पीड़ित को शीघ्र से शीघ्र न्यायालय के समक्ष न्याय हेतु जाना चाहिए।
|समस्या-
मुरैना, मध्यप्रदेश से धर्मेंन्द्र कुमार ने पूछा है-
मेरे पिता की नियुक्ति वर्ष 1976 में हैल्पर के पद पर म.प्र.रा.प.नि. डिपो ग्वालियर में हुई थी। उसके पश्चात वर्ष 1981 में टी.सी.टी. के पद पर पदोन्नति हुई। वर्ष 2000 में भोपाल डिपो प्रबन्धक द्वारा डूयूटी आदेश नहीं लिए जाने का आरोप लगाते हुए दिनांक 18;02;2000 को निलम्बित कर दिया, जिसका जबाव मेरे पिता द्वारा दिया गया तथा विभागीय जांच संस्थित कर दी। इसके पश्चात दिनांक 14;09;2000 में संभागीय प्रबन्धक, म.प्र.रा.प.नि. बैरागढ् द्वारा मेरे पिता को निलम्बन से बहाल करते हुए सागर डिपो में पदस्थ करने के आदेश जारी किए। मेरे पिता बीमार होने से उक्त आदेश के क्रम में दिनांक 09;11;2000 को उपस्थित होकर अवकाश का आवेदन एवं मेडीकल प्रमाण पत्र देकर वापस अपने घर मुरैना आ गए। इसके बाद डिपो प्रबन्धक सागर द्वारा दिनांक 06;01;2001 को आरोप पत्र जारी किया गया एवं दिनांक 22;05;2001 को अनुपस्थिति को आधार मानते हुए सेवाएं समाप्त कर दीं। इसके बाद प्रबन्ध संचालक म.प्र.रा.प.नि. भोपाल को अपील प्रस्तुत की गई। इसके बाद दि0 म.प्र.रा.प.नि. को प्रबन्ध संचालक महोदय द्वारा एक सशर्त पत्र जारी किया गया, जिसमें चार शर्ते स्वीकार होने पर सागर डिपो में उपस्थिति देने के आदेश दिए गए। 1;आवेदक कहीं भी न्यायालय में वाद प्रस्तुत नहीं करेगा। 2; सेवा समाप्ति आदेश से पुन सेवा स्थापना तक की अवधि का कोई वेतन देय नहीं होगा। 3; एक वेतनवृद्धि असंचयी प्रभाव से रोकी जाए। 4; 1000 रूपये दण्ड स्वरूप सागर कोष में जमा कराए जायें। उक्त शर्तें स्वीकार होने पर एक माह में सागर डिपो में उपस्थित हों तथा लेख किया गया कि एक माह बाद उक्त आदेश स्वत निष्प्रभावी हो जाएगा। मेरे पिता द्वारा कई बार सागर डिपो के स्थान पर मध्य प्रदेश के अन्य किसी भी डिपो में पदस्थापना किए जाने हेतु लगातार आवेदन दिए, किन्तु प्रबन्ध संचालक महोदय की ओर से कोई जबाव प्राप्त नहीं हुआ तथा आज दिनांक तक स्वत्वों का भी भुगतान नहीं हुआ है। पिता जी को क्या करना चाहिए।
समाधान-
लगता है आप के पिता जी को नौकरी की जरूरत नहीं है। या वे नौकरी करना तो चाहते हैं लेकिन मुरैना और उस के आसपास के क्षेत्र में। आप के पिता जी पर गंभीर आरोप नहीं थे। इसी कारण उन का निलंबन समाप्त कर उन्हें सागर डिपो में बहाल किया गया था। वे ड्यूटी पर उपस्थित हो कर बीमारी के कारण अवकाश का आवेदन दे कर चले आए। इस तरह वे सागर डिपो में पद स्थापित थे। यदि वे वास्तव में बीमारी के कारण ही अवकाश का आवेदन दे कर अनुपस्थित रहे थे तो जो दंडादेश उन्हें एक वेतन वृद्धि रोकने का सशर्त दिया गया था वह गलत था। सागर में ड्यूटी पर उपस्थित हो कर ड्यूटी करते हुए उस समूचे आदेश को न्यायालय के समक्ष आप के पिता द्वारा चुनौती दी जानी चाहिए थी। आप के पिता ने ड्यूटी जोइन करने के स्थान पर आवेदन दिया कि उन्हें सागर के अलावा किसी अन्य डिपो में ड्यूटी पर लगाया जाए। आवेदन देने का अधिकार आप के पिता को था किन्तु अनुपस्थित रहने का नहीं। इस तरह लंबे समय तक ड्यूटी से अनुपस्थित रहना एक तरह से सेवा का त्याग कर देना समझा जाएगा।
