एक-तरफा डिक्री कैसे अपास्त हो सकती है?
|समस्या
मेरे एक मित्र का प्रश्न लेकर उपस्थित हुआ हूँ। वो उ.प्र. के रहने वाले हैं। उनकी शादी हरियाणा के भिवानी में हुई थी, शादी को 14 साल हो गए हैं। अब पिछले 4 सालों से उनका विवाद अपनी पत्नी से चल रहा है। उनकी पत्नी ने भिवानी में उनके ऊपर 498-ए और घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत का मुकदमे कर रखे हैं। उन्होंने उ.प्र. में तलाक का मुकदमा किया था, जिसकी जानकारी कोर्ट ने रजिस्ट्री पत्र के माध्यम से तीन बार उनकी पत्नी को दी। लेकिन वहाँ से जवाब आया कि घर पर कोई मिला नहीं। उसके बाद कोर्ट ने राष्ट्रीय समाचार पत्र में सूचना निकलवा दी। फिर भी उपस्थित नहीं होने पर कोर्ट ने एक-तरफा सुनवाई कर के मेरे मित्र को तलाक की डिक्री प्रदान कर दी। उधर दूसरी तरफ भिवानी में दोनों केस चल रहे है। अब आपसे ये जानना है की इस तलाक से मेरे मित्र को क्या कोई फायदा उन दोनों केसों में भी मिल सकता है? क्या ये तलाक की एक-तरफा डिक्री मान्य होगी? इस एक-तरफा तलाक की डिक्री को उनकी पत्नी चुनौती देती है तो उसकी कोई समय सीमा भी होती है क्या?
-कमल शर्मा, हिसार, हरियाणा
समाधान-
हमारे देश में दीवानी मुकदमों की सुनवाई की प्रक्रिया दीवानी प्रक्रिया संहिता से शासित होती है। इस संहिता के आदेश 5 में मुकदमे का समन प्रतिवादी/प्रतिपक्षी पर तामील कराने की प्रक्रिया निर्धारित की गयी है। आम तौर पर समन न्यायालय का तामील कराने वाला व्यक्ति स्वयं ले जा कर तामील कराता है। लेकिन समन किसी दूसरे प्रान्त या जिला जज के न्याय क्षेत्र में तामील कराना हो तो न्यायालय आदेश 5 के नियम 20 में प्रतिस्थापित तामील के लिए आदेश दे सकता है।
प्रतिस्थापित तामील का पहला तरीका रजिस्टर्ड डाक द्वारा तामील कराने का है। जब इस तरह का आदेश दे दिया गया हो तब डाक द्वारा समन भेजा जाता है। डाक द्वारा समन तामील न हो सकने की स्थिति में न्यायालय किसी समाचार पत्र में प्रकाशन के माध्यम से प्रतिस्थापित तामील कराने के लिए आदेश दे सकता है। इस तरह तामील हो जाने पर भी जब प्रतिवादी/प्रतिपक्षी न्यायालय के समक्ष नियत तिथि पर उपस्थित न हो तो यह मान कर कि समन तामील हो चुका है और प्रतिवादी/प्रतिपक्षी मुकदमे में कोई भी प्रतिवाद नहीं करना चाहता है, दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 9 नियम 6 के अंतर्गत एक-तरफा सुनवाई का आदेश देता है, एक-तरफा सुनवाई कर के निर्णय, आदेश और डिक्री पारित करता है।
कोई भी एक-तरफा डिक्री पारित हो जाने पर यह संभावना बनी रहती है कि वास्तव में प्रतिवादी/प्रतिपक्षी पर समन/नोटिस की तामील नहीं हुई हो। ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति के विरुद्ध एक पक्षीय-डिक्री पारित हुई है वह दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 9 नियम 13 के अंतर्गत उस डिक्री को अपास्त (Set-aside) करने के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। इस आवेदन को प्रस्तुत करने के लिए समय सीमा अवधि अधिनियम 1963 की अनुसूची के क्रमांक 123 पर निर्धारित की गई है। इस में यह उपबंध किया गया है कि एक-तरफा डिक्री को अपास्त कराने के लिए आवेदन डिक्री पारित किए जाने के 30 दिनों की अवधि में प्रस्तुत किया जा सकता है। लेकिन जहाँ समन/नोटिस की तामील सम्यक रूप से नहीं हुई है, वहाँ डिक्री पारित होने का ज्ञान प्रतिवादी/प्रतिपक्षी पर होने की तिथि से 30 दिनों में ऐसा आवेदन प्रस्तुत कर सकता है।
जब प्रतिस्थापित तामील के बाद एक-तरफा डिक्री पारित की गई हो तो उसे सदैव ही इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि उसे मुकदमे का ज्ञान नहीं था। लेकिन प्रतिवादी/प्रतिपक्षी को ऐसे आवेदन में यह कथन करना होगा कि उसे मुकदमे या डिक्री की सर्वप्रथम जानकारी किस प्रकार हुई और उस के 30 दिनों की अवधि में वह यह आवेदन प्रस्तुत कर रहा है। तब वादी/प्रार्थी को भी यह अवसर रहता है कि वह इस कथन का प्रतिवाद कर सके कि प्रतिवादी/प्रतिपक्षी को मुकदमे का ज्ञान था और वह जानबूझ कर न्यायालय में उपस्थित नहीं हो सका था। इसे वादी साक्ष्य प्रस्तुत कर के साबित कर सकता है। यदि न्यायालय यह समझता है कि प्रतिवादी को तामील सम्यक प्रकार से नहीं हुई थी तो वह डिक्री को अपास्त करने का आदेश खर्चों आदि के सम्बन्ध में उचित शर्तों के साथ पारित कर सकता है और मामले की पुनः सुनवाई कर सकता है।
