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नादिरा बेगम का पटना मामला : भारत में विधि का इतिहास-36

रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों के कारण उपजे क्षेत्राधिकार के विवादों की श्रंखला में नादिरा बेगम का मामला भी बहुत दिलचस्प है और भारत के विधिक इतिहास में एक विशिष्ठ स्थान रखता है।
हुआ यूँ कि, काबुल का निवासी शाहबाज बेग खान भारत आया और कंपनी के एक कर्मचारी के रूप में पटना में बस गया। उस ने नादिरा बेगम नाम की महिला से निकाह कर लिया। कंपनी की नौकरी में शाहबाज ने अच्छी दौलत बना ली किन्तु उस के कोई संतान नहीं थी। उस ने काबुल से अपने भतीजे बहादुर बेग को बुलवा लिया जिस से उसे अपना दत्तक पुत्र बना सके। लेकिन शाहबाज की मृत्यु हो गई। नादिरा बेगम को शाहबाज की धनसंपदा प्राप्त हुई। बहादुर बेग ने दत्तक पुत्र की हैसियत से नादिरा बेगम के विरुद्ध पटना की कौंसिल में नालिश की कि उस की संपत्ति के विनिश्चय के लिए काजी, मुफ्ती आदि मुस्लिम विधि के अधिकारियों को निर्देश दिया जाए। नादिरा बेगम का कहना था कि बहादुर बेग को किसी प्रकार का दान प्राप्त नहीं हुआ है। और दान विलेख कूटरचित है। उस ने यह भी कहा कि मुस्लिम विधि में दत्तक ग्रहण का कोई उपबंध नहीं है। मुस्लिम विधि अधिकारियों ने शाहबाज की संपत्ति का विभाजन करते हुए 1/4 भाग नादिरा बेगम को और शेष भाग शाहबाज के भाई को दिया। लेकिन उस की पूर्व में ही मृत्यु हो जाने के कारण उस संपत्ति का अधिकारी बहादुर बेग ही हुआ। 
प्रान्तीय परिषद ने वाद का निर्णय करते हुए डिक्री का निष्पादन कर दिया। नादिरा बेगम ने निर्णय के विरुद्ध कलकत्ता की सदर दीवानी अदालत में अपील की। लेकिन न्यायाधीशों के रूप में कार्यरत सपरिषद गवर्नर जनरल की व्यस्तता के कारण लंबे समय तक अपील नहीं सुनी जा सकी। परेशान हो कर नादिरा बेगम ने बहादुर बेग, काजी और मुफ्ती के विरुद्ध हमला करने, प्रहार करने, उसे विधि विरुद्ध रीति से जेल में डालने और संपत्ति से वंचित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में वाद संस्थित करते हुए छह लाख रुपए की क्षतिपूर्ति दिलाए जाने का वाद प्रस्तुत किया। सुप्रीमकोर्ट ने कार्यवाही करते हुए। बहादुर बेग, काजी और मुफ्ती को गिरफ्तार करने और चालीस हजार रुपयों की जमानत प्रस्तुत करने तक जेल में रखने का आदेश दे दिया।
हादुर बेग, काजी और मुफ्ती ने तर्क प्रस्तुत किया कि सुप्रीमकोर्ट को इस मामले के विचारण का अधिकार नहीं है। बहादुर बेग ने कहा कि वह न तो कंपनी का कर्मचारी है और न ही हिज मेजेस्टी की प्रजा है। काजी और मुफ्ती ने कहा कि उन्हों ने न्यायिक क्षमता के अंतर्गत कार्य किया। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों के ही तर्कों को अस्वीकार करते हुए बहादुर बेग को कृषक के रूप में कंपनी को लगान का भुगतान करने के कारण कर्मचारी माना और उस पर सुप्रीमकोर्ट की अधिकारिता मानी। काजी और मुफ्ती को अपनी अधिकारिता के अतिक्रमण का दोषी माना और नादिरा बेगम को 3 लाख रुपए क्षतिपूर्ति अदा करने की डिक्री जारी कर दी। सु्प्रीम कोर्ट ने नादिरा बेगम को संपूर्ण संपत्ति का अधिकारी घोषित कर दिया।
स निर्णय से स्पष्ट हुआ कि न्यायिक शक्ति प्रान्तीय कौंसिल में ही निहित थी। लेकिन मुस्लिम अधिकारी मामले को निर्णीत करने को प्राधिकृत नहीं थे। उन्हें मामला सोंपे जाने के लिए प्रान्तीय परिषद की भर्त्सना की गई थी। मुस्लिम अधिकारियों द्वारा निर्णय अधिकारहीन था और मान्य नहीं किया जा सकता था। मुस्लिम विधि अधिकारियों ने मामले का विचारण कर के अपनी अधिकारिता का अतिक्रमण किया था। उन का दायित्व मात्र विधिक उपबंधों को स्पष्ट करने का था। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णीत राशि का भुगतान करने में असमर्थ रहने पर प्रतिवादियों को ज
ेल में डाल दिया। गवर्नर द्वारा उन की जमानत दे दिए जाने पर उन्हें मुक्त किया गया। लेकिन बूढ़े काजी की जेल में ही मृत्यु हो गई। सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के विरुद्ध प्रिविकौंसिल को की गई अपील निष्फल रही।
न विवादों का अंत करने के लिए ब्रिटिश संसद में सेटलमेंट एक्ट 1781 पारित किया गया।
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