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स्थाई निषेधाज्ञा की डिक्री दीवानी वाद के निर्णय से पारित की जा सकती है।

rp_property1.jpgसमस्या-

विश्वनाथ ने 546 एमजी रोड इंदौर, मध्यप्रदेश से राजस्थान राज्य की समस्या भेजी है कि-

राजस्थान के राजसमंद जिले के गाँव में मेरे अपने दादा के द्वारा खरीदशुदा मकान है जो 2003 में उन्होंने अपनी पुत्रवधु को विक्रय पत्र निष्पादित कर दे दिया था। वर्तमान में उस घर में मेरे अंकल अपने परिवार सहित रहते हैं और वर्ष 2010 में प्रशासन गाँवों के संग अभियान में उन्होंने उक़्त मकान का फ़र्ज़ी पट्टा अपने पुत्र के नाम से बनवा लिया। उनके द्वारा गाँव में स्थित अन्य संपत्ति का भी फर्जी पट्टा अपने नाम व् पत्नी के नाम बनवा लिया था जो जानकारी में आने पर वर्ष 2013 में निरस्त करवाये गए, किन्तु मकान के पट्टे की जानकारी ना होने से वो ग्राम पंचायत द्वारा निगरानी पेश नही करने से ख़ारिज नहीं हो पाए। क्यों कि पंचायत वाले भी इस मिली भगत में शामिल थे। उक़्त मकान का वर्ष 2006 में अंकल के द्वारा किरायेदारी लेख भी स्टाम्प पे लिखा गया है। अतः आप मार्गदर्शन करें मेरे द्वारा उक़्त मकान का पट्टा ख़ारिज करवाने हेतु न्यायालय में निगरानी पेश की गई है। 4 माह पूर्व जिस में सामने वाली पार्टी ने अब तक कोई जवाब पेश नही किया है। मैं वह मकान भी खाली करवाना चाहता हूँ आप बताइये किन धाराओं में केस दायर करूं, किरायेदारी में या फिर मालिकाना हक़ में? यह बताना जरुरी है कि उक़्त मकान मेरे दादा ने अपने चारों पुत्रो के नाम पर ख़रीदा था, उस वक़्त उनके सभी बेटे किशोरवय थे। तत्पश्चात् उन्होंने 2003 में मकान अपनी बड़ी पुत्रवधु को विक्रय किया। 2 मेरी माता जी के नाम गाँव में ही एक प्लाट है जिस पर अंकल ने स्वयम के नाम से पट्टा बनवा लिया व ग्राम पंचायत से मिल कर पंजीयन करा लिया। जिसे वर्ष 2013 में कलेक्टर न्यायालय ने निरस्त कर दिया। फिर भी कुछ समय के बाद उन्होंने उस प्लाट पर बने 3 कमरे चारों दीवार, चढ़ाव, पानी की होद सब तोड़ ताड़ कर नवीन निर्माण चालू कर लिया। जिस पर मेरे द्वारा दीवानी केस दायर किया गया तथा उस पर अस्थाई स्टे लिया गया। अब आप मार्गदर्शन करें। सभी दस्तावेज मेरे पक्ष में है, फिर भी वकील स्थाई स्टे का आवेदन नहीं दे रहा है। जिस कोर्ट में केस चल रहा है उन जज साहब का तबादला होने से कोई नए जज अब तक नहीं आये हैं। क्या करूँ इस स्थिति में चलते केस के दौरान ही मालूम पड़ा की अंकल ने उक़्त निरस्त पटटे पर प्राइवेट पैसा देने वालों से सूद पर रुपया भी ले लिया है। आप बताइये इन्हें भी केस में शामिल किया जावे कि नहीं। केस अभी तक बयान पर नहीं पंहुचा है, 1.5 वर्ष हो चले हैं।

समाधान

मुझे लगता है कि आप के वकील ठीक काम कर रहे हैं। आप उन से समय समय पर सलाह, मशविरा और संपर्क बनाए रखें। राजस्थान में जजों की कमी के कारण हमेशा कुछ अदालतें खाली पड़ी रहती हैं और उन का काम लगभग बंद सा पड़ा रहता है। लेकिन अब उच्च न्यायालय ने ऐसी व्यवस्था की है कि जिस अदालत में जज नहीं होता उस में कार्यवाही करने का अधिकार लिंक कोर्ट को दे दिया है। लिंक कोर्ट को वे सब अधिकार होते हैं जो कि उस अदालत को जिस में मुकदमा लंबित है। बस लिंक कोर्ट को उन मुकदमों से अधिक अपनी अदालत के मुकदमों की चिन्ता रहती है। यदि आप के वकील अदालत को कहेंगे तो उस में हर पेशी पर कोई न कोई कार्यवाही होती रह सकती है।

प ने जो दीवानी वाद प्रस्तुत किया है उस में राहत क्या मांगी गयी है? आपने यह नहीं बताया। स्थाई निषेधाज्ञा की डिक्री दीवानी वाद में निर्णय के द्वारा ही पारित हो सकती है। उस दीवानी वाद में ही स्थाई निषेधाज्ञा की राहत मांगी गयी होगी। यदि नहीं मांगी गयी है तो अब संशोधन के माध्यम से उसी वाद में जोड़ी जा सकती है। स्थाई निषेधाज्ञा के लिए अलग से वाद करने की जरूरत नहीं है, वह इसी वाद में निर्णय के साथ पारित की जा सकती है।

जिन लोगों ने निरस्त पट्टे पर चाचा को पैसा दिया है वे अपनी चिन्ता खुद करेंगे। आप को उन्हें किसी कार्यवाही में पक्षकार बनाने की जरूरत नहीं है। क्यों कि यदि वह संपत्ति या पट्टा चाचा ने बंधक भी रखा होगा तो वह बंधक भी बेकार हो चुका है क्यों कि पट्टा ही निरस्त हो चुका है।