सर्वोच्च न्यायालय की अपने ही निर्णयों और आदेशों के पुनर्विलोकन की अधिकारिता : भारत में विधि का इतिहास-97
|सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 137 के अंतर्गत शक्ति प्रदान की गई है कि वह अपने ही निर्णयों और आदेशों का पुनर्विलोकन कर सकेगा। लेकिन उस की यह शक्ति संसद द्वारा इस संबंध में बनाए गए नियमों और संविधान के अनुच्छेद 145 के अंतर्गत स्वयं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाए गए नियमों के अधीन रहेगी।
इस सम्बंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्मित नियमों में कहा गया है कि किसी भी दीवानी मामले में पुनर्विलोकन आवेदन दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 47 के आधारों के अतिरिक्त आधारों पर स्वीकार नहीं किया जाएगा तथा किसी भी दांडिक मामले में अभिलेखमुख पर दृष्टिगोचर त्रुटि के अतिरिक्त आधार पर स्वीकार नहीं किया जाएगा। पुनर्विलोकन हेतु कोई भी आवेदन आलोच्य निर्णय या आदेश के तीस दिनों की अवधि में ही प्रस्तुत किया जा सकेगा तथा इस में पुनर्विलोकन किए जाने के आधारों को स्पष्ट रूप से अंकित किया जाएगा। यदि स्वयं न्यायालय कोई आदेश नहीं दे देता है तो यह आवेदन निर्णय प्रदान करने वाले न्यायाधीशों को वितरित कर, बिना मौखिक बहस सुने ही निर्णीत किया जाएगा, लेकिन आवेदक चाहे तो साथ में लिखित बहस संलग्न कर सकता है।
न्यायालय उस के समक्ष प्रस्तुत किए गए पुनर्विलोकन आवेदन को निरस्त कर सकता है या विपक्षी पक्षकारों को नोटिस जारी कर सकता है। यदि किसी निर्णय या आदेश के विरुद्ध न्यायालय के समक्ष कोई पुनर्विलोकन आवेदन प्रस्तुत किया जाता है और न्यायालय द्वारा निर्णीत कर दिया जाता है तो उस मामले में कोई भी अन्य पुनर्विलोकन आवेदन प्रस्तुत नहीं किया जा सकेगा।
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4 Comments
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