गिरवी रखे जेवर न लौटाना अमानत में खयानत का अपराध है।
समस्या-
इंदौर, मध्य प्रदेश से प्रहलाद सिंह ने पूछा है-
मेरी उम्र 62 वर्ष है, मैं राष्ट्रीयकृत बैंककर्मी रह चुका हूँ एवं विगत दीर्घ अन्तराल से सेवा से पृथक हूँ जिसके कारण विभिन्न न्यायालयों में निर्णय हेतु प्रकरण लंबित हैं। सेवा पृथक्करण के पश्चात आर्थिक विषमताओं के चलते मेरे द्वारा अपने पारिवारिक बुजुर्ग मित्र (संबोधन-काकाजी) जो ब्याज पर लेनदेन का व्यवसाय करते थे, उनसे वर्ष १९९७ में अपनी पत्नी के जेवर गिरवी रखकर २०,०००/- रु. दो प्रतिशत मासिक ब्याज दर पर उधार लिए थे। जितना मूल धन उधार लिया था उससे कई ज्यादा मूल्य जेवरों का था। जेवरों की संख्या, प्रकार इत्यादि की सूची तत्समय कर्जदाता काकाजी द्वारा बनायी गई थी। धन की त्वरित आवश्यकता एवं आपसी सम्बन्धों/ विश्वास के चलते तत्समय मेरे द्वारा ना ही इस सम्बन्ध में कोई लिखा पढ़ी की गई न ही कोई अन्य दस्तावेज इस सम्बन्ध में रखा गया। क्योंकि उनकी पत्नी ने मुझे धर्म भाई बना रखा था एवं सम्पूर्ण परिवार से मधुर पारिवारिक सम्बन्ध थे। मेरे द्वारा उधार धन प्राप्ति से आगामी २-३ वर्षों तक ब्याज राशि नियमित दी जाती रही। फिर मेरा गुजारा भत्ता बंद हो गया तो उन्हें ब्याज देना भी धीरे धीरे बंद हो गया। कुछ वर्षों बाद उनकी म्रत्यु भी हो गई। उनके जीवित रहते मैं आर्थिक परेशानी के चलते लेन देन चुकता कर अपने गिरवी जेवर उनसे नहीं प्राप्त कर सका। वर्तमान में उनके परिवार में पत्नी याने मेरी धर्म बहन काफी वृद्ध हो चुकी हैं एवं उनके ३ पुत्र एवं परिवार है। २ पुत्र शासकीय सेवा में हैं। मेरे द्वारा अपने हालातों में सुधार आने पर उनसे विगत कई वर्षों से अपनी पत्नी के गिरवी रखे जेवर छुडवाने हेतु पूरे परिवार से पृथक पृथक मौखिक निवेदन/ चर्चा कर रहा हूँ किन्तु वे अधिक ब्याज दर से कुल रकम चुकाने की बात करते हैं या सोने के वर्तमान भाव से गिरवी रखे जेवरों को लौटाने का कहकर टालमटोल करते हैं (जो कि मेरे सामर्थ्य से परे है) एवं लेनदेन चुकता कर गिरवी रखे जेवर लौटाने में रूचि नहीं रखते हैं क्यों की वर्तमान में सोने का मूल्य आसमान छू रहा है एवं मेरे लिए गए कर्ज से कई गुना संपत्ति उनके पास है। बातचीत के सारे प्रयास विफल हो चुके हैं। स्वर्गीय काकाजी की पत्नी जो कि मुझे धर्मभाई मानती है वो भी सारे संबंधों/ रिश्ते-नाते को भुला चुकी हैं। संक्षिप्त में मैं नियमानुसार उक्त लेनदेन चुकता करने की मंशा रखता हूँ किन्तु मेरे पास उक्त लेनदेन, गिरवी रखे जेवरों इत्यादि का कोई सबूत / दस्तावेज / अनुबंध उपलब्ध नहीं हैं किन्तु कर्जदाता के बहीखाता में उक्त जानकारी निश्चित उपलब्ध है। तो इस स्थिति में नियमानुसार लेनदेन चुकता कर अपनी गिरवी रखी संपत्ति की वापसी हेतु क्या मैं मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत कोई वैधानिक कार्यवाही कर सकता हूँ? या पहले अपना पक्ष पुख्ता करने के लिए उनके समक्ष एक बार फिर लेनदेन चुकता करने एवं अपनी गिरवी जेवर इत्यादि की वापसी हेतु एक डमी चर्चा करूं एवं उस चर्चा/ बातचीत को गुप्त कैमरे/ मोबाइल रिकॉरडिंग इत्यादि से एक स्टिंग ओपरेशन का रूप दूँ एवं उसे सबूत के बतौर न्यायलय में पेश करूं। क्या यह कार्यवाही कारगर साबित होगी या बिना इसके भी उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जा सकती है जिससे कि मुझे मेरी पत्नी के गिरवी रखे जेवर पुनः प्राप्त हो सकें।
समाधान-
आप के पास जेवर गिरवी रखने का कोई सबूत नहीं है सिवाय इस के कि स्व. काकाजी ने आप के जेवरों की सूची उन के खुद की हस्तलिपि में बनाई थी वह आप के पास है। इस तरह का ऋण चुपचाप प्राप्त किया जाता है इस कारण जेवर गिरवी रखने का भी कोई सबूत न होगा। आप जो ब्याज देते रहे उस का कोई बही खाता या डायरी आपने भी मेंटेन नहीं की होगी। इस लिए आप के पास सबूतों की तो कमी है। इस कारण यदि किसी तरह उन से होने वाली बातचीत रिकार्ड कर ली जाती है तो वह आप के पक्ष में सबूत होगी जो आप के पास की सूची को मिला कर अच्छे साक्ष्य का काम करेगी। इस कारण यदि आप बातचीत को रिकार्ड कर लेते हैं तो यह अच्छा है।
आप के जेवर वे वापस नहीं लौटा रहे हैं जो कि उन के पास अमानत हैं। यह सीधे सीधे अमानत में खयानत का धारा 406 आईपीसी का मामला है जो कि एक संज्ञेय अपराध है। जिस के लिए पुलिस तुरंत कार्यवाही कर उन्हें गिरफ्तार कर सकती है और आप के जेवर बरामद कर सकती है जिन्हें बाद में न्यायालय से आदेश करा कर वापस प्राप्त किया जा सकता है।
हमारी राय है कि आप पहले रिकार्डिंग कर लें। उस के बाद एक विधिक सूचना (लीगल नोटिस) काका जी के सभी उत्तराधिकारियों को भिजवा दें जिस में जेवर लौटाने का आग्रह कर दें और समय सीमा में न लौटाने पर सक्षम न्यायालय में कार्यवाही करने की चेतावनी दे दें। नोटिस में जेवरों की सूची और रिकार्डिंग जो आप के पास रहेगी उन का उल्लेख न करें। समय सीमा समाप्त होने पर पुलिस में रिपोर्ट लिखाएँ। पुलिस रिपोर्ट न लिखे तो किसी वकील की मदद से सीधे न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर पुलिस को धारा 156 (3) दंड प्रक्रिया संहिता में भिजवाएँ। इस परिवाद में धारा 406 तथा मनी लांड्रिंग एक्ट के अंतर्गत कार्यवाही करने तथा आप के जेवर वापिस दिलाने की राहत मांगें।
गुरुदेव जी, आपने बहुत अच्छी जानकारी दी.