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सर्वोच्च न्यायालय की सामान्य अपीलीय अधिकारिता : भारत में विधि का इतिहास-93

र्वोच्च न्यायालय भारत का अंतिम न्यायालय है जहाँ किसी न्यायार्थी को न्याय प्राप्त हो सकता है। इसे सभी प्रकार के मामलों में अपीलीय शक्तियाँ प्राप्त हैं।

संवैधानिक मामले-
संविधान के अनुच्छेद 132 में यह उपबंधित किया गया है कि भारत के किसी उच्च न्यायालय की सिविल, दांडिक या अन्य कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत की जा सकती है यदि वह उच्च न्यायालय अनुच्छेद 134क के अधीन प्रमाणित कर दे कि उस मामले में कानून का ऐसा सारवान प्रश्न अंतरवलित है जिस में संविधान के किसी भाग की व्याख्या की जानी है तो सर्वोच्च न्यायालय को अपील प्रस्तुत की जा सकती है।
स तरह का प्रमाण पत्र उच्च न्यायालय द्वारा जारी कर दिए जाने पर अपील इस आधार पर भी प्रस्तुत की जा सकती है कि उस मामले में किसी प्रश्न को गलत निर्णीत कर दिया गया है।

दीवानी मामले-
संविधान के अनुच्छेद 133 में संवैधानिक प्रश्नों के अलावा अन्य दीवानी मामलों का उल्लेख किया गया है जिस के अनुसार भारत के किसी भी उच्च न्यायालय की सिविल कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील सर्वोच्च न्यायालय को की जा सकती है यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि –
1. उस मामले में विधि का सार्वजनिक महत्व का कोई सारवान प्रश्न अंतर्वलित है और उच्च न्यायालय की राय में उस प्रश्न का सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विनिश्चय आवश्यक है।
2. संविधान के अनुच्छेद में संविधान की व्याख्या के संबंध में उपबंध होने पर भी इस अनुच्छेद के अंतर्गत उच्च न्यायालय द्वारा प्रमाणपत्र जारी किए जाने पर की गई अपील में यह आधार भी लिया जा सकता है कि संविधान के किसी उपबंध की व्याख्या से संबंधित विधि का कोई सारवान प्रश्न अंतरवलित है।
3. लेकिन इस अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन किसी उच्च न्यायालय की एकल पीठ के किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील सर्वोच्च न्यायालय को तब तक नहीं की जा सकेगी जब तक कि ससंद विधि द्वारा इस बारे में कोई उपबंध न कर दे।

दांडिक मामले –
नुच्छेद 134 के अंतर्गत भारत के किसी उच्च न्यायालय की दांडिक कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, अंतिम आदेश या दंडादेश की अपील सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत की जा सकती है  यदि–
1. उस उच्च न्यायालय ने अपील में किसी अभियुक्त या व्यक्ति की दोषमुक्ति के आदेश को उलट दिया है और उसको मॄत्यु दंडादेश दिया है ; या
2. उस उच्च न्यायालय ने अपने प्राधिकार के अधीनस्थ किसी न्यायालय से किसी मामले को विचारण के लिए अपने पास मंगा लिया है और ऐसे विचारण में अभियुक्त या व्यक्ति को सिद्धदोष ठहराया है और उसको मॄत्यु दंडादेश दिया है ; या
3. वह उच्च न्यायालय अनुच्छेद 134क के अधीन प्रमाणित कर देता है कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में अपील किए जाने योग्य है।
स के अतिरिक्त संसद विधि द्वारा उपबंध कर के सर्वोच्च न्यायालय को भारत के किसी उच्च न्यायालय की दांडिक कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, अंतिम आदेश या दंडादेश की अपील ऐसी विधि में उपबंधित शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए अपील ग्
रहण करने और सुनने की अतिरिक्त शक्ति दे सकती है।

क्त संवैधानिक, दीवानी और दांडिक मामलों में किसी उच्च न्यायालय द्वारा अपील योग्य होने का प्रमाणपत्र जारी होने पर भी सर्वोच्च न्यायालय यदि यह समझता है कि उच्च न्यायालय द्वारा प्रमाणपत्र जारी करने के उपबंध का उचित रूप में प्रयोग नहीं किया गया है तो वह मामले को वापस उच्च न्यायालय को पुनःप्रेषित कर सकता है या फिर अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते हुए उस अपील को विशेष अनुमति से की गई अपील मान कर ग्राह्य कर सकता है।
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