498ए में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने या उस की धमकी से परेशान होने या घबराने की जरूरत नहीं।
|रवि ने द्वारका, दिल्ली से समस्या भेजी है कि-
मेरे भाई के विवाह को 4 साल हो गए है वो अपनी पत्नी के साथ 3 साल से हम से अलग रहता है। 1 महीना पहले पति पत्नी में झगड़ा हो गया। उस की पत्नी केस कर दिया, जिस में हमें भी आरोपी बनाया गया है कि हम ने 3 साल पहले उसके साथ मरपीट की और दहेज़ के लिए घर से निकाल दिया। उस का पति उसे लेजाने को तैयार है पर वो कहती है कि मैं सास ससुर के घर में ही जाउंगी पति के साथ किराए के मकान में नहीं। मेरे माता पिता दोनों को घर में नहीं रखना चाहते अभी उनके कोई बच्चा नहीं है। अब हम क्या करें? क्या हमारे खिलाफ कोई क़ानूनी केस बनता है? जब कि हमारे साथ दोनों में से कोई भी नहीं रहता। अगर बनता है तो अब क्या करें?
समस्या- 2
विकास ने चंडीगढ़ से समस्या भेजी है कि-
मेरी शादी 14 फरवरी 2014 को हुई। उस के बाद मेरी पत्नी बस चार माह मेरे साथ रही फिर वह चली गई। ये बोली कि उस के एक्जाम हैं अब जब मैं उसे लेने गया तो उस के पिताजी ने मुझे कफी कुछ गलत बोला और मुझे माँ व भाई से दूर रहने के लिए बोला। जब वह अपनी लड़की को मेरे साथ बेज देंगे। अब एक साल बाद 498ए का मुकदमा करने की धमकियाँ दे रही है और मेरी बहन जो 5 वर्ष से विवाहित है उसे व जीजाजी का भी नाम उस में लिखवा देने की धमकियाँ दे रही है। मैं क्या करूँ?
समाधान-
आप दोनों की समस्याएँ एक जैसी हैं। असल में दोनों समस्याएँ पत्नी-पती और पति के रिश्तेदारों के बीच सामंजस्य न बैठने की समस्या है और समाज की एक आम समस्या है। यह हर उस परिवार में आती है। जिस में सब के सब ये सोचते हैं कि उन्हें नहीं अपितु दूसरे को उस के हिसाब से सामंजस्य बिठाना चाहिए। पहले छोटी छोटी बातें होने लगती हैं। उस में हर कोई दूसरे को दोष देता रहता है। फिर वे ही बड़ी बनने लगती हैं और अन्त में यह परिणाम सामने आता है।
धारा 498ए से घबराने की कोई जरूरत नहीं है। इस तरह के मामलों में केन्द्र सरकार और उच्चतम न्यायालय ने जो निर्देश दे रखे हैं उन में पति के सिवा अन्य लोगों को गलत रीति से अभियुक्त बनाया जाना अब संभव नहीं रहा है। पुलिस एक बार प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पति और उस के रिश्तेदारों से पूछताछ करती है और जब लगता है कि 497ए का ठोस मामला बन रहा है तभी उसे आगे चलाती है। जो मामले बनते हैं उन में भी अधिकांश पति के विरुद्ध ही आरोप पत्र प्रस्तुत हो रहा है। इन दोनों मामलों में पति-पत्नी अलग रह रहे थे। इस कारण यदि पति और रिश्तेदारों की ओर से इस बात के सबूत और गवाह पुलिस के सामने प्रस्तुत किए गए तो पति के सिवा अन्य जिन लोगों के नामजद रिपोर्ट कराई गई है उन के विरुद्ध मामला नहीं बनना चाहिए। फिर भी आप को लगता है कि मामला बनाया जा सकता है तो अग्रिम जमानत के लिए आवेदन प्रस्तुत कर अग्रिम जमानत प्राप्त की जा सकती है।
यदि इस तरह का मामला दर्ज कराने की धमकी ही दी जा रही है तो उस मामले में आप को चाहिए कि धमकी दिए जाने के सबूत इकट्ठे करें और पुलिस को रिपोर्ट करें। यदि पुलिस कोई कार्यवाही न करे तो सीधे मजिस्ट्रेट के न्यायालय को परिवाद प्रस्तुत करें। यदि आप की रिपोर्ट या परिवाद पर कोई कार्यवाही नहीं भी होगी तब भी रिपोर्ट या परिवाद एक सबूत के तौर पर आपके बचाव में काम आ सकेंगे।
एक बार 498ए में आरोप पत्र प्रस्तुत हो जाए तो उस के बाद किसी तरह की बड़ी परेशानी नहीं होती है। अब यदि पत्नी ने मुकदमा किया है तो ऐसा करना उस का अधिकार है। लेकिन यदि उस में कोई तथ्य नहीं हैं तो ये सब मामले न्यायालय से निरस्त भी हो जाते हैं। भारत में न्यायालयों की संख्या जरूरत की चौथाई से भी कम होने के कारण यहाँ किसकी भी मामले में निर्णय जल्दी नहीं होते। कई बरस लग जाते हैं, इस कारण होने वाली परेशानी से बचना संभव नहीं है। उस का तो एक ही इलाज है कि दोनों पक्ष आपस में बैठें और बातचीत करें। यदि लगता है कि विवाह आगे चल सकता है तो वैसा और नहीं चल सकता है तो सहमति से विवाह विच्छेद की राह निकाली जा सकती है। पर इस तरह पत्नी द्वारा मुकदमा कर देने या उस की धमकी देने मात्र से घबरा जाना ही इस तरह के मामलों को तरजीह देता है। या तो मुसीबत खुद बुलाई हुई होती है या फिर वह अचानक टपक पड़ती है। दोनों ही स्थितियों में घबराहट से कुछ नहीं होता है। समझ बूझ कर शान्त चित्त से उस का मुकाबला करना ही उस के हल की दिशा में सब से अच्छा कदम होता है।