498ए भा.दं.संहिता के मामले में अपील के स्तर पर राजीनामे आधार पर दंड समाप्त किया जा सकता है
|समस्या-
मेरे सरकारी सेवारत मित्र को 498-क में सज़ा हुई है। निचली अदालत में लड़की वाले दहेज का सामान और पैसा वापिस करने की शर्त पर राज़ीनामा करने हेतु मान गये थे। किंतु उस समय मेरे मित्र नहीं माने। अब सज़ा के बाद मामला सत्र न्यायालय में है। अब मेरे मित्र लड़की वालों की शर्तों को मानकर राज़ीनामा करना चाहता है, ये विधि द्वारा कैसे संभव है? क्या राज़ीनामा ना होने की दशा में सत्र न्यायालय से सज़ा की पुष्टि होने पर मेरे मित्र को जेल जाना पड़ेगा? और क्या सत्र न्यायालय से सज़ा की पुष्टि के बाद मेरे मित्र की सरकारी नौकरी सदा के लिए जा सकती है?
-के.पी. सिंह, सतना, मध्यप्रदेश
समाधान-
आप ने यह नहीं बताया कि राजीनामे की शर्तें क्या होंगी? फिर भी अपील के स्तर पर धारा 498ए भा. दं. संहिताके मामले में राजीनामा संभव है। लेकिन राजीनामा प्रस्तुत करने के साथ ही यह तय करना होगा कि पति-पत्नी जिन के बीच में विवाद है क्या साथ रहने को सहमत हैं या अलग होने पर सहमत हो गए हैं और उन्हों ने सहमति से तलाक के लिए आवेदन न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया है।
दोनों ही स्थितियों में दोनों पक्षों के मध्य कोई लिखित अनुबंध गवाहों के सामने लिखा जाना चाहिए और उसे कम से कम नोटेरी पब्लिक से तस्दीक करा लेना चाहिए। एक बार उक्त अनुबंध तस्दीक करवा लेने पर उस के अनुसार साथ रहना आरंभ करना चाहिए या फिर तलाक के लिए न्यायालय में आवेदन कर देना चाहिए। इस के उपरान्त दोनों को अपने अपने शपथ पत्र के साथ न्यायालय को आवेदन प्रस्तुत कर देना चाहिए कि इन परिस्थितियों में अपीलार्थियों को दंडादेश निरस्त कर दिया जाए। इस मामले में आप मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का मातादीन एवं अन्य बनाम राज्य के मामले में दिया गया निर्णय न्यायालय को उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत कर सकते हैं। यह निर्णय यहाँ क्लिक कर के पढ़ा जा सकता है।
मैं समझता हूँ कि ससुराल में बिना प्रताड़ना के कुछ अपवाद छोड़कर कोई भी विवाहिता ४९८ अ का मुकद्दमा दायर नहीं करना चाहती है. यदि कोई दुरूपयोग कर निर्दोष लोगों को फंसाते हैं तो गलत है, लेकिन गलत तत्वों के चक्कर में सही महिलाओं के अधिकार तो ताक पर नहीं रखे जा सकते हैं. बेहतर हो कि यदि न्यायालय अगर मुकद्दमे के विचारण के दौरान यह पाये कि निर्दोष लोग प्रताड़ित होंगे तो उचित कदम उठाये जावें.
वविता जी नमस्कार मैंने आपको हमेशा देखा है की आप महिलाओ की वकालत खूब करती है जबकि मामलो को ध्यान से देखा जाये और दोनों पक्ष को समझा जाना चहिये फिर उसपर कोई टिप्पड़ी करनी चाहिए | आज ऐसा नहीं है की धारा ४९८ ए या धारा ४०६ के अंतर्गत केवल पुरुषो का शोषण हो रहा है इसमें कही हद तक महिलाये भी सामिल है जो की सास ,ननद , और देवरानी जेठानी के रूप में है | और रही बात कानून की तो दहेज की धाराओ के अलावा भी हमारे देश में और कई धाराओ में भी शक्त कानून है तो क्या उस शक्त कानून की वजह से उस धाराओ में अपराध काम होते है ? और अगर बात करें कानून की तो मान्नियें सुप्रीम कोर्ट भी इस बात को मान चुका है कि पत्नियों द्वारा अपने पतियों पर दहेज के मामले ९४%तक झूटे साबित होते है | और इसलिए धारा ४९८अ को कानून से मान्यता प्राप्त आतंकबाद कि संज्ञा डी गई है | मेरा आपसे अनुरोध है कि बिना दोनों पक्षों को समझे किसी एक पक्ष कि तरफ टिप्पड़ी करना अच्छी बात नहीं है और बाकि आपकी मर्जी ………………..धन्यबाद
498-A का दुरूपयोग ही होता है और स्त्रियाँ उसका उपयोग पुरुषों पे दबाव बनाने के लिए करती हैं. और कानून के दर से सुधरने की बात होती तो कब का सारा भ्रष्टाचार, चोरी-डकैती, आतंकवाद सब ख़त्म हो गए होते क्योंकि इनके लिए भी सख्त कानून है.
कोई भी कुप्रथा सामाजिक जागरूकता से ही ख़त्म किया जा सकता है, कानून के डंडे के बल पर नहीं.
कानून के डर से ही सही पुरुष सुधरेगा की किसी को सताना गलत बात है !
498-A का दुरूपयोग ही होता है और स्त्रियाँ उसका उपयोग पुरुषों पे दबाव बनाने के लिए करती हैं. और कानून के दर से सुधरने की बात होती तो कब का सारा भ्रष्टाचार, चोरी-डकैती, आतंकवाद सब ख़त्म हो गए होते क्योंकि इनके लिए भी सख्त कानून है.
कोई भी कुप्रथा सामाजिक जागरूकता से ही ख़त्म किया जा सकता है, कानून के डंडे के बल पर नहीं.