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मद्रास में थॉमस मनरो के सुधार और उस के बाद की दीवानी न्यायिक व्यवस्था : भारत में विधि का इतिहास-67

द्रास प्रेसीडेंसी में थॉमस मनरो आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए अगले वर्ष 1816 में अनेक महत्वपूर्ण विनियम जारी किए गए। विनियम-4 के द्वारा गाँव के मुखिया को मुंसिफ नियुक्त कर उसे 10 रुपए मूल्य तक के दीवानी वादों को निर्णीत करने की शक्ति प्रदान की गई। ये निर्णय बाध्यकारी होते थे। विनियम-5 से यह व्यवस्था की गई कि पक्षकार आपसी सहमति से गाँव के मुखिया को किसी भी मूल्य के मामले का निपटारा करवा सकते थे। विनियम-6 के द्वारा जिला मुंसिफ के नाम से मशहूर भारतीय कमिश्नरों की अधिकारिता का विस्तार 200 रुपए मूल्य के मामलों तक कर दिया गया। उस के 20 रुपए मूल्य तक के निर्णय बाध्यकारी होते थे। विनियम-7 के द्वारा जिला न्यायालय द्वारा 300 रुपए तक मूल्य के मामले सदर अमीनों को निर्णीत करने के लिए सोंपे जा सकते थे। सदर दीवानी अदालत को असीमित मूल्य के मुकदमे सुनने की अधिकारिता दे दी गई थी, जिस के निर्णयों की अपील कलकत्ता के सपरिषद गवर्नर जनरल को की जा सकती थी। सदर दीवानी अदालत खुद अपने निर्णय की अपील की सुनवाई भी कर सकती थी यदि उस के विचार में वह अपील अदालत की अपेक्षा अधिक सुविधा व शीघ्रता से कर सकती थी। 
न सुधारों का सब से उल्लेखनीय पक्ष यह था कि परंपरा से चली आ रही ग्राम पंचायतों को न्याय करने के लिए मान्य कर दिया गया था। अब पक्षकार बहुत दूर के न्यायालयों में जाने के स्थान पर अपने ग्राम में ही न्याय प्राप्त कर सकते थे। कलेक्टरों को अधिकार दिए गए थे कि वे भूमि, फसलों, सीमा संबंधी विवादों, भूमि पर कब्जे के विवादों खेती और सिंचाई संबंधी मामलों को गाँव की पंचायत या जिला पंचायत के सुपुर्द कर सकते थे। इस उपबंध के द्वारा ग्राम पंचायतों को मामूली दांडिक अधिकार भी दिए गए थे।
1818 में सपरिषद गवर्नर जनरल की सिविल अपीली अधिकारिता को किंग इन कौंसिल को अंतरित कर दिया गया। न्यायालयों में प्रस्तुत किए जाने वाले मामलों के लिए न्यायालय शुल्क का निर्धारण भी किया गया।  जिला मुंसिफ, सदर अमीन और रजिस्ट्रार की अधिकारिता में वृद्धि कर के उन्हें क्रमशः 500,750 और 3000 रुपए मूल्य तक के मामलों की सुनवाई कर निर्णय करने को अधिकृत कर दिया गया। 1827 में मुख्य सदर अमीन के नए पद का सृजन किया गया जो 5000 रुपए मूल्य तक के मामले निर्णीत कर सकता था और जिला मुंसिफ द्वारा निर्णीत किए गए 1000 रुपए मूल्य तक के मामलों के निर्णयों की अपील सुन सकता था। इस से अधिक मूल्य के मामलों की अपील जिला दीवानी अदालत को की जा सकती थी। 
1833 में भारतीय न्यायिक अधिकारियों की अधिकारिता में और वृद्धि की गई। 1835 में सदर अमीन और जिला मुंसिफ के पदों को कमीशन से वैतनिक बना दिया गया। 1843 में चारों प्रांतीय न्यायालयों का समापन कर के उन की अधिकारिता जिला दीवानी न्यायालयों को अंतरित कर दी गई। सहायक जिला न्यायाधीशों और मुख्य सदर अमीन की अधिकारिता 10000 रुपए मूल्य तक के मामलों तक कर दी गई और उन्हें यूरोपीय व्यक्तियों सहित सभी मामले सुनने का अधिकार दे दिया गया। 1844 में जिला दीवानी अदालत को अधीनस्थ न्यायालयों के निरीक्षण का अधिकार भी दे दिया गया। 1850 में मद्रास मे लघुवाद न्यायालय भी आरंभ कर दिए गए। 1862 में सदर दीवानी अदालत को समाप्त कर उस की अधिकारिता नवस्थापित उच्च न्यायालय को दे दी गई। 1873 में मद्रास में दीवानी न्यायालयों का पुनर्गठन किया गया। यही व्यवस्था आज तक वहाँ विद्यमान है। 
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