते हैं।
जानकारी देने के लिए धन्यवाद. कृपया बताने की कृपा करें कि कोई दो व्यस्क इस प्रकार की शून्य विवाह करना चाहे तो क्या उसे शादी करने से जबरन रोका भी जा सकता है? या उसके स्वेच्छा पर छोड़ दिया जायेगा?
@ Popular India said…
यह सही है कि यदि कोई वयस्क स्त्री-पुरुष उन के मध्य प्रतिबंधित रिश्ता होने पर आपस में स्वेच्छा से विवाह कर लें तो यह विवाह शून्य होगा लेकिन अपराध नहीं होगा इस का कोई दंड नहीं है। शून्य विवाह की परिस्थितियों में अनेक अपराध घटित हो सकते हैं और उन के लिए दंड निर्धारित हैं।
ऐसे विवाह की संतान का धर्म कुछ भी हो लेकिन हिन्दू विवाह अधिनियम के संदर्भ में वह हिन्दू ही होगी। आप इस पोस्ट का ध्यान से अध्ययन करें। स्पष्टीकरण (1) में कहा गया है…
(1) कोई भी बालक चाहे वह वैध हो या अवैध हो यदि उस के माता-पिता दोनों हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिख हों वह हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिख माना जाएगा;
नरेश सिह राठौङ ने सही कहा कि विवाह ही शून्य होता है लेकिन कोई दंड नहीं दिया जाता है. वकील साहब कृपया बताने की कृपा करेंगे के शून्य विवाह के बाद दंड का क्या प्रावधान है? फिर आप यह भी जानकारी दें कि शून्य विवाह के उपरान्त उस दंपत्ति से उत्पन्न संतान को किस धर्म का माना जाएगा क्योंकि उसके माँ-बाप ने (आपके द्वारा उल्लिखित बातों के अनुसार) धर्म का उल्लंघन कर शादी किया है.
विवाह ही शून्य होता लेकिन कोइ दंड नहीं दिया जाता है |
जानकारी प्रदान करने के लिए के लिये धन्यवाद…
इस सुदर जानकारी के लिये आप का धन्यवाद
जानकारी के लिये आभार.
Tarkeshwar Giri ने सही कहा कि देश एक है तो कानून भी एक ही होनी चाहिए. धर्म व जाति के नाम पर समाज को बांटने का काम हमारी समाज नहीं बल्कि हमारी सरकार व कानून कर रही है. एक ही स्थान पर किसी के लिए कुछ और कानून तथा किसी के लिए कुछ और कानून यह किसी भी अर्थ में न्यायसंगत नहीं है. इसे हमारे धर्मनिरपेक्ष देश के कानून का निष्पक्ष व्यवहार नहीं बल्कि सौतेलापन व्यवहार ही कहा जायेगा. आप इन सब कानून के जड़ तक के शुक्ष्म अध्ययन करेंगे तो इसमें कितनी ही खामी मिलेगी.
जाति के आधार पर समाज को बांटने में सरकार कितनी दोषी
आभार जानकारी का.
अच्छी जानकारी.
Desh ek hai to Kanoon Bhi ek hi Hona Chahiye.