प्रथम सूचना रिपोर्ट निरस्त कराने के लिए निगरानी तथा पत्नी को मुक्त कराने हेतु बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका प्रस्तुत करें
समस्या-
कोटा, राजस्थान से शिवराज सिंह ने पूछा है –
मेरा विवाह 2009 में रावतभाटा के पास एक गाँव में हुआ। मेरी पत्नी महज पाँचवीं पास है। मैं ऑटो चालक हूँ। मैं अपने माता-पिता व भाई बहनों से अलग रहता हूँ। एक ही छत के नीचे अलग कमरे में। मेरे नाम अलग से गैस कनेक्शन, राशनकार्ड आदि भी हैं। मेरे अभी दो साल की एक बेटी दिव्यांशी है। मेरी पत्नी अजब के गर्भाशय में शिकायत होने पर मैंने 12 जनवरी 2013 को जेके लोन अस्पताल कोटा राजस्थान में अस्पताल अधीक्षक व गायनोलोजिस्ट डॉक्टर आरपी रावत की यूनिट में भर्ती कराया। यहां माइनर ऑपरेशन के बाद जांच प्रयोगशाला में भेजी। 24 जनवरी 2013 को छुट्टी दी। जांच रिपोर्ट में 30 जनवरी 2013 को गर्भाशय केंसर की पुष्टि हुई। लेकिन 24 जनवरी 2013 को ही मेरा साला कोटा स्थित मेरे घर से मुझे भरोसे में लेकर मेरी पत्नी व बेटी को अपने साथ रावतभाटा लेकर चला गया। 4 फरवरी 2013 को अचानक मेरी पत्नी की तबीयत खराब हुई और उसे रावतभाटा में ही एक निजी डॉक्टर को दिखाया। बाद में उसी रात को बेहोशी की हालत में उसे कोटा ले आए। मैं भीलवाडा था तो मेरे परिजन पत्नी को संभालने पहुँचे। मेरा साला व अन्य परिजन साथ थे। सभी रात को ही मेरी पत्नी को डॉक्टर आरपी रावत के घर ले गए। यहां डॉक्टर ने जेके लोन रेफर कर दिया। लेकिन मेरा साला व अन्य परिजन सरकारी अस्पताल न जाकर मेरे भाई को चकमा देकर अन्यत्र अस्पताल लेकर चले गए। मेरे घर वाले काफी तलाश करते रहे। उनके मोबाइल पर कई दफा कॉल व एसएमएस किए लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। बाद में पता चला कि कोटा में ही श्रीनाथपुरम स्थित जैन सर्जिकल अस्पताल में ले गए थे और यहां 5 अप्रैल 2013 को गर्भाशय निकाल दिया। इस में डॉक्टर ने पति होने के नाते मेरी सलाह तक नहीं लीं। 18 अप्रैल 2013 को मैंने महावीर नगर थाने में मामले की रिपोर्ट दर्ज करवाई। पुलिस अभी जांच में जुटी हुई है। इस दरमियान न तो मुझे और न मेरे परिवार वालों को मेरी पत्नी से मेरे ससुराल वालों ने मिलने दिया। मेरी पत्नी का जैन सर्जिकल व एक अन्य अस्पताल में उपचार करवाया, ऐसा मुझे पता चला है। लेकिन उस की हालत बेहद नाजुक है। अभी उसे गांव में ही छोड़ रखा है। पता नहीं दवा गोली भी दे रहे हैं या नहीं। मेरी बेटी को भी मुझ से नहीं मिलने देते। मैंने प्रयास भी किया लेकिन मेरे साले ने मुझे जान से मारने की धमकी दी है। अब यानी 1 मई 2013 को मेरे ससुर तेजीसिंह ने मेरे व मेरे परिवार के खिलाफ जरिए इस्तगासा धारा 498 ए, 406, 313, 323, 314, के तहत रावतभाटा पुलिस स्टेशन में मुकदमा दर्ज करवा दिया है। इस्तगासे में जिन सात बिंदुओं को आधार बनाया गया है वो सभी असत्य व मनगढ़न्त कहानी पर आधारित हैं। जो निष्पक्ष जांच में झूठे साबित होंगे। लेकिन फिलहाल मैं और मेरा परिवार काफी मानसिक टेंशन के दौर से गुजर रहा है। मेरे पिता गाँव में रहते हैं और किसान हैं। मेरे दो छोटी बहनें व एक भाई है जो अविवाहित है। इस मुकदमें की खबर से हमारी समाज में काफी बदनामी हो रही है। और भविष्य में मेरे भाई बहनों के रिश्ते होने में परेशानी बन सकती है। मैं चाहता हूं कि मेरी पत्नी व बेटी और मेरे ससुर व साले के चंगुल से निकले और हमेशा मेरे साथ रहे। ताकि मैं मेरी पत्नी का इलाज करवा सकूँ और बेटी की ठीक से परवरिश कर सकूँ। लेकिन मेरे ससुराल वाले मेरी जिंदगी को पता नहीं क्यों बरबाद करने में तुले हैं। समझाइश के काफी जतन किए लेकिन वो नहीं मान रहे। आप ही मुझे मेहरबानी करके कोई ऐसा कानूनी उपाय बताएं जिससे मेरे परिवार की खुशियाँ फिर से लौट आएँ। मेरा तो यहीं कहना है कि अगर मैं दोषी पाया जाता हूँ तो मुझे कठोर सजा मिले। लेकिन अगर निर्दोश साबित होता हूँ तो मेरे व मेरे परिवार के खिलाफ शड़यंत्र रचने वालों के खिलाफ ठोस कार्रवाई हो। ताकि महिलाओं के संरक्षण के लिए बने कानूनों का कोई भी व्यक्ति गलत उपयोग न करें।
समाधान –
आप के मामले में या तो आप के ससुराल वालों को कुछ गलतफहमियाँ हैं या फिर उन की कोई बदनियती है। यदि आप के विरुद्ध रावतभाटा पुलिस स्टेशन ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज ली है तो आप को तुरन्त उस प्रथम सूचना रिपोर्ट को निरस्त करने के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष 482 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत रिवीजन याचिका प्रस्तुत करनी चाहिए।
आप की समस्या के तथ्यों से पता लगता है कि आप की पत्नी को उस के मायके वालों ने ही बंदी बना रखा है जो उस के स्वयं के हित में नहीं है। आप को अपनी पत्नी को उस के मायके वालों से मुक्त कराने लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करनी चाहिए।