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Category: Legal History

मद्रास में राजस्व और पुलिस व्यवस्था : भारत में विधि का इतिहास-69

राजस्व व्यवस्था मद्रास में 1786 में भू-राजस्व मंडल की स्थापना की गई थी, जिस का उद्देश्य भू-राजस्व व्यवस्था को सुचारू बनाना था। 1794 में मंडल के अधीन प्रत्येक
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मद्रास में थॉमस मनरो के सुधारों के बाद की दांडिक न्याय व्यवस्था : भारत में विधि का इतिहास-68

मद्रास प्रेसीडेंसी में दांडिक न्याय लॉर्ड कॉर्नवलिस के सुधारों के अनुरूप ही प्रचलित था। 1807 में कार्यपालिका और न्यायपालिका के पार्थक्य के सिद्धांत को लागू करने पर गवर्नर
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मद्रास में थॉमस मनरो के सुधार और उस के बाद की दीवानी न्यायिक व्यवस्था : भारत में विधि का इतिहास-67

मद्रास प्रेसीडेंसी में थॉमस मनरो आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए अगले वर्ष 1816 में अनेक महत्वपूर्ण विनियम जारी किए गए। विनियम-4 के द्वारा गाँव के
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मद्रास में न्यायिक प्रशासन के विकेन्द्रीकरण के लिए आयोग का गठन : भारत में विधि का इतिहास-66

सन् 1802 में मद्रास में लागू की गई न्याय व्यवस्था पर्याप्त नहीं थी। इस से अदालतों में मुकदमों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी. उन के निपटारे में
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मद्रास में दांडिक न्याय प्रशासन : भारत में विधि का इतिहास-65

सदर निजामत अदालत मद्रास प्रेसीडेंसी में भी कलकत्ता के सदर निजामत अदालत की तर्ज पर सदर निजामत अदालत के नाम से 1802 के आठवें विनियम के अंतर्गत मुख्य
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विलियम बेंटिंक के उपरांत 1861 तक की न्याय व्यवस्था : भारत में विधि का इतिहास-63

विलियम बेंटिंक के बाद के गवर्नर जनरलों ने बेंटिंक की नीति का ही अनुसरण करते हुए न्याय व्यवस्था के मूल ढाँचे को यथावत बनाए रखा। 1836 में जातिगत
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चार्टर एक्ट 1833 और वैधानिक केंद्रीयकरण : भारत में विधि का इतिहास-62

चार्टर एक्ट-1833 इंग्लेंड औद्योगिक क्रांति से गुजर रहा था। इसी औद्योगिक क्रांति से वहाँ एक नया वर्ग पैदा हो गया था। यह मजदूर वर्ग था। जिस की गांव
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जिला न्यायालयों की अधिकारिता में वृद्धि : भारत में विधि का इतिहास-61

प्रांतीय न्यायालयों का समापन बेंटिंक ने 1831 के पाँचवें विनियम के माध्यम से जिले में स्थित प्रान्तीय न्यायालयों की अपीलीय अधिकारिता को समाप्त कर दिया और उस की
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लॉर्ड बेंटिंक के न्यायिक सुधार : भारत में विधि का इतिहास-60

लॉर्ड एमहर्स्ट के उत्तराधिकारी के रूप में लॉर्ड बेंटिंक ने गवर्नर जनरल का पदभार 1828 में ग्रहण किया। वे 1835 तक केवल सात वर्ष इस पद पर रहे।
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सदर अमीन का पद वैतनिक हुआ : भारत में विधि का इतिहास-59

सदर अमीन को अब तक प्रचलित प्रथा के अनुसार प्रत्येक निर्णीत मामले के मू्ल्य के अनुपात में पारिश्रमिक दिया जाता था। लॉर्ड एमहर्स्ट ने 1824 के 13 वे
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