हर भुगतान की रसीद लेने और देने की आदत डालें
| रोमी अग्रवाल ने पूछा है –
मैं ने साल भर पहले सहारा के एक परिचित अभिकर्ता से अपना बचत खाता खुलवाया था। जो कि प्रतिदिन आ कर पचास रुपए ले जाता था। खाता एक वर्ष के लिए था। उस ने 2-4 रसीदें दीं लेकिन फिर रसीदें देना बंद कर दिया। परिचित होने के कारण हम ने कभी उस से रसीद नहीं मांगी। अचानक उस की नौकरी लग गई और वह बाहर चला गया। हम ने सहारा में पता किया तो जानकारी मिली कि हमारा पैसा वहाँ जमा हुआ ही नहीं। उस का भाई हमें बार-बार घुमा रहा है, 4-6 महिने हो गए। अब इस में मैं क्या कर सकता हूँ? क्या सहारा कंपनी कुछ कर सकती है?
उत्तर –
रोमी जी,
आप बहुत लापरवाह व्यक्ति हैं। लेकिन इस में आप का कसूर नहीं है, हम सभी भारतीय वास्तव में लापरवाह व्यक्ति हैं। आप ने अपने प्रश्न में भी लिखा है कि उस का भाई हमें बार-बार घुमा रहा है, 4-6 महिने हो गए। अब या तो चार, या फिर छह माह हुए होंगे, आप एक काल बता सकते थे। लेकिन आप ने अनुमान से यह काल लिखा है। खैर। किसी भी व्यक्ति को किसी भी अन्य व्यक्ति को किसी भी प्रकार का भुगतान देते समय रसीद अवश्य प्राप्त करनी चाहिए। चाहिए वह राशि आप अपने किसी नजदीकी रिश्तेदार को ही क्यों न दे रहे हों। आप यह ऐसे कर सकते हैं कि आप एक डायरी या स्कूली कॉपी ले लें। जब भी किसी को कोई राशि भुगतान करें या तो उस से रसीद लें और वह न दे तो इस डायरी या स्कूली कॉपी पर भुगतान का बाउचर बनाएँ और प्राप्त कर्ता के हस्ताक्षर करवा लें। इस काम के लिए बाजार में बाउचर बुक भी मिल जाती हैं। हम लोग सोचते हैं कि राशि की रसीद मांगने से सामने वाले व्यक्ति से रिश्ते खराब हो जाएंगे, वह यह महसूस करेगा कि उस का विश्वास नहीं किया जा रहा है। लेकिन रिश्ते तो अब भी खराब हो ही गए हैं। इस कारण यदि रिश्ते लेन-देन के आरंभ में ही खराब हो लें तो अच्छा है। कम से कम उतने खराब तो न होंगे जितने अब हुए हैं। यदि कोई व्यक्ति इस तरह रसीद लेने की आदत डाल ले और लेन-देन के वक्त कहे कि यह तो मेरा उसूल है मैं तो अपने बेटे या पत्नी से भी रसीद ले कर रखता हूँ, इस से मुझे हिसाब रखने में आसानी होती है, तो कोई भी व्यक्ति आप का बुरा भी न मानेगा और हो सकता है आप का अनुसरण करने लगे।
वास्तव में कानूनी स्थिति यह है कि जब तक आप के पास रसीद नहीं है तो अदालत या कोई भी अन्य कानूनी मंच भुगतान की बात को साबित नहीं मानता और इस तरह कोई कार्यवाही कर पाना संभव नहीं है। उस अभिकर्ता ने आप को 2-4 रसीदें दी ही हैं। जब उस ने रसीद देना बंद किया तभी उस से रसीद मांगी जा सकती थी और उसे बिना रसीद के धन देना बंद किया जा सकता था। इस तरह इस मामले में आप की लापरवाही का दंड ही आप भुगत रहे हैं।
More from my site
6 Comments
ample entry you’ve pick up
I’d come to play ball with you here. Which is not something I usually do! I really like reading a post that will make people think. Also, thanks for allowing me to speak my mind!
बहुत काम की जानकारी। धन्यवाद।
द्विवेदी जी आपकी बात तो खरी है लेकिन आजकल दैनिक उपभोग की वस्तुओं को रेस्तराँ, रेलवे स्टेशन, बस अड्डे आदि पर एम् आर पी से काफी अधिक दामों पर बेचा जाता है और हर चीज़ की रसीद भी नहीं दी जाती, पिछले दिनों हाइवे पर कार का मोबिल खरीदते समय दुकानदार ने अवसर देख कर सौ रूपये अधिक दाम वसूले और रसीद भी नहीं दी ,,, कहने पर बोला जाओ जहाँ मिले ले लो… कई बार इस तरह की परिस्थितियां आती हैं… लोग पचड़े में पड़ने के डर से कहीं शिकायत नहीं करते, यहाँ यह भी सच है कि शिकायत लिखवाना इतना आसान भी नहीं होता … क्या किया जाय
सतर्क रहना ही श्रेष्ठ है
सही कहा आप ने हम भारतिया इस बात से हमेसा अंजान रहते हे, ओर ठोकर लगने पर अकल आती हे तब तक देर हो चुकी होती हे, सुंदर सलाह धन्यवाद
द्विवेदी जी, बात तो सही है, पर रसीदों को संभाल कर रखना भी किसी झंझट से कम नहीं होता।
वैसे आपके सुझाव पर अमल करने की कोशिश करूंगा।
———
छुई-मुई सी नाज़ुक…
कुँवर बच्चों के बचपन को बचालो।