पिता को दादा से उत्तराधिकार में मिली संपत्ति पर पुत्र का कोई अधिकार नहीं।
समस्या-
इन्दौर, मध्य प्रदेश से अजय ने पूछा है –
क्या पिता अपने पुत्र को दादा की (अविभाजित) संपत्ति के अधिकार से वंचित कर सकता है? दादा जी ने इसे स्वयं अर्जित किया था। दादा जी का देहान्त सन् 2000 में हुआ है। पिता ने दादा की (अविभाजित) संपत्ति बेच कर कंपनी से तीन नौकरी ली है। हम 3 भाई और 1 बहन हैं, बड़ा भाई विवाहित है, पिता ने 2 नौकरी बड़े भाई (विवाहित) को दे दी, 1 नौकरी मुझसे छोटे भाई को दे दी। मुझे और सबसे छोटे भाई और एक बहन को नौकरी से वंचित कर दिया है। क्या मेरा कोई हक नही बनता है?
समाधान-
दिनांक 17 जून 1956 को भारत में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी हो गया था। इसे प्रभावी हुए अब 57 वर्ष व्यतीत होने जा रहे हैं। इस अधिनियम के पूर्व हिन्दू विधि में यह नियम था कि यदि कोई व्यक्ति अपनी स्वअर्जित संपत्ति को वसीयत नहीं करता था तो वह उत्तराधिकार में उस के पुरुष वंशजों को प्राप्त हो जाती थी। ऐसी संपत्ति में उस के चार पीढ़ी तक के उत्तराधिकारियों को अधिकार प्राप्त होता था और बिना विभाजन के उसे कोई विक्रय नहीं कर सकता था। लेकिन इस अधिनियम के आने के बाद यह नियम परिवर्तित हो गया।
अब किसी भी व्यक्ति की स्वअर्जित संपत्ति उस के प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों अर्थात पत्नी/पति, व पुत्र-पुत्रियों को प्राप्त होने लगी। उस संपत्ति में उत्तराधिकारियों का हिस्सा होने लगा। लेकिन उत्तराधिकारियों के उत्तराधिकारियों का अधिकार जो पहले ऐसी संपत्ति में होता था समाप्त हो गया।
आप के दादा जी का देहान्त सन् 2000 में हुआ। वसीयत न होने की स्थिति में वह संपत्ति उन के उत्तराधिकारियों को प्राप्त हो गई। आप के पिता को जो संपत्ति अपने दादा जी से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई उस में आप के पिता जी के उत्तराधिकारियों का कोई अधिकार नहीं है। आप के पिता उस संपत्ति को विक्रय कर सकते हैं। आप के पिता ने उस संपत्ति को बेच कर उस की कीमत और विक्रेता से अपने परिवार के कुछ सदस्यों के लिए रोजगार प्राप्त कर लिया। इस में कानून की दृष्टि में कुछ भी उचित नहीं हुआ। क्यों कि उस संपत्ति पर आप के पिता के उत्तराधिकारियो का कोई अधिकार नहीं था। आप को उक्त संपत्ति में कोई अधिकार नहीं था। इस कारण आप को पिता द्वारा उक्त संपत्ति को बेच कर अपने और अपने परिवार के कुछ सद्स्यों को लाभ पहुँचाने के निर्णय में दखल देने का कोई अधिकार नहीं था और आप अब भी उस अधिकार को कोई चुनौती नहीं दे सकते।
सर मेरे दादा जी के पास 10 बीघा जमीन है.. जो उन्हे उनके पिता से मिली और उनके पिता को उनके बाबा से.. मेरे बाबा ने दो शादियां की है..पहली शादी से 2 पुत्र और दूसरी शादी से भी दो पुत्र . लेकिन उन्होने उस भूमि को पिछले महीने अपनी दूसरी पत्नी के दोनों पुत्रो को बेचनामा कर दिया.. और अगले महीने उसका उन्नाव तहसील से दाखिल खारिज होना बाकी है.. जबकि मेरे बाबा ने मेरे पिता और चाचा को अभी तक अधिकारिक रूप जायदाद से बेदखल भी नहीं किया है.. कृपया बताएं कि अब हम लोग क्या करें.. क्या वो जमीन अभी मिलेगी या नहीं ?
सर जी नमस्कार जी , सर जी मैंने अपने एक मेटर मे अपने वकील से आपके द्वारा बताई उपरोक्त बात की तो उनका कहना था की ऐसा नहीं है |क्या आप मुझे बता सकते है कि उपरोक्त विधि हिन्दू सक्सेशन एक्ट 1956 की कोण सी धारा मे लिखी है आपकी अति कृपा होगी …..
कमल हिन्दुस्तानी का पिछला आलेख है:–.एफआईआर में नाम होने मात्र के आधार पर पति-संबन्धियों के विरुद्ध धारा-498ए का मुकदमा नहीं होना चाहिये -उच्चतम न्यायालय…..
क्या मेरा नौकरी में भी कोई हक नही बनता है