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पत्नी के साथ आपसी समझौता ही आप की समस्या का अंत कर सकता है

समस्या-

मेरी उम्र 42 वर्ष है। मेरी पत्नी द्वारा किए गए अनेक मुकदमे से मैं पूरी तरह परेशान हो चुका हूँ। मैं अपनी पत्नी कोअपने साथ रखना चाहता हूँ लेकिन वह मेरे साथ रहने को तैयार नहीं है। न ही वह मुझे तलाक देने के लिए तैयार है। मेरे ऊपर उस ने 498-क, 494 भा. दं.सं. तथा धारा 125 दं.प्र.सं.के अंतर्गत मुकदमा कर रखा है। मुझे आज मेरी माँ की मृत्यु के बाद अनु्कम्पा नियुक्ति मिली है लेकिन मैं मुकदमों के तनाव के कारण सरकारी नौकरी ठीक से नहीं कर पा रहा हूँ। मैंने कभी भी अपनी पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित नहीं किया। मैं ने दूसरा विवाह भी नहीं किया। लेकिन एक औरत पिछले नौ वर्षों से मेरे साथ रह रही है। मैं ठीक से जीवन नहीं जी पा रहा हूँ। कृपया मुझे कोई ऐसा उपाय बताएँ जिस से मैं मुकदमों से मुक्ति पा सकूँ और शेष जीवन तनाव रहित रीति से जी सकूँ।

-प्रशान्त वर्मा, गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश

समाधान-

प ने अपनी समस्या में यह नहीं बताया है कि आप की पत्नी ने आप के साथ रहना कब से त्याग दिया है और उक्त मुकदमें कब से आरंभ हुए हैं। लेकिन इन तथ्यों से अब कोई भी अंतर नहीं पड़ता है। आप ने स्वयं यह स्वीकार किया है कि पिछले नौ वर्षों से एक महिला आप के साथ निवास कर रही है। आप ने दूसरा विवाह नहीं किया है। हो सकता है आप के उस महिला के साथ लिव-इन-रिलेशन न हों, लेकिन एक पुरुष जिस की पत्नी उस के साथ निवास नहीं कर रही है लेकिन एक अन्य महिला उस के साथ निवास कर रही है तो सामान्य समझ यही बनती है कि उन दोनों के बीच लिव-इन-रिलेशन हैं। कोई भी पत्नी अपने पति के साथ किसी दूसरी स्त्री के संबंध को स्वीकार नहीं कर पाती है तब भी जब वह दूसरी स्त्री उस के पति के साथ न रहती हो। यहाँ तो अन्य स्त्री पति के साथ निवास कर रही है ऐसी अवस्था में उसे बर्दाश्त करना संभव ही नहीं है। यही कारण है कि आप की पत्नी आप के साथ नहीं रहना चाहती है। आप के विरुद्ध उस ने तमाम मुकदमे इसी कारण किए हैं।

प के साथ एक अन्य स्त्री निवास कर रही है। यह एक प्रधान और मजबूत कारण है जिस से आप की पत्नी को आप के साथ निवास करने से इन्कार करने का अधिकार उत्पन्न हो गया है। यदि उस ने अलग रहते हुए आप से भरण पोषण के खर्चे के लिए धारा 125 दं.प्र.सं. का मुकदमा किया है तो सही ही किया है। धारा-494 तथा 498-क के मुकदमे भी उस ने इसी लिए किए हैं। हो सकता है कि उसके इन दोनों मुकदमों में उसे सफलता प्राप्त न हो। पर उन्हें चलाने का आधार तो आप ने उस के लिए स्वयं ही उत्पन्न किया है। इस से यह स्पष्ट है कि आप की परेशानियाँ स्वयं आप की खड़ी की हुई हैं। यदि इन का आरंभ भले ही आप की इच्छा से न हुआ हो पर अब तो सब को यही लगेगा कि इन सब के लिए आप ही जिम्मेदार हैं।

प की समस्या का हल कानून और न्यायालय के पास नहीं है। आप की समस्या का हल आप की पत्नी के पास है। आप यदि अपनी समस्या का हल चाहते हैं तो इस के लिए आप को अपनी पत्नी की शरण में ही जाना पड़ेगा। किसी भी स्तर पर जा कर उस से समझौता करना पड़ेगा। यह समझौता कैसा भी हो सकता है। हो सकता है वह सहमति से तलाक के लिए तैयार हो जाए लेकिन उस के साथ आप को उसे एक मुश्त भरणपोषण भत्ता देना पड़ेगा। दूसरा हल यह है कि वह दूसरी महिला से आप के द्वारा सभी संबंध त्याग देने का वायदा करने पर आप के साथ निवास करने को तैयार हो जाए। लेकिन दूसरा हल मुझे संभव नहीं लगता है। पहला हल ही आप के मामले में सही हल हो सकता है। इसलिए आप को अपना हल तलाशने के लिए अपनी पत्नी से बात करना चाहिए। इस के लिए बीच के लोगों और काउंसलर की मदद भी आप ले सकते हैं। आप की समस्या का हल केवल आपसी समझौते से ही निकल सकता है।