संज्ञेय अपराध होने पर कार्यवाही करना पुलिस का कर्तव्य है, एफआईआर दर्ज न करे तो न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत करें
समस्या-
श्री गंगानगर, राजस्थान से अमरीक ने पूछा है-
मैं ने समाचार पत्र में विज्ञापन पढ़ कर एक टॉवर कंपनी से संपर्क किया। उन्हों ने 3,550/- रुपए में रजिस्ट्रेशन करवाने को कहा और बताया कि कंपनी मुझे 60000 रुपए किराया देगी और 30-30 लाख दो किश्तों में एडवांस देगी। मैं ने रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन कर दिया। इसके बाद उन्हों ने बोला कि आपको 30 लाख का एडवांस इनकम टेक्स 1% जमा करवाना होगा। मैं ने मना कर दिया तो उन्हों ने कहा कि एक बार 10000/- रुपए जमा करवा दो। हम आपका 10 लाख का चैक लगवा देंगे। मेरे द्वारा 10,000/- जमा करवाने के बाद वो बोले कि पूरे 30,000/- जमा करवाने होंगे। मैं ने मना कर दिया तथा अपने पैसे वापस माँगे तो कंपनी कोई जवाब नहीं दे रही है। उनकी डिटेल ली तो पता चला कि वो सब फ़र्ज़ी है। पुलिस की सहायता लेने गया तो वो बोले कि उन्हें पकड़ा नही जा सकेगा क्यों कि उनका पता आपको पता नहीं है। मेरे पास उनका मोबाइल नम्बर और पंजाब नेशनल बैंक का अकाउंट नंबर है मगर पता नहीं है। उन पर क्या कार्यवाही हो सकती है? मेरे 13,550/- रुपये उनके पास हैं। पुलिस ने तो यहाँ तक बोल दिया कि जो भी खर्च होगा वह आपका लगेगा। मैं इतना खर्च वहन करने में समर्थ नहीं हूँ। कृपया बताए कि मैं क्या करूँ कि धोखाधड़ी करने वाले पकड़े जाएँ?
समाधान-
जब तक आप को उस कंपनी के पूरे नाम-पतों और विश्वसनीयता के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं थी तो आप को उस के साथ व्यवहार नहीं करना चाहिए था। जितनी भी अच्छी कंपनियाँ या कारोबारी होते हैं उन की शर्तें स्पष्ट होती हैं और वे बदलते नहीं हैं। जब उन्हों ने आप से पहले स्पष्ट किए बिना ही 30,000/- रुपए जमा करवाने को कहा और आप के मना करने पर 10 हजार ही जमा करने को कहा तभी आप को समझ जाना चाहिए था कि कंपनी फर्जी है। कोई भी कंपनी पाँच माह का किराया अग्रिम नहीं देती है और किराया प्रतिमाह अदा करती है। इस के अलावा इन्कम टैक्स एडवांस जमा नहीं होता है अपितु आप को अदा करने वाले किराए में काट कर अदा करने वाला जमा करवाता है और शेष राशि का भुगतान करता है। बिना भुगतान प्राप्त किए आप की इन्कम टैक्स की जिम्मेदारी नहीं बनती है। आप ने इन सब बातों पर विचार नहीं किया। यदि करते तो इस ठगी के शिकार नहीं होते। हर व्यक्ति को इस तरह का कोई भी अतिलाभकारी दिखाई देने वाले किसी प्रस्ताव को स्वीकार करने के पहले दस बार गंभीरता से सोचना चाहिए।
निश्चित रूप से जब कंपनी का पता नहीं है तो उस के विरुद्ध कार्यवाही करना दुष्कर काम है। हालाँकि बैंक खाते और मोबाइल नंबर से उन का पता किया जा सकता है। लेकिन ये दोनों भी इस तरह के हो सकते हैं कि उन से पता नहीं लगे। फर्जी पते से मोबाइल चिप लेना भारत में वैसे ही बहुत आसान है। बैंक खाते भी एक बार ठगी के बाद बंद कर दिए जाते हैं और बैंक में दिए गए पते पर पहुँचने पर पता लगता है कि वहाँ इस तरह का कोई व्यक्ति कभी नहीं रहा था।
किसी भी प्रकार के संज्ञेय अपराध होना पुख्ता होजाने पर उस पर कार्यवाही करना पुलिस का कर्तव्य है और पुलिस को वेतन व खर्चे सरकार देती है। ऐसी अवस्था में इस ठगी के मामले में कार्यवाही करने से पुलिस मना नहीं कर सकती और न ही यह कह सकती है कि उस में होने वाला खर्च आप को उठाना होगा। वास्तविकता यह है कि ऐसे मामलों में पुलिस को सफलता मिलना कठिन होता है इस कारण वे दर्ज मामलों में सफलता का प्रतिशत घटाने के भय से शिकायतकर्ता को हतोत्साहित करते हैं। फिर मामला 13,550/- रुपए की छोटी राशि का है और अनुसंधान का खर्च उस से कहीं अधिक। इस कारण से शिकायतकर्ता भी अधिक परेशानी में पड़ने के स्थान पर घर बैठना अधिक पसंद करता है।
फिर भी आप शिकायत करना और उस पर कार्यवाही होना देखना चाहते हैं तो तुरंत इलाके के पुलिस सुपरिंटेंडेंट को पूरी बात लिख कर रजिस्टर्ड ए.डी. डाक से भेज दीजिए। इस शिकायत में यह भी बताइए कि पुलिस थाना ने आप की शिकायत यह कह कर लिखने से मना कर दिया कि इस में जो भी खर्च होगा आप को भुगतना होगा। आप की शिकायत पर इस स्तर पर भी कोई कार्यवाही नहीं हो तो आप न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कीजिए और उसे धारा 156 (3) दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत पुलिस को अन्वेषण के लिए प्रेषित करवाइए। तब पुलिस को इस मामले में कार्यवाही करना ही होगा।
हमारे यहाँ यदि पुलिस ठीक हो जाए तो शायद अधिकांश समस्या का हल खुद हो जाएगा.
Mahesh Kumar Verma का पिछला आलेख है:–.मैं खुश रहूँ या न रहूँ, आप सब खुश रहें