कर्मचारी भविष्य निधि योजना अनिवार्य है और नियोजक द्वारा अंशदान जमा न करवाना दंडनीय अपराध है
| अय्यूब खान पूछते हैं –
मेरी प्रोप्राइटरशिप फर्म है। मैं ने कर्मचारी भविष्य निधि का नंबर ले लिया है, लेकिन किसी कर्मचारी का अंशदान नहीं काटा है, कर्मचारी भी अंशदान कटाना नहीं चाहते हैं। क्या फिर भी भविष्य निधि कोष में अंशदान जमा करवाने का मेरा दायित्व बनता है?
उत्तर-
खान भाई,
कर्मचारी भविष्य निधि योजना कोई स्वैच्छिक योजना न हो कर अनिवार्य योजना है। जिन क्षेत्रों में तथा जिन उद्योगों में यह लागू की जाती है वहाँ उद्योगों के स्वामियों के लिए यह अनिवार्य है कि वे कर्मचारी के वेतन से उस का अंशदान काटें तथा उस में अपना अंशदान व खर्चे जोड़ते हुए राशि योजना में जमा कराएँ। इस योजना से किसी उद्योग को छूट भी तभी मिलती है जब कि उस उद्योग में कर्मचारियों को समान या अधिक लाभ प्रदान करने वाली योजना पहले से लागू हो। इस तरह की अधिक लाभकारी योजना का पंजीयन भी कराना आवश्यक है। कर्मचारी भविष्य निधि योजना उद्योग की योजना को जाँच कर ही उस उद्योग को इस योजना से छूट प्रदान करते हैं।
आप के लिए कर्मचारी भविष्य निधि योजना को लागू करना आप का कानूनी दायित्व है। इसीलिए आप को योजना का सदस्यता नंबर प्रदान किया गया है। अब आप का दायित्व है कि आप अपने कर्मचारियों के वेतन से अंशदान काट कर तथा अपना अंशदान उस में जोड़ कर योजना में जमा कराएँ। यदि आप कर्मचारियों के वेतन से अंशदान नहीं काटते हैं तो यह एक अपराध है, आप को दोनों के अंशदानों की राशि अपने पास से जमा करानी होगी और उस पर ब्याज भी देना होगा, क्यों कि राशि जमा कराने का दायित्व नियोजक का है। जैसे ही आप द्वारा कर्मचारी भविष्य निधि योजना में अंशदान जमा नहीं कराया जाने की जानकारी अधिकारियों को होगी वे आप को नोटिस जारी करेंगे और जमा नहीं कराने पर आप के विरुद्ध अपराधिक मुकदमा चलाएंगे।
आप इस काम में बिलकुल कोताही न करें। जिस कार्यालय में आप को यह राशि जमा करवा कर उस का विवरण प्रस्तुत करना है उसी नगर में कुछ प्रोफेशनल्स ऐसे अवश्य होंगे जो कि छोटे नियोजकों के कर्मचारी भविष्य निधि योजना से संबंधित अभिलेख रखने,रिटर्न (विवरण) तैयार करने और राशि जमा कराने आदि का काम बहुत कम शुल्क पर करते हैं। आप उन में से किसी से संपर्क कर के इस काम को नियमित करने का प्रयत्न करें, अन्यथा आप को बहुत हानि उठानी पड़ सकती है। आप का यह तर्क कि कर्मचारी उन का अंशदान कटाना नहीं चाहते कहीं मान्य नहीं होगा। कर्मचारी लिख कर दे दें तब भी नहीं। हमेशा यही समझा जाएगा कि नियोजक अपना अंशदान बचाने के लिए यह तर्क दे रहा है और उस ने ही कर्मचारियों को लिख कर देने के लिए बाध्य किया है।
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2 Comments
बहुत सुंदर ओर उपयोगी जानकारी, धन्यवाद
गुरुवर जी, पहले वाली टिप्पणी डिलेट कर दें. उसमें कुछ कमियां रह गई थीं.
गुरुवर जी, आपने "आप अपनी संतान से मिल सकते हैं" उपरोक्त पोस्ट(19 मार्च 2011)में जो सलाह दी उसके अनुसार कार्यवाही कर दी थीं.लेकिन 15 दिन के बाद भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर आज विधिक सेवा प्राधिकरण की स्थाई लोक अदालत में साधारण प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर दिया है. न्यायालय वहाँ मेरी पत्नी को बुलाया जाएगा. उसके न आने पर या मुझे बच्चे से मिलवाने के लिए न मानने की स्थिति पर मुझे विधिक सेवा प्राधिकरण वकील दें देगा और बच्चे का संरक्षण का मेरा केस कोर्ट में दर्ज हो जायेगा. आज विधिक सेवा प्राधिकरण में बच्चे का संरक्षण हेतु वकील लेने का आवेदन किया तब वहां पर वकील और सेवानिवृत जज ने सलाह देकर मेरा मार्गदर्शन भी किया और एक "खतरा*" जिसका जिक्र मैंने आपको एक ईमेल भी किया था. उसके बारे में भी बताया है. *फर्जी धारा 498a और 406 के केस में गिरफ्तार करवा देने का. जब मौत से भी बदतर जिदंगी जी रहा हूँ. तब अब डर किस बात का. मौत घर पर हो या जांच अधिकारी मेरे गुप्तांग पर करंट लगाकर अपनी कस्टडी में मारे या भ्रष्ट अधिकारी जेल में कम से कम मज़बूरी में आत्महत्या तो नहीं करनी पड़ेगी.अब अपने आपको इतना मजबूत बना लिया चाहे मुझे फांसी पर क्यों नहीं लटका दिया जाए.मगर किसी को एक रुपया रिश्वत नहीं दूंगा. मेरे रिश्वत न देने के कारण ही आज मेरे ऊपर इतने फर्जी केस दर्ज है. -आपका शिष्य