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Tag: क्षेत्राधिकार

उच्च न्यायालयों की स्थापना के प्रभाव : भारत में विधि का इतिहास-81

प्रेसीडेंसी नगरों में उच्च न्यायालयों की स्थापना भारत में न्यायिक व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव था। इस से पूर्व में प्रचलित दोहरी न्यायिक प्रणाली का अंत हो गया
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उच्च न्यायालयों की अन्य अधिकारिता : भारत में विधि का इतिहास-80

दीवानी और दांडिक अधिकारिता के अतिरिक्त उच्च न्यायालयों को कुछ अन्य अधिकारिताएँ भी प्रदान की गई थीं। नौकाधिकरण की अधिकारिता- इस के अंतर्गत उच्च न्यायालयों को एडमिरल और
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उच्च न्यायालयों की दांडिक अधिकारिता : भारत में विधि का इतिहास-79

दिसंबर 1885 में जारी लेटर्स पेटेंट के द्वारा उच्च न्यायालयों की दांडिक अधिकारिता भी निश्चित कर दी गई थी। जो इस प्रकार थी- 1- साधारण आरंभिक दांडिक अधिकारिता-
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प्रेसीडेंसी नगरों में उच्च न्यायालयों की स्थापना : भारत में विधि का इतिहास-78

कलकत्ता उच्च न्यायालय भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम-1861 (Indian High Courts Act-1861) से स्वतः ही किसी उच्च न्यायालय की स्थापना भारत में नहीं हुई। इस के लिए ब्रिटेन की
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पिटस् इंडिया अधिनियम-1784 : भारत में विधि का इतिहास-38

संशोधन अधिनियम-1781 से रेगुलेटिंग एक्ट से उत्पन्न सु्प्रीम कोर्ट और गवर्नर जनरल परिषद के बीच क्षेत्राधिकार विवाद तो हल कर लिया गया था। इस से कंपनी की शक्तियों
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संशोधन अधिनियम-1781 : भारत में विधि का इतिहास-37

रेगुलेटिंग एक्ट 1773 अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो सका। इस से भारत में अनेक विवाद उठ खड़े हुए। इस के द्वारा ब्रिटिश सम्राट का कंपनी पर, निदेशक
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नादिरा बेगम का पटना मामला : भारत में विधि का इतिहास-36

रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों के कारण उपजे क्षेत्राधिकार के विवादों की श्रंखला में नादिरा बेगम का मामला भी बहुत दिलचस्प है और भारत के विधिक इतिहास में एक
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सुप्रीमकोर्ट और कौंसिल के बीच क्षेत्राधिकार विवाद के मामले : भारत में विधि का इतिहास-35

रेगुलेटिंग एक्ट में छूट गई कमियों ने गवर्नर जनरल और उस की परिषद के बीच जो संघर्ष चला। उस में सुप्रीमकोर्ट ने भी अपनी भूमिका अदा की। यह
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