स्वतंत्र न्याय पालिका की ओर कदम : भारत में विधि का इतिहास-53
|जॉन शोर के उपरांत 1797 में लॉर्ड वेलेजली को बंगाल का गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया। जॉन शोर के उपायों से भी न्याय व्यवस्था मुकाम पर नहीं आ सकी थी और कोर्ट फीस से न्याय महंगा हो गया था। गरीब व्यक्ति के लिए तो वह अवरोध ही बन गया था। सदर दीवानी अदालत की अध्यक्षता गवर्नर जनरल और उस की परिषद के सदस्य करते थे। जिस से न्याय प्रणाली पर कार्यपालिका का अत्यधिक प्रभाव था और वह स्वतंत्र नहीं थी। मुकदमों की संख्या के मुकाबले अदालतें कम होने से न्याय प्रशासन की गति मंद हो गई थी। दंड न्यायालयों की संख्या कम होने और अनिश्चित कार्यप्रणाली के कारण अपराधियों को सम्यक दंड दे पाना संभव नहीं हो पा रहा था। जिस से अपराध नियंत्रण ढीला हो गया था और अपराधों की संख्या बढ़ रही थी। अदालतों में केवल अंग्रेजों को ही न्यायाधीश नियुक्त किया जाता था जिस से वे स्थानीय परिस्थितियों और परंपरागत विधि के जानकार न होने से संगत न्याय नहीं कर पाते थे। लॉर्ड वेलेजली ने ऐसी परिस्थितियों में कुछ सुधार लागू किए।
लॉर्ड वेलेजली के सुधार
लार्ड वेलेजली
लॉर्ड वेलेजली ने सर्वोच्च अदालतों के संगठन में परिवर्तन किया। उस ने अपनी 1801 की योजना के अंतर्गत गवर्नर जनरल और उस की परिषद के सदस्यों को सदर दीवानी अदालत के दायित्व से मुक्त कर दिया और उन के स्थान पर तीन न्यायाधीश नियुक्त किए जाने का प्रावधान किया गया जिन में एक परिषद का सदस्य होता था और सदर दीवानी अदालत का मुख्य न्यायाधीश होता था। तीनों की नियुक्ति का प्राधिकार गवर्नर जनरल को था। सुनवाई खुली अदालत में की जाने लगी। दो न्यायाधीशों की उपस्थिति आवश्यक थी। सदर दीवानी अदालत को अधीनस्थ न्यायालयों के पर्यवेक्षण की शक्ति भी प्रदान की गई। वह गलती करने वाले अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों को दोषी पाए जाने पर दंडित भी कर सकते थे। इसी तरह सदर निजामत अदालत में भी परिषद का सदस्य मुख्य न्यायाधीश होता था। शेष दो न्यायाधीश अनुबंधित होते थे। नियुक्ति गवर्नर जनरल द्वारा की जाती थी।
अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति
नगर और जिला अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या को देखते हुए अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किए गए जो जिला अदालत द्वारा प्रेषित रजिस्ट्रार और मुंसिफ न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुन कर उन का निपटारा करने लगे। जिलों और नगरों के न्यायालयों में सदर अमीन के नाम से नए पद आरंभ कर उन पर नियुक्तियाँ की गईं। उन्हें जिला न्यायाधीश सदर दीवानी अदालत की पूर्वानुमति से नियुक्त करते थे। उन्हें सौ रुपए तक के मामले में निर्णय प्रदान करने का अधिकार दिया गया। पहले केवल जमींदारों और ताल्लुकादारों को ही मुंसिफ नियुक्त किया जा सकता था। लॉर्ड वेलेजली ने सदर दीवानी अदालत को अधिकार दिए कि वे किसी भी योग्य व्यक्ति को मुंसिफ नियुक्त कर सकते थे। प्रांतीय न्यायालय के 1000 रुपए मूल्य तक के निर्णय अंतिम होते थे। अब उन की यह अधिकारिता 5000 रुपए तक बढ़ा दी गई और इस से अधिक मूल्य के मामलों की अपीलें ही सदर दीवानी अदालत में सुनवाई के लिए जा सकती थी। इसी तरह रजिस्ट्रार की अधिकारिता 200 रुपए से बढ़ा कर 500 रुपए तक के मामलों पर कर दी गई। लॉर्ड वेलेजली ने सत्तांतरित और नए विजित क्षेत्रों में भी समान न्यायिक प्र
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5 Comments
बहुत सुंदर, लेकिन साथ साथ मै हम इसे भुलते जा रहे है, लेकिन फ़िर भी कुछ बाते तो याद रह ही जाती है, बहुत सुंदर लेख
इतिहास को रोचक तरीके से कहना भी एक कला है और आप इसमें माहिर हैं।
द्विवेदी जी होली की शुभकामनाएं।
यह भारतीय हॉकी टीम से भेदभाव तो नहीं?
लगता है आप पूरा इरिहास पढा कर ही रहेंगे। बहुत बहुत धन्यवाद।
अच्छी जानकारी.
बहुत आभार इस जानकारी का!