आप के मित्र की पत्नी ने उन पर घरेलू हिंसा और 498-ए के मुकदमे कर रखे हैं। हो सकता है कि आप के मित्र ने घरेलू हिंसा के मुकदमे में आवेदन का उत्तर देते समय प्रकट किया हो कि उन्हों ने पत्नी के विरुद्ध तलाक का मुकदमा कर रखा है। यदि ऐसा है तो फिर आप के मित्र का जवाब उन की पत्नी के वकील को प्राप्त होने पर आप के मित्र की पत्नी को तलाक के मुकदमे की जानकारी हो चुकी है और वैसी स्थिति में वह डिक्री को अपास्त कराने के लिए यह कथन करती है कि उसे मुकदमे की जानकारी नहीं थी तो उस कथन का इस आधार पर प्रतिवाद किया जा सकता है कि पत्नी को घरेलू हिंसा के मामले में प्राप्त हुई जवाब की प्रतिलिपि से मुकदमे की जानकारी प्राप्त हो गई थी और वह उस मुकदमे के समन/नोटिस की तामील प्राप्त करने से बचती रही थी। आप के मित्र के मामले में तो यह भी हो सकता है कि पत्नी स्वयं ही तलाक की इच्छा रखती हो और अधिक पचड़े में न पड़ कर मुकदमे में गैर हाजिर हो कर एक तरफा तलाक हो जाने दिया हो।
तलाक के मामले में डिक्री पारित होने के उपरान्त अपील की अवधि व्यतीत हो जाने पर डिक्रीधारी पक्ष दूसरा विवाह करने के लिए स्वतंत्र हो जाता है। यदि डिक्रीधारी के पास यह विश्वास करने का पर्याप्त कारण हो कि विपक्षी को तामील सम्यक रीति से हुई थी और उसे मुकदमे की जानकारी थी तो वह प्रतिवादी/प्रतिपक्षी द्वारा संहिता के आदेश 9 नियम 13 के अंतर्गत डिक्री को अपास्त करने का आवेदन प्रस्तुत होने और उस की तामील उसे होने से पूर्व विवाह कर लेता है तो उस का ऐसा विवाह वैध होता है जिसे न्यायालय अपास्त नहीं कर सकता। वैसी स्थिति में उक्त डिक्री को अपास्त किया जाना भी असंभव हो जाता है।
मेरे तलाक को ६ साल हो गए हे , मेरा एक लड़का हे उसकी उम्र १३ साल हे अब प्रॉब्लेब ये हे की स्कूल में मुझे डिक्री जमा करनी हे और मेने तलाक के बाद डिक्री लेना बाकी हे तो अब मुझे मेरे बेटेकी डिक्री लेने के लिए क्या करना चाहिए कुछ सुजाव दीजिये . मेरे पतिने ने तलाक के समय एफीडेविट करदी थी के मेरे बेटेके नाम के पीछे मेरा नाम होगा तो उसे कोई प्रॉब्लम नहीं हे लेकिन एफिडेविट मान्य नहीं हे तो क्या अब मुझे कोर्ट से डिक्री लेने के लिए मेरे पतिको कहना पडेगा .
चकबन्दी अधिनियम 9क के अधीन एक वाद चकबन्दी न्यायालय मे चल रहा था।वाद चलते समय वादी ने स्वंम एक आदेश स्थलपर यथास्थिती बनाये रखने के लिऐ स्थगन आदेश दिंनाक 12/12/2014 पारित करा लिया ।
इसके बाद करीब 10माह के अन्तराल मे उपरोक्त वाद मे इस स्थगन आदेश को अपास्त किया गया है
प्रतिवादी व वादी को क्या लाभदायक है।
आपने अच्छी तरह जानकारी दिया इसके लिए धन्यवाद.
कृपया जानकारी दें की एक तरफा डिक्री का आदेश हो जाने पर भी यदि आदेश का पालन नहीं हो तो क्या करना चाहिए?
जानकारी देने के लिए शुक्रिया
सर जी नमस्कार ,आपने बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है | लेकिन एक प्रशन और था की उनको 498 अ और dv एक्ट मैं भी कोई फायदा हो सकता है इस डिक्री से ?
४९८ ए में तो किसी तरह का लाभ इस डिक्री से प्राप्त होना संभव नहीं। क्यों कि उस में तो अभियोजन पक्ष को पति या उस के परिजनों द्वारा क्रूरता साबित करनी होती है। यदि वह साबित हो जाती तो अपराध का आरोप सिद्ध हो जाएगा। तलाक की डिक्री तो आरोप पत्र में अपराध होने की तिथि के बाद की ही होगी।
घरेलू हिंसा अधिनियम में भी कोई अधिक लाभ नहीं होगा। तलाक की डिक्री पारित होने की तिथि के बाद पत्नी को पत्नी नहीं माना जाएगा। वैसी स्थिति में उस तिथि के बाद पत्नी को प्राप्त होने वाली राहत प्रभावित हो सकती है।
दिनेशराय द्विवेदी का पिछला आलेख है:–.एक-तरफा डिक्री कैसे अपास्त हो सकती है?