आप के पिता को सेवा से पृथक नहीं किया गया है अपितु उन की सेवा समाप्ति के दंडादेश को समाप्त करते हुए ऐसा दंडादेश दिया गया है जो कि उस की शर्तों के अंतर्गत विधिक रूप से सही नहीं है। यदि मध्यप्रदेश रा.प.नि. में स्टेंडिंग आदेश होंगे तो उन में भी इस तरह का सशर्त आदेश देने का अधिकार नहीं होगा। आप के पिता को अब भी उक्त आदेश को न्यायालय के समक्ष चुनौती देनी चाहिए। वे औद्योगिक विवाद अधिनियम के अंतर्गत एक कर्मकार हैं इस कारण से वे यूनियन द्वारा समर्थित होने पर औद्योगिक विवाद उठा सकते हैं तथा यूनियन का समर्थन न होने पर सीधे उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका अथवा दीवानी न्यायालय के समक्ष दीवानी वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। लेकिन इन सब में सब से बड़ी अड़चन यही होगी कि आप के पिता इतने वर्षों तक घर क्यों बैठे रहे? वे समय रहते न्यायालय के समक्ष क्यों नहीं गए? न्याय का यह प्रमुख सिद्धान्त है कि पीड़ित को तुरंत या शीघ्र से शीघ्र न्यायालय के समक्ष जाना चाहिए। देरी करने और उस का कोई उचित कारण न होने पर मामला अवधि पार हो सकता है या यह माना जा सकता है कि याची के साथ कोई अन्याय नहीं हुआ है। दूसरी अड़चन यह होगी कि इतने वर्षों तक उन के ड्यूटी पर उपस्थित न होने को स्वेच्छा से अपनी सेवा का त्याग करना क्यों न मान लिया जाए। इस मामले में अधिक से अधिक यह राहत मिल सकती है कि आप के पिता के सेवा त्याग के उपरान्त वे जो सेवा लाभ प्राप्त करने के अधिकारी हों वे उन्हें मिल सकते हैं। मुरैना ग्वालियर से नजदीक है। आप के पिता को चाहिए कि वे ग्वालियर जा कर उच्च न्यायालय में प्रेक्टिस कर रहे सेवा संबंधी मामलों के किसी वकील से मिलें उन से सलाह लें और उन्हें यदि कुछ लाभ मिलने की संभावना वकील द्वारा व्यक्त की जाए तो वे मुकदमा कर दें।
Sir meri maa ka aankh ka aankh mein motiyabind ka operation 17.01.13 ko hua tha. patti khulte hi meri maa ko kuch bhi saaf dikhai nahi diya meri maa ke kahne per Dr. ne kaha dikhai dega do din baad aana. do din baad jane per Dr.ne kaha ki saat din baad aana Talte Talte usne teen maheene laga diye.teen maheeno ke baad bhi meri maa ki aankho ki roshni nahi aai. Sir operation mein mera 8000 Rupya khrch ho chuka hai. Sir mujhko koi rasta dikhaiye ki mein Dr. ke khilaf kya ker sakta huin kya mujhe Dr. se koi claim mil sakta hai.