श्रमिक वर्ग को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी
|हरीश शर्मा ने अलवर, राजस्थान से पूछा है-
मैं एक निजी कंपनी में पिछले छह वर्ष से काम कर रहा हूँ। कंपनी में मेरा काम अच्छा है। मै ने न्यूनतम वेतन के लिए श्रम आयुक्त के यहाँ शिकायत लगा रखी है। क्या मेरी कंपनी छंटनी के नाम पर हमें हटा सकती है या सीधे बाहर कर सकती है।
समाधान-
आप की नियोजक कंपनी आप को छंटनी के नाम पर भी हटा सकती है और अन्यथा भी काम पर लेने से मना कर सकती है। यह सब कंपनी के निर्णय पर निर्भर करता है। हालांकि कंपनी के यह दोनों ही कृत्य गैर कानूनी होंगे जिन्हें अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
इस का मुख्य कारण यह है कि किसी श्रमिक को श्रम विभाग के अलावा दीवानी न्यायालय में जाने के अधिकार कम मिले हैं। जितने अधिकार हैं उन में भी सिविल न्यायालय को श्रमिक को राहत देने के सीमित अधिकार हैं। जिस के कारण इस तरह के विक्टीमाइजेशन को रोके जाने के लिए स्टे अस्थाई निषेधाज्ञा प्राप्त करने में कठिनाई आती है।
श्रम विभाग और श्रम न्यायालय में किसी भी विवाद के न्याय निर्णयन में बहुत समय लगता है। राजस्थान में तो 30-30 वर्ष से अधिक के मुकदमे भी अभी श्रम न्यायालयों में अनिर्णीत हैं। इस से नियोजकों का हौंसला बढ़ता है और वे श्रमिक को अवैध रूप से भी सेवा से हटा देते हैं। मुकदमा लंबा चलने के कारण श्रमिक भी हताश हो जाता है। यही कारण है कि नियोजक निरंकुश हो गये हैं। श्रमिक अपने अधिकारों के लिए लड़ता ही नहीं है और बड़े पैमाने पर श्रमिकों का शोषण जारी रहता है।
श्रमिकों को उन के विवादों का हल एक वर्ष में मिलना चाहिए। इस के लिए श्रम न्यायालय बढाने पड़ेंगे। यह काम राजस्थान सरकार एक बड़ी लड़ाई के बिना नहीं करने वाली है। श्रमिक वर्ग को अपनी यह राजनैतिक लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